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विरासत की सियासत बनी चिराग के लिए चुनौती, गठबंधन पर कन्‍फ्यूजन के कारण अधर में राजनीतिक भविष्य

एलजेपी नेता चिराग पासवान (Chirag Paswan) का सियासी भविष्य अधर में है. न तो पूरी पार्टी साथ है और न ही पूरा परिवार उनके साथ है. गठबंधन को लेकर भी कन्‍फ्यूजन की स्थिति है. नीतीश कुमार की अदावत के कारण बीजेपी चाहकर भी उन्हें साथ नहीं दे रही है. जबकि आरजेडी के साथ जाने के लिए चिराग अभी तक मन से तैयार नहीं हो पा रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर अब वो करेंगे क्या?

चिराग
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Published : Sep 13, 2021, 10:45 PM IST

पटना: पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) ने जीवित रहते हुए ही अपनी राजनीतिक विरासत अपने पुत्र चिराग पासवान (Chirag Paswan) को सौंपी थी, लेकिन उनके निधन का एक साल भी नहीं बीता कि चिराग की सियासी कश्ती मझधार में आ गई.

ये भी पढ़ें: LJP की बैठक में नीतीश कुमार के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित

रामविलास पासवान की ताकत परिवार की एकजुटता थी, लेकिन उनके गुजर जाने के बाद चिराग पासवान अपने परिवार को एकजुट नहीं रख सके. नतीजा ये हुआ कि चाचा पशुपति पारस (Pashupati Paras) और चचेरे भाई प्रिंस राज (Prince Raj) ने अलग राह अख्तियार कर लिया और पार्टी में भी फूट हो गई.

देखें रिपोर्ट

परिवार संभालने में असफल रहे चिराग पार्टी भी नहीं संभाल पाए. छह में से 5 सांसदों ने उनका साथ छोड़ दिया. बिहार में एकमात्र विधायक भी जेडीयू के साथ चले गए. इतना ही नहीं बिहार विधानसभा चुनाव में एलजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले कई प्रत्याशियों ने भी 'बंगला' खाली कर दिया. आज की तारीख में बंगले पर भी चिराग का दावा विवादों में है.

दरअसल नीतीश कुमार के साथ विधानसभा चुनाव के दौरान अदावत चिराग को महंगी पड़ी है. सरकार बनाने के बाद नीतीश ने चिराग पासवान की राजनीति को नेपथ्य में पहुंचाने के लिए चालें चलनी शुरू कर दी. पहले चाचा पारस को चिराग से अलग किया और फिर उन्हें मोदी कैबिनेट में मंत्री बनाने में भी कामयाब रहे.

इस बीच अब चिराग को दिल्ली का सरकारी बंगला भी गंवाना पड़ा है. इधर राजधानी पटना स्थित एलजेपी के प्रदेश कार्यालय से भी बेदखल होना पड़ा है, क्योंकि दफ्तर पर पशुपति पारस ने कब्जा जमा लिया है.

ये भी पढ़ें: BJP नेता नीरज बबलू का बड़ा बयान, 'चिराग एनडीए का हिस्सा हैं और आगे भी रहेंगे'

चिराग पासवान ने न तो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का साथ नहीं छोड़ा है और न ही बीजेपी ने उन्हें गठबंधन से निकाला है. ऐसे में कन्फ्यूजन की स्थिति बनी हुई है. इस बीच कभी आरजेडी तो कभी बीजेपी के नेता चिराग के प्रति खूब प्रेम छलका रहे हैं.

आरजेडी प्रवक्ता एजाज अहमद ने कहा है कि लालू प्रसाद यादव सामाजिक न्याय की राजनीति करते रहे हैं. चिराग पासवान को रामविलास पासवान की राजनीति को मजबूत करना चाहिए और महागठबंधन के साथ आना चाहिए.

ये भी पढ़ें: HAM ने BJP के बयान को नकारा, कहा- PM और CM का विरोध करने वाले चिराग NDA का हिस्सा नहीं

वहीं, बीजेपी प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा है कि चिराग पासवान विधानसभा के चुनाव के दौरान राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा नहीं थे. वर्तमान स्थिति में उनके परिवार में विवाद है और विवाद सुलझने के बाद ही बीजेपी कोई फैसला लेगी.

