पटना: बिहार में जातीय गणना का दूसरा चरण (Second phase of caste census in Bihar ) शुरू हो गया है. 15 मई तक जातीय गणना होगी. उसके बाद क्या होगा. इस पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि रिपोर्ट तैयार होने के बाद उसे विधानसभा और विधान परिषद में चर्चा के लिए रखा जाएगा और फिर उसके बाद सार्वजनिक की जाएगी. इसमें कुछ समय लग सकता है, लेकिन किसी को भ्रम में नहीं रहना चाहिए. परेशान नहीं होना चाहिए. क्योंकि अपर कास्ट को पहले से 10% आरक्षण मिला हुआ है और 50% आरक्षण पिछड़ा अति पिछड़ा और एससी एसटी को दिया गया है. लेकिन हम लोग पूरी स्थिति रख देंगे.
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रिपोर्ट जारी करने का आश्वासनः मुख्यमंत्री ने यह भी कहा है कि इससे जातियों की सही स्थिति और उनकी आर्थिक स्थिति क्या है. इसका पता चलेगा और आर्थिक स्थिति के आधार पर आगे की योजना बनाने में मदद मिलेगी. मुख्यमंत्री ने ऐसे तो साफ कहा है कि विधानसभा में पेश होगा और उसके बाद सार्वजनिक की जाएगी. इसमें कुछ समय लग सकता है. जदयू और आरजेडी के नेता भी कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री ने ही कह दिया है कि जारी होगी तो जरूर जारी होगी. लेकिन बीजेपी इसे राजनीति बता रही है.वहीं विशेषज्ञ कह रहे हैं कि जातीय गणना के बाद हक और हिस्सेदारी की मांग उठेगी और चुनावी साल में इसका लाभ लेने की कोशिश होगी.
राजनीतिक लाभ के लिए हो रही जातीय जनगणनाः राजनीतिक जानकार अरुण पांडे का कहना है चुनावी साल में राजनीतिक लाभ के लिए जातीय गणना हो रही है. क्योंकि अगले साल मार्च-अप्रैल में लोकसभा का चुनाव होगा और फिर 2025 में विधानसभा का चुनाव, तो लाभ लेने की कोशिश होगी. जातीय गणना में इस बार भी उपजाति की गणना नहीं हो रही है, लेकिन एक बार यदि जाति की गणना हो जाएगी तो उसके बाद हक और हिस्सेदारी की मांग भी बढ़ेगी. ऐसे कर्नाटक में 8 साल बाद भी जातीय गणना की रिपोर्ट जारी नहीं की गई. केंद्र सरकार ने भी 55 सौ करोड़ खर्च करने के बाद भी जातीय जनगणना की रिपोर्ट जारी नहीं की. अब मुख्यमंत्री ने कहा है कि हम रिपोर्ट जारी करेंगे तो देखने वाली बात होगी और यह दिलचस्प भी होगा की रिपोर्ट किस तरह का होता है.
"चुनावी साल में राजनीतिक लाभ के लिए जातीय गणना हो रही है. क्योंकि अगले साल मार्च-अप्रैल में लोकसभा का चुनाव होगा और फिर 2025 में विधानसभा का चुनाव, तो लाभ लेने की कोशिश होगी. जातीय गणना में इस बार भी उपजाति की गणना नहीं हो रही है, लेकिन एक बार यदि जाति की गणना हो जाएगी तो उसके बाद हक और हिस्सेदारी की मांग भी बढ़ेगी"- अरुण पांडे, राजनीतिक विशेषज्ञ
बीजेपी को सीएम की बात पर भरोसा नहींः जदयू प्रवक्ता राहुल शर्मा का कहना है कि मुख्यमंत्री ने ही कह दिया है कि रिपोर्ट जारी होगी तो जरूर जारी होगी. मकसद साफ है जो आर्थिक रूप से पिछड़े हैं, उनका भी विकास करना है. बीजेपी प्रवक्ता अजफर शमशी को मुख्यमंत्री के बयान पर भरोसा नहीं है और इसलिए शमशी का कहना है कि मुख्यमंत्री की उम्र हो गई है, वह क्या कहते हैं, वही जाने. जातीय गणना राजनीतिक मकसद से ही की जा रही है.
