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जयंती और पुण्यतिथि के बहाने वोट बैंक पर निशाना! जानकार बोले- नहीं पड़ेगा फर्क, पब्लिक सब जानती है

चुनावी साल के मद्देनजर बिहार में जयंती और पुण्यतिथि मनाने का सिलसिला जोर शोर से जारी है. लेकिन, राजनीतिक दल इस बात को खारिज कर रहे हैं कि कार्यक्रम के बहाने वोटर बढ़ाए जा रहे हैं.

जयंती और पुण्यतिथि के कार्यक्रम
जयंती और पुण्यतिथि के कार्यक्रम
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Published : Feb 9, 2020, 4:51 PM IST

पटना: बिहार में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं. इसको लेकर अभी से तैयारियां जोर शोर से जारी हैं. राजनीतिक दल चुनावी साल में जयंती और पुण्यतिथि के जरिए वोट बैंक जुटाते नजर आ रहे हैं. खासकर पिछड़े समाज को लुभाने के लिए वैसी विभूतियों और राजनीतिक हस्तियों की जयंती और पुण्यतिथि मनाई जा रही है, जिनकी किसी खास जाति में अलग पहचान रही है.

हालांकि, राजनीतिक दल इस बात को खारिज कर रहे हैं. आरजेडी विधायक विजय प्रकाश का कहना है कि 1990 के बाद लालू प्रसाद के प्रभाव के कारण पार्टी तमाम पिछड़े, दलित और महादलित समाज के विभूतियों की जयंती और पुण्यतिथि मनाती आ रही है. उनका कहना है कि आज सभी दल आरजेडी के इस कार्य का अनुसरण कर रहे हैं.

patna
विजय प्रकाश और राजेश राठौर

कांग्रेस की राय अलग
जयंती और पुण्यतिथि के बहाने वोट बैंक जुटाने की बात पर कांग्रेस की अपनी अलग राय है. कांग्रेस प्रवक्ता राजेश राठौर का मानना है कि किसी भी दल के लोग किसी की भी जयंती या पुण्यतिथि मना सकते हैं. लेकिन, सिर्फ पुण्यतिथि वोट बैंक के लिए मनाना बिल्कुल गलत है. जब तक पार्टी के सिद्धांत में उन महापुरुषों का सिद्धांत समाहित नहीं होता तब तक पुण्यतिथि या जयंती मनाना महज अवसरवादी होना है.

ये भी पढ़ें: पटना: स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में जापान की NEC कंपनी के साथ बिहार सरकार की साझेदारी

नहीं होगा राजनीतिक दलों को फायदा- जानकार
इस मामले पर एन सिन्हा के प्रोफेसर और राजनीतिक जानकार डीएम दिवाकर कहते हैं कि राज्य की जनता भोली नहीं है. वे अच्छे से समझती है कि जो लोग कल तक जिस महापुरुष या विभूति का विरोध करते थे, आज क्यों उनकी जयंती या पुण्यतिथि मना रहे हैं. उनका कहना है कि पुण्यतिथि और जयंती मनाकर राजनीतिक दल पिछड़ों और दलितों के बीच जरूर पहुंच सकते हैं. लेकिन, उनका वोट नहीं ले सकते. जनता समझदार है. जब तक पिछड़े समाज के बुनियादी मुद्दों का हल नहीं होगा, वे किसी दल के साथ नहीं जाएंगे.

पटना: बिहार में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं. इसको लेकर अभी से तैयारियां जोर शोर से जारी हैं. राजनीतिक दल चुनावी साल में जयंती और पुण्यतिथि के जरिए वोट बैंक जुटाते नजर आ रहे हैं. खासकर पिछड़े समाज को लुभाने के लिए वैसी विभूतियों और राजनीतिक हस्तियों की जयंती और पुण्यतिथि मनाई जा रही है, जिनकी किसी खास जाति में अलग पहचान रही है.

हालांकि, राजनीतिक दल इस बात को खारिज कर रहे हैं. आरजेडी विधायक विजय प्रकाश का कहना है कि 1990 के बाद लालू प्रसाद के प्रभाव के कारण पार्टी तमाम पिछड़े, दलित और महादलित समाज के विभूतियों की जयंती और पुण्यतिथि मनाती आ रही है. उनका कहना है कि आज सभी दल आरजेडी के इस कार्य का अनुसरण कर रहे हैं.

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विजय प्रकाश और राजेश राठौर

कांग्रेस की राय अलग
जयंती और पुण्यतिथि के बहाने वोट बैंक जुटाने की बात पर कांग्रेस की अपनी अलग राय है. कांग्रेस प्रवक्ता राजेश राठौर का मानना है कि किसी भी दल के लोग किसी की भी जयंती या पुण्यतिथि मना सकते हैं. लेकिन, सिर्फ पुण्यतिथि वोट बैंक के लिए मनाना बिल्कुल गलत है. जब तक पार्टी के सिद्धांत में उन महापुरुषों का सिद्धांत समाहित नहीं होता तब तक पुण्यतिथि या जयंती मनाना महज अवसरवादी होना है.

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नहीं होगा राजनीतिक दलों को फायदा- जानकार
इस मामले पर एन सिन्हा के प्रोफेसर और राजनीतिक जानकार डीएम दिवाकर कहते हैं कि राज्य की जनता भोली नहीं है. वे अच्छे से समझती है कि जो लोग कल तक जिस महापुरुष या विभूति का विरोध करते थे, आज क्यों उनकी जयंती या पुण्यतिथि मना रहे हैं. उनका कहना है कि पुण्यतिथि और जयंती मनाकर