पटना: बिहार में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं. इसको लेकर अभी से तैयारियां जोर शोर से जारी हैं. राजनीतिक दल चुनावी साल में जयंती और पुण्यतिथि के जरिए वोट बैंक जुटाते नजर आ रहे हैं. खासकर पिछड़े समाज को लुभाने के लिए वैसी विभूतियों और राजनीतिक हस्तियों की जयंती और पुण्यतिथि मनाई जा रही है, जिनकी किसी खास जाति में अलग पहचान रही है.
हालांकि, राजनीतिक दल इस बात को खारिज कर रहे हैं. आरजेडी विधायक विजय प्रकाश का कहना है कि 1990 के बाद लालू प्रसाद के प्रभाव के कारण पार्टी तमाम पिछड़े, दलित और महादलित समाज के विभूतियों की जयंती और पुण्यतिथि मनाती आ रही है. उनका कहना है कि आज सभी दल आरजेडी के इस कार्य का अनुसरण कर रहे हैं.
कांग्रेस की राय अलग
जयंती और पुण्यतिथि के बहाने वोट बैंक जुटाने की बात पर कांग्रेस की अपनी अलग राय है. कांग्रेस प्रवक्ता राजेश राठौर का मानना है कि किसी भी दल के लोग किसी की भी जयंती या पुण्यतिथि मना सकते हैं. लेकिन, सिर्फ पुण्यतिथि वोट बैंक के लिए मनाना बिल्कुल गलत है. जब तक पार्टी के सिद्धांत में उन महापुरुषों का सिद्धांत समाहित नहीं होता तब तक पुण्यतिथि या जयंती मनाना महज अवसरवादी होना है.
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नहीं होगा राजनीतिक दलों को फायदा- जानकार
इस मामले पर एन सिन्हा के प्रोफेसर और राजनीतिक जानकार डीएम दिवाकर कहते हैं कि राज्य की जनता भोली नहीं है. वे अच्छे से समझती है कि जो लोग कल तक जिस महापुरुष या विभूति का विरोध करते थे, आज क्यों उनकी जयंती या पुण्यतिथि मना रहे हैं. उनका कहना है कि पुण्यतिथि और जयंती मनाकर राजनीतिक दल पिछड़ों और दलितों के बीच जरूर पहुंच सकते हैं. लेकिन, उनका वोट नहीं ले सकते. जनता समझदार है. जब तक पिछड़े समाज के बुनियादी मुद्दों का हल नहीं होगा, वे किसी दल के साथ नहीं जाएंगे.