पटना: बिहार में साल 2005 में जब नीतीश कुमार की सरकार सत्ता में आई थी, उस समय स्पीडी ट्रायल के जरिए सरकार ने रूल ऑफ लॉ को बिहार में कायम किया था. लेकिन इन कुछ वर्षों में काफी कुछ बदल गया है. अब फिर से कानून व्यवस्था को लेकर सवाल उठने लगे हैं. ऐसे में उसके पीछे की वजह स्पीडी ट्रायल में कमी आने को बताया जा रहा है.
अब नहीं बचेंगे अपराधी: पहले के आंकड़ों पर ध्यान दे तो साल 2006 में कुल दोषियों की संख्या 6,839, साल 2007 में 9,853, साल 2008 में 12,007, साल 2009 में 13,146 और साल 2010 में 14,311 रही, जो शुरू में बढ़ते क्रम को दर्शा रहा है. लेकिन बाद में यह संख्या घटने लगी और साल 2016 में इसकी संख्या घटकर मात्र 5,508 हो गई. आंकड़ों से साफ है कि साल 2006 से 2010 तक बिहार में कानून का राज स्थापित करने के लिए कितनी मेहनत की गई. इसका असर भी उस समय दिखने लगा था. नीतीश कुमार का वो पहला टर्म था और लोगों को लगने लगा था कि बिहार में अब कानून का राज स्थापित हो गया. लेकिन दूसरे टर्म में स्पीडी ट्रायल या अपराधियों को सजा दिलाने में कमी आने लगी.
पुलिस ने की बड़ी तैयारी: एक बार फिर से राज्य सरकार के निर्देश पर बिहार पुलिस इन दिनों फिर से अपने जंग लगे हथियार को साफ करने में जुटी है. बिहार पुलिस के द्वारा इन दिनों लगातार अपराधियों को स्पीडी ट्रायल करवा कर सजा दिलवाने का काम किया जा रहा है. साल 2020_21 की तुलना में साल 2022 में ज्यादा से ज्यादा अपराधियों को सजा दिलाई गई है. इस मुहिम को साल 2023 में और मजबूत करने का निर्णय लिया गया है. पुलिस मुख्यालय ने दावा किया है कि कोरोना काल के बाद बिहार अपराधियों को सजा दिलाने के मामले में तेजी आई है.
"स्पीडी ट्रायल की रफ्तार बढ़ी है. कोरोना की वजह से कोर्ट में अपराधियों के खिलाफ चल रहे केसों का ट्रायल प्रभावित हुआ था पर अब ट्रायल में तेजी आई है. यही वजह है कि पिछले साल 2022 में नाबालिग बच्चों के साथ रेप करने के मामलों के आरोपियों को पॉक्सो एक्ट के तहत काफी संख्या में सजा दिलाई गई है. पिछले साल पॉक्सो, NDPS और SC-ST एक्ट के तहत कुल 3065 अपराधियों को बिहार पुलिस ने सजा दिलाई है."- जितेंद्र सिंह गंगवार,एडीजी, पुलिस मुख्यालय
पॉक्सो एक्ट के तहत हुई अपराधियों को सजा: आपको बता दें कि पॉक्सो एक्ट के अलावे नशे के सौदागरों के साथ-साथ sc-st मामले में काफी लोगों को सजा दिलाई गई है. पिछले 6 सालों में इस एक्ट के तहत कुल 1538 अपराधियों को सजा दिलाई गई. पॉक्सो एक्ट के तहत 4 साल में कुल 572 अपराधियों को सजा दिलाई गई है. मतलब, हर साल 143 अपराधियों को ही सजा कोर्ट से मिल रही थी. ये आंकड़ा 2017 से 2020 तक का है. लेकिन, 2021 में इस एक्ट के तहत अपराधियों को कोर्ट से सजा दिलाने में इजाफा हुआ.
चार साल में 284 अपराधी नपे: साल 2021 में 317 अपराधियों को सजा दी लाई गई, जबकि, 2022 में आकंड़ा काफी बढ़ गया. पिछले साल 649 अपराधियों को पुलिस ने कोर्ट से सजा दिलवाया. वहीं SC-ST एक्ट के तहत 2017 से 2020 तक में हर साल औसतन 71 लोगों को सजा दिलाई गई. मतलब, 4 सालों में कुल 284 अपराधियों को सजा पुलिस ने दिलवाई.