"मुख्यमंत्री ने ही कह दिया है कि रिपोर्ट जारी होगी तो जरूर जारी होगी. मकसद साफ है जो आर्थिक रूप से पिछड़े हैं, उनका भी विकास करना है"- राहुल शर्मा, प्रवक्ता जदयू
"मुख्यमंत्री के बयान पर भरोसा नहीं है और इसलिए शमशी का कहना है कि मुख्यमंत्री की उम्र हो गई है, वह क्या कहते हैं, वही जाने. जातीय गणना राजनीतिक मकसद से ही की जा रही है"- अजफर शमशी, प्रवक्ता बीजेपी
सोच के अनुरूप रिपोर्ट नहीं मिलने पर जातीय गणना जारी होगा मुश्किलः बिहार में अभी जातियों की आबादी जो दावा किया जाता है उसमें 52 फीसदी के करीब ओबीसी ईबीसी. 16 फीसदी के करीब एससी एसटी, 16.5 फीसदी के करीब मुस्लिम, 16 फीसदी के करीब सवर्ण हैं. लेकिन बिहार के राजनीतिक दलों को लगता है पिछड़ा और अति पिछड़ा की आबादी कहीं अधिक है. नीतीश कुमार भी अति पिछड़ा वर्ग के आरक्षण की सीमा बढ़ाने की मांग करते रहे हैं, लेकिन जातीय गणना में यदि सोच के अनुरूप आबादी की रिपोर्ट नीतीश कुमार को नहीं मिलेगी तो यह तय माना जा रहा है कि आसानी से मुख्यमंत्री रिपोर्ट जारी नहीं करेंगे. क्योंकि कर्नाटक में रिपोर्ट नहीं जारी करने का बड़ा कारण वहां की जातिगत स्थिति ही रही.
कर्नाटक में जारी नहीं हुई जातीय जनगणना की रिपोर्ट: कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने 2014-15 में जाति आधारित जनगणना का फैसला किया था. कर्नाटक सरकार ने 168 करोड़ की राशि उस समय जातीय गणना पर खर्च की थी. कर्नाटक में अचानक 192 से अधिक नई जातियां सामने आ गईं. लगभग 80 नई जातियां तो ऐसी थीं, जिनकी जनसंख्या 10 से भी कम थी. एक तरफ ओबीसी की संख्या में भारी वृद्धि हो गई तो दूसरी तरफ लिंगायत और वोक्कालिगा जैसे प्रमुख समुदाय के लोगों की संख्या घट गई और इसी के बाद कांग्रेस सरकार ने रिपोर्ट जारी नहीं की. बाद में बीजेपी की सरकार ने भी रिपोर्ट जारी करने की हिम्मत नहीं जुटाई.
अन्य राज्य में भी उठ रही जातीय जनगणना की मांगः 2011 में केंद्र सरकार की तरफ से भी बड़ी राशि खर्च कर जातीय जनगणना कराई गई. लेकिन रिपोर्ट जारी नहीं हुई और कहा गया है कि कई तरह की त्रुटि जातीय जनगणना रिपोर्ट में थी. वैसी स्थिति में अब बिहार में भी नीतीश सरकार जातीय गणना करा रही है. ऐसे तो जब एनडीए की सरकार थी उसी समय फैसला लिया गया था. अब महागठबंधन की सरकार है. जाति गणना कराने के लिए महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, राजस्थान तेलंगाना सहित कई राज्यों में मांग उठने लगी है. लेकिन जातीय गणना की रिपोर्ट बिहार में जारी होगी कि नहीं इस पर सवाल जरूर उठ रहे हैं .