पटनाः बिहार में लंबे समय से अधिकारी पदोन्नति से वंचित हैं. मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित होने के चलते सरकार प्रमोशन देने से परहेज कर रही थी, लेकिन सरकार ने त्योहार से पहले कर्मियों को प्रमोशन देने का फैसला लिया है. दो से तीन दिनों में सूची को अंतिम रूप दे दिया जाएगा. बिहार सरकार के ऐलान के बाद पदोन्नति में आरक्षण के मसले पर विवाद खड़ा हो गया है. मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने सरकार के मंशा पर सवाल खड़े किए हैं.
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पदोन्नति में आरक्षण से वंचित: भाजपा प्रवक्ता डॉक्टर योगेंद्र पासवान ने कहा है कि अनुसूचित जाति-जनजाति के कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण से वंचित करने का फैसला दलित विरोधी है. बिहार सरकार ने जो चिट्ठी जारी की है इसमें दो महीने में 76595 पदों को पदोन्नति से भरने के लिए आदेश जारी किया है. जबकि सामान्य प्रशासन विभाग में सभी विभाग के प्रमुख को फोन करके एक सप्ताह में चुपके से भरने को कहा है.
"सरकार ने क्रांतिकारी फैसला लिया है. इससे कर्मचारी में खुशी का माहौल है. सरकार आरक्षण का लाभ भी अधिकारियों को दे रही है लेकिन विपक्ष पूरे मसले पर सियासत कर रही है. नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की सरकार ने दलितों की चिंता की है."- एजाज अहमद, राजद प्रवक्ता
सरकार दलित विरोधीः योगेंद्र पासवान ने कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय ने 15 अप्रैल 2019 को सुनवाई के दौरान कहा था कि राज्य सरकार चाहे तो अनुसूचित जाति-जनजाति के कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण दे सकती है. मध्य प्रदेश और झारखंड में देने का काम भी किया है. बिहार सरकार ने अनुसूचित जाति-जनजाति कोट के सरकारी अधिकारियों को बगैर परिणामी वरीयता के पदोन्नति देने का फैसला लिया है जो पूरे तौर पर दलित विरोधी है.
पदोन्नति में आरक्षण की मांगः पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी भी पदोन्नति में आरक्षण का मुद्दा जोर-जोर से उठते रहे हैं. पार्टी के मुख्य प्रदेश प्रवक्ता विजय यादव ने कहा है कि नीतीश सरकार को पदोन्नति में आरक्षण देना चाहिए. अगर सरकार नहीं देती है तो यह माना जाएगा कि नीतीश सरकार दलित विरोधी है. इसके बाद इस मुद्दे को जोर शोर से उठाया जाएगा.
क्या है कैबिनेट का फैसलाः प्रत्येक संवर्ग में 83 प्रतिशत पदों पर पदोन्नति की जाएगी. जिन 17 प्रतिशत पदों को बाहर रखा जाएगा, उनमें से एक प्रतिशत एससी के लिए और शेष एसटी के लिए छोड़ दिए जाएंगे. इन्हें उच्चतम न्यायालय के अंतिम निर्णय के तहत भरा जाएगा. अगर उच्चतम न्यायालय कोई विपरीत आदेश देता है, तो जिन लोगों को नए फॉर्मूले के तहत पदोन्नत किया गया है, उन्हें पदावनति का सामना करना पड़ेगा. इस अवधि के दौरान उन्हें जो अतिरिक्त पारिश्रमिक दिया गया है वह उनसे नहीं वसूला जाएगा.