साल 2022 तक बड़ा एक्शन: ADG ने दावा किया कि पिछले साल 2022 में इस एक्ट के तहत भी सजा दिलाने का औसत तीन गुना से भी अधिक बढ़ा.पिछले साल कुल 339 अपराधियों को इस एक्ट के तहत सजा दिलाई गई. पिछले 6 सालों में कुल 623 को सजा मिली है. SC-ST एक्ट के तहत 2017 से 2020 तक में हर साल औसतन 71 लोगों को सजा दिलाई गई. मतलब, 4 सालों में कुल 284 अपराधियों को सजा पुलिस ने दिलवाई. ADG ने दावा किया कि पिछले साल 2022 में इस एक्ट के तहत भी सजा दिलाने का औसत तीन गुना से भी अधिक बढ़ा. पिछले साल 2022 में कुल 339 अपराधियों को इस एक्ट के तहत सजा दिलाई गई.
64 को उम्रकैद: आंकड़ों की बात करें तो पोक्सो एक्ट के तहत साल 2017 में बिहार पुलिस के द्वारा 108 अपराधियों को सजा दिलाई गई थी. वहीं साल 2018 में 127, साल 2019 में 212 साल 2020 में 126 साल 2021 में 317 और साल 2022 में यह आंकड़ा बढ़ता 649 पहुंच गया है. साल 2022 में 5 अपराधी को मौत की सजा तो वही 108 अपराधी को उम्र कैद की सजा सुनाई गई है. ठीक उसी प्रकार एनडीपीएस एक्ट के तहत साल 2017 में 126 अपराधियों को सजा दी गई है. वहीं साल 2018 में 160 साल 2019 में 189 साल 2020 में 75 साल 2021 में 160 साल 2022 में 249 अपराधियों को सजा दिलाई गई है . एससी एसटी एक्ट के तहत साल 2017 में 79 अपराधियों को सजा दिलाई गई है तो 1 साल 2018 में 1 साल 2019 में 96 साल 2020 में 48 साल 2021 में 99 और साल 2022 में कुल 339 अपराधियों को सजा दिलाई गई है जिसमें से एक अपराधी को सजा-ए-मौत और 64 अपराधी को उम्र कैद की सजा सुनाई गई है.
बिहार में क्राइम रेट में कमी: कुल मिलाकर बात करें तो अपराधिक वारदातों में लगाम लगाने के लिए एक बार बिहार पुलिस के द्वारा स्पीडी ट्रायल कर अपराधियों को सजा दिलाने की मुहिम चलाई जा रही है. पुलिस मुख्यालय के एडीजी जितेंद्र सिंह गंगवार की माने तो इन आंकड़ों का मतलब यह नहीं कि बिहार में क्राइम बढ़ा है. जिन अपराधियों को सजा दिलाई गई है, उनके केस पहले से ट्रायल में चल रहे थे. जो पेंडिंग पड़े हुए थे. पुलिस मुख्यालय ने दावा किया कि स्पीडी ट्रायल के तहत कोर्ट में अपराधियों को सजा दिलाने के इस रफ्तार में अब कमी नहीं आएगी. तेजी के साथ पेंडिंग केसों को निपटाया जाएगा और अपराधियों को सजा दिलाई जाएगी. जिससे बिहार में क्राइम रेट में कमी आएगी.
बिहार के पूर्व डीजीपी अभयानंद ने ईटीवी भारत से टेलिफोनिक बातचीत के दौरान बताया कि साल 2005 से 10 के दौरान अपराधिक वारदातों में कमी आने का सबसे मुख्य कारण अपराधियों को सजा दिलाना था जिसमें बाद में काफी कमी देखने को मिली थी. यही कारण था कि अपराधियों के हौसले बुलंद होते चले गए और आपराधिक वारदातों में भी वृद्धि हुई. हालांकि एक बार फिर से बिहार पुलिस के द्वारा अपराधियों को सजा दिलाने का काम किया जा रहा है जिससे बिहार में क्राइम कंट्रोल में बड़ी सफलता मिलेगी.