पटना: चुनाव आयोग की सक्रियता के बाद से बिहार विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है. प्रदेश के सभी सियासी दल कोरोना संकट के बीच डिजिटल और अन्य माध्यमों के सहरे से जनता से जुड़ रही है. बीजेपी ने वर्चुअल रैली का प्रयोग कर अपनी मंशा जाहिर कर दी है. लेकिन इन सब के बीच चुनावी रणनीतिकार और सोशल मीडिया के महारथी कहे जाने वाले प्रशांत किशोर चुनाव से पूर्व बिहार की राजनीति में कहीं नहीं दिख रहे हैं.
कोरोना महामारी के कारण लगभग सभी सियासी दल डिजिटल माध्यम का सहारा ले रही है. इस समय डिजिटल का बोलबाला नजर भी आ रहा है. ऐसे में डिजिटल के महारथी प्रशांत किशोर फिलहाल बिहार विधानसभा चुनाव के सीन से पूरी तरह से गायब हैं. खास बात यह है कि पीके को बिहार की प्रमुख पार्टियां भी अब वो तवज्जों नहीं दे रही है. जिसके लिए प्रशांत किशोर जाने जाते थे. हालांकि, यदा-कदा वे मोबाइल पर बिहार बदलने का दावा करते हुए नजर आ रहे हैं.
'बिहार में नहीं मिल रहा तव्ज्जों'
बीजेपी सोशल मीडिया के प्रभारी मनन कृष्ण बताते हैं कि चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर जब जदयू में शामिल हुए थे. उन्होंने 10 साल तक बिहार में रहने की बात कही थी. सीएम नीतीश ने उन्हें जदयू का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर जदयू में नंबर दो की कुर्सी भी दी थी. लेकिन कुछ समय में ही जदयू नेताओं की नाराजगी के कारण पीके को बिहार से बाहर जाना पड़ा. लोकसभा चुनाव में जिस प्रकार से प्रशांत किशोर ने रवैया अपनाया था. उसके बाद खुद नीतीश कुमार उनसे खफा चल रहे थे. पार्टी स्टैंड के खिलाफ बयान देने के कारण नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को जदयू से बाहर का रास्ता दिखाया था.
मदन कृष्ण ने कहा कि बिहार की राजनीतिक पार्टियां भी अब प्रशांत किशोर को खास तवज्जों नहीं दे रही है. प्रशांत सीएम नीतीश के साथ तालमेल नहीं बिठा सके थे. इस वजह से ज्यादतर दलों को लगता है कि कहीं प्रशांत आगे चलकर उनके प्रतिद्वंदी नहीं बन जाए.
'पीके को पता है कि बिहार की जनता का मूड'
जदयू से निकाले जाने के बाद प्रशांत किशोर जब फिर से बिहार आए तो उन्होंने नए तेवर और कलेवर के साथ बिहार बदलने की बात कही थी. जदयू नेता राजीव रंजन बताते हैं कि प्रशांत किशोर की भूमिका केवल सोशल साइट पर नीतीश कुमार और केंद्र सरकार के खिलाफ ट्वीट करने तक रह गया है. बिहार की राजनीतिक पार्टियां प्रशांत किशोर को तवज्जो नहीं दे रही हैं.
उन्होंने कहा कि जिस डिजिटल में प्रशांत किशोर माहीर हैं. बिहार विधानसभा चुनाव में उसी का जादू चलना है. डिजिटल प्रचार-प्रशार हो रहा है. बावजूद डिजिटल के माहारथी के इस चुनाव में कोई पूछ नहीं हैं. जदयू प्रवक्ता राजीव रंजन का कहना है कि दरअसल, प्रशांत किशोर को मालूम हैं कि आगामी विधानसभा चुनाव में बिहार की जनता क्या चाहती है. इस वजह से वे इस चुनाव से दूरी बनाए हुए हैं.
2015 के चुनाव में नीतीश के साथ थी दोस्ती
विधानसभा चुनाव 2015 के चुनाव में नीतीश कुमार को फिर से मुख्यमंत्री बनाने में प्रशांत किशोर की अहम भूमिका थी. हालांकि, जदयू में प्रशांत का सिक्का ज्यादा दिनों तक नहीं चला. प्रशांत को बीजेपी और जदयू की दोस्ती भी समय-समय पर अखड़ती थी. प्रशांत जिस कला में माहीर थे उसी माध्यम को हथियार बनाकर केंद्रिय गृहमंत्री ने बिहार विधानसभा चुनाव का बिगुल फूंक दिया है. इस विधानसभा चुनाव में डिजिटल का जादू चलना तय है. बावजूद प्रशांत किशोर कि इस चुनाव में उपस्तिथि की कमी की बड़ी वजह बिहार में एनडीए की दमदार उपस्थिति मानी जा रही है.
सोशल साइट पर मौजूद है पीके
गौरतलब है कि जदयू से नाता टूटने के बाद प्रशांत किशोर ने 18 फरवरी को ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा था कि वे बिहार में न तो नई पार्टी बनाएंगे और न ही किसी गठबंधन के लिए काम करेंगे. वे 'बिहार की बात' कार्यक्रम की शुरूआत करने जा रहे हैं. उस समय उन्होंने नीतीश कुमार के विकास के दावों की हवा निकाल दी थी. उन्होंने कहा था कि पूरे देश में 2005 को बिहार जिस स्थान पर खड़ा था आज भी विकास के मामले में पूरे देश में वहीं खड़ा है.
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बता दें कि 'बात बिहार की' कार्यक्रम को लेकर पीके ने बड़े पैमाने पर युवाओं को जोड़ने का दावा किया था. मुखिया तक के चुनाव में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की बात कही थी. इसके लिए उन्होंने 40 से 50 लोगों की टीम को बिहार में काम पर भी लगाया था. लेकिन वर्तमान हालत कुछ इस कदर से बदले की खुद प्रशांत ही चुनाव से गायब नजर आ रहे हैं. मिल रही जानकारी के अनुसार बिहार की नब्ज टटोलने के बाद पीके ने पनी पूरी टीम को बंगाल और तमिलनाडु शिफ्ट कर दिया. इस बात की जानकारी हार में उनके लिए काम करने वाले शिवा जी ने जानकारी दी है. शिवा जी का कहना है कि कोरोना महामारी के कारण टीम ग्राउंड पर एक्टिव नहीं है. लेकिन ट्विटर और फेसबुक पर अभियान चल रहा है.