इधर, एलजेपी प्रवक्ता राजेश भट्ट ने कहा है कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान बिल्कुल कंफ्यूज नहीं हैं. अभी कोई चुनाव नहीं है, इसलिए अबतक हम लोगों ने यह फैसला नहीं लिया है कि किस गठबंधन में रहना है. समय आने पर फैसला जरूर ले लिया जाएगा.

वरिष्ठ पत्रकार कौशलेंद्र प्रियदर्शी का कहना है कि चिराग पासवान रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत को नहीं संभाल सके हैं. राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते चिराग ने कई अपरिपक्व कदम उठाएं हैं, जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ रहा है.

पटना: पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) ने जीवित रहते हुए ही अपनी राजनीतिक विरासत अपने पुत्र चिराग पासवान (Chirag Paswan) को सौंपी थी, लेकिन उनके निधन का एक साल भी नहीं बीता कि चिराग की सियासी कश्ती मझधार में आ गई.

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रामविलास पासवान की ताकत परिवार की एकजुटता थी, लेकिन उनके गुजर जाने के बाद चिराग पासवान अपने परिवार को एकजुट नहीं रख सके. नतीजा ये हुआ कि चाचा पशुपति पारस (Pashupati Paras) और चचेरे भाई प्रिंस राज (Prince Raj) ने अलग राह अख्तियार कर लिया और पार्टी में भी फूट हो गई.

देखें रिपोर्ट

परिवार संभालने में असफल रहे चिराग पार्टी भी नहीं संभाल पाए. छह में से 5 सांसदों ने उनका साथ छोड़ दिया. बिहार में एकमात्र विधायक भी जेडीयू के साथ चले गए. इतना ही नहीं बिहार विधानसभा चुनाव में एलजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले कई प्रत्याशियों ने भी 'बंगला' खाली कर दिया. आज की तारीख में बंगले पर भी चिराग का दावा विवादों में है.

दरअसल नीतीश कुमार के साथ विधानसभा चुनाव के दौरान अदावत चिराग को महंगी पड़ी है. सरकार बनाने के बाद नीतीश ने चिराग पासवान की राजनीति को नेपथ्य में पहुंचाने के लिए चालें चलनी शुरू कर दी. पहले चाचा पारस को चिराग से अलग किया और फिर उन्हें मोदी कैबिनेट में मंत्री बनाने में भी कामयाब रहे.

इस बीच अब चिराग को दिल्ली का सरकारी बंगला भी गंवाना पड़ा है. इधर राजधानी पटना स्थित एलजेपी के प्रदेश कार्यालय से भी बेदखल होना पड़ा है, क्योंकि दफ्तर पर पशुपति पारस ने कब्जा जमा लिया है.

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चिराग पासवान ने न तो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का साथ नहीं छोड़ा है और न ही बीजेपी ने उन्हें गठबंधन से निकाला है. ऐसे में कन्फ्यूजन की स्थिति बनी हुई है. इस बीच कभी आरजेडी तो कभी बीजेपी के नेता चिराग के प्रति खूब प्रेम छलका रहे हैं.

आरजेडी प्रवक्ता एजाज अहमद ने कहा है कि लालू प्रसाद यादव सामाजिक न्याय की राजनीति करते रहे हैं. चिराग पासवान को रामविलास पासवान की राजनीति को मजबूत करना चाहिए और महागठबंधन के साथ आना चाहिए.

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वहीं, बीजेपी प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा है कि चिराग पासवान विधानसभा के चुनाव के दौरान राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा नहीं थे. वर्तमान स्थिति में उनके परिवार में विवाद है और विवाद सुलझने के बाद ही बीजेपी कोई फैसला लेगी.

इधर, एलजेपी प्रवक्ता राजेश भट्ट ने कहा है कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान बिल्कुल कंफ्यूज नहीं हैं. अभी कोई चुनाव नहीं है, इसलिए अबतक हम लोगों ने यह फैसला नहीं लिया है कि किस गठबंधन में रहना है. समय आने पर फैसला जरूर ले लिया जाएगा.

वरिष्ठ पत्रकार कौशलेंद्र प्रियदर्शी का कहना है कि चिराग पासवान रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत को नहीं संभाल सके हैं. राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते चिराग ने कई अपरिपक्व कदम उठाएं हैं, जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ रहा है.

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