पटना: बिहार के लिए 24 नवंबर बड़ा दिन (15 Years of Nitish Government) है, जब बिहार में हुए कामकाज की उपलब्धियां (15 Saal Bemisal) गिनाई जा रही है. जनता दल यूनाइटेड (Janata Dal United) इसके लिए पूरे बिहार में काम कर रहा है. वहीं बीजेपी, प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक (BJP State Executive Meeting) कर रही है.इसमें आगे की रणनीति और योजना पर काम करने की नई तैयारी होगी कि आखिर बिहार में पार्टी की आगे की गतिविधि कैसी हो.
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यह सही है किसी भी मजबूत व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए पीछे की हुई गलतियों से सबक लेना और आगे के लिए मजबूत रणनीति बनाना सबसे बेहतर फार्मूला है. 2005 में जब नीतीश कुमार (Chief Minister Nitish Kumar) भाजपा के साथ मिलकर बिहार की सरकार बनाए थे, तो वर्तमान में केंद्र सरकार में मंत्री अश्विनी चौबे को नगर विकास मंत्री का प्रभार मिला था.
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सरकार बनने के तुरंत बाद पटना जंक्शन पर अश्विनी चौबे बुलडोजर लेकर नगर निगम के कचरे को घुमाने लगे और खुद बुलडोजर पर बैठ गए और यह कहा था कि बिहार में जो 15 सालों से कचरा जमा हुआ है, उसे हटाया जाएगा. उन्हीं की हां में हां मिलाते हुए अगले दिन नीतीश कुमार ने भी कहा था कि बिहार की हर गंदगी को खत्म करेंगे.
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संगठन संरचना सरकार का सहयोग और सहयोगियों के साथ चलने वाली सरकार का जो संकल्प था, वह 24 नवंबर 2021 को अलग-अलग रास्ते पर खड़ा है. सवाल इसलिए उठ रहा है कि कामकाज की जिस उपलब्धि को गिनाने के लिए जदयू जिलों में है, उसमें बीजेपी नहीं है. बीजेपी जहां पर है उसमें बिहार के लिए नई तैयारी की योजना बन रही है.
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अब सवाल यह उठ रहा है कि अकेले जदयू बिहार में है या बीजेपी भी उसके साथ है. बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि विकास की जिस बानगी को गाने की कहानी कही जा रही है, उसमें बिहार का दिल कहां है. दोनों दलों के साथ चला विकास आज भी पूछ रहा है कि 15 सालों में यह कहां आ गए हम. राही अलग हैं, सोच अलग है, समझ सरकार के मुद्दे पर भले एक कही जाए लेकिन जो मुद्दे बिहार में हैं, उनके दलों के नेताओं की राय भी अलग है.
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ऐसे में 15 सालों के जिस गठबंधन को लेकर के आज 15 साल के कामकाज का ब्यौरा जनता के बीच रखने का काम जदयू कर रहा है, उसमें बिहार के विकास की वह बानगी एक सवाल लिए खड़ी है कि आखिर इतने सालों में चल कर हम पहुंचे कहां हैं, चले साथ थे गिनती में अकेले अकेले हैं.
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राजनीतिक विभेद और विकास के मॉडल को अगर अलग कर दें तो इस बात की चर्चा पर ही विराम लग जाएगा कि गुजरात के विकास का मॉडल बेहतर (Narendra Modi's Gujarat model ) है या नीतीश कुमार के बिहार का मॉडल (Bihar Model Of Nitish Kumar). एक मॉडल जो बिहार में खड़ा है उसकी चर्चा नरेंद्र मोदी के उस दो इंजन वाली सरकार के साथ लगातार जुड़ता दिख रहा है, जिसका नेतृत्व नीतीश कुमार कर रहे हैं. भ्रष्टाचार के मुद्दे पर नरेंद्र मोदी किसी भी तरह के समझौते के मूड में नहीं है और नीतीश कुमार भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जीरो टॉलरेंस की नीति (Zero Tolerance Policy Against Corruption) रखते हैं.
लेकिन भ्रष्टाचार की जिस मुद्दे पर 15 सालों में विपक्ष ने सरकार पर सवाल खड़ा किया है, उसकी जिम्मेदारी किसके हिस्से जाएगी और यह सवाल इसलिए भी उठ रहा है क्योंकि जब इस तरीके के प्रश्न को जनता उठाती है तो बीजेपी और जदयू के नेता एक दूसरे का मुंह देख कर के यही बात कहते हैं कि यह कहां आ गए हम.. ऐसे साथ साथ चल के..
बिहार में जिम्मेदारियों की एक बहुत बड़ी हिस्सेदारी जदयू (JDU) को भी दी गई और बीजेपी (BJP) को भी. हालांकि जिन सालों की चर्चा हो रही है, उसमें राजद (RJD) के पाठ को भी छोड़ा नहीं जा सकता क्योंकि नीतीश को इसी बिहार के विकास के लिए लालू यादव (RJD President Lalu Yadav) का भी समर्थन मुख्यमंत्री बनने के लिए 2015 में मिला था. यह अलग बात है कि वह बहुत दूर तक चला नहीं.
लेकिन जिनके साथ दूरी तय की गई है उसी पर यह सवाल है कि सृजन घोटाले (Srijan Scam Bihar) का अंतिम स्वरूप 15 सालों में पूरा क्यों नहीं हुआ. सवाल यह भी उठ रहा है बिहार की शिक्षा व्यवस्था में अध्यापक सड़क पर खड़े हैं और नए बिहार को बनाने के लिए तैयार हैं. लेकिन सरकार लगातार इससे किनारा किए हुए हैं. जिन लोगों की जिम्मे में उच्च शिक्षा को सुधारने की जिम्मेदारी है, वह इतने बिगड़े हुए हैं कि उनके घर में जब अवैध पैसे की बात आती है तो गिनने के लिए आदमी कम पड़ जाते हैं, मशीन बनानी पड़ती है.
अब यह संरचना का सवाल इसलिए भी खड़ा हो रहा है कि किसी भी सभ्य समाज की स्थापना की मूल ही शिक्षा से शुरू होती है और अगर शिक्षा व्यवस्था का हाल यहां पहुंचा हुआ है तो अंदाजा लगाना सहज है कि हम पहुंचे कहां. अब किसके ऊपर यह आरोप लगेगा यह कहना मुश्किल है, क्योंकि सियासत अपने तरीके से इसका उत्तर तो खोज ही लेगी. अगर कोई उत्तर नहीं मिलेगा तो बिहार के उन सवालों का जिसकी पीड़ा लिए बिहार जी रहा है.
यह बात हमारे मन में भी है कि सरकार ने बिहार में जो किया है उसके लिए सम्मान में बड़े कसीदे गढ़ दिए जाएं, लेकिन सवाल यह भी है कि अवैध शराब से 100 लोगों से ऊपर जान गंवाने वाले (Poisonous Liquor Death In Bihar) लोगों को कहां ले जा कर रखा जाए. जो पिएंगे वह मरेंगे यह तो नीतीश कुमार ने कह दिया. लेकिन जिन की निगरानी में ऐसा नहीं होना है उनकी निगरानी इतनी कमजोर है कि लोग पी ले रहे हैं. तो उनके बारे में क्या कहा जाए?
अब इस हिसाब किताब को अगर बीजेपी और जेडीयू से पूछ लिया जाए तो एक दूसरे का चेहरा देखकर फिर यही पूछा जाएगा कि यह कहां आ गए हम बस ऐसे चलते चलते. बहरहाल सरकार के कामकाज के साथ नीतीश कुमार आज जहां पहुंचे हैं, निश्चित तौर पर यह सवाल सबके मन में है कि हम कहां आ गए और आगे कहां जाना है. इसके लिए नीतियां भी बन रही है.
इन तमाम मुद्दों पर नियति से काम करने की बात भी होगी क्योंकि नेताओं से ज्यादा बेहतर साफ नियत रखकर काम करने वाला इस देश में कोई है नहीं. अब बिहार में साफ नियति के साथ काम करने वाले नेताओं की नीति कितनी मजबूत हो पाती है यह तो भविष्य के गर्त में है. लेकिन एक बात साफ है कि दर्द बाढ़ का हो या कटाव का, बच्चों के पढ़ने का हो या फिर विश्वविद्यालयों में लूटे जा रहे पैसे का या फिर शराब पीकर जान दे रहे लोगों का, अगर सब कुछ नियम के अनुसार है तो यह भी सही है कि यहीं आ गए हैं हम.
अब आगे की कहानी विकास की उसी रूप में है जो बताने में कुछ अलग है और हकीकत में कुछ अलग. अब नेता है तो बात बता ही देंगे लेकिन जमीन पर उतर कर के यह देखने की जरूरत जरूर है कि आज जिन सालों की दुहाई देकर वाहवाही लूटने का काम हो रहा है, उसमें मिलने वाला हर गुलदस्ता बिहार में बने हालात का एक ऐसा चश्मदीद गवाह है, जो समय पर उस हर सवाल का उत्तर मांगेगा. जो आज विकास के रूप में जोड़ा जा रहा है और सवालों में एक दूसरे से कहा भी जा रहा है कि लो.. यहां आ गए हम..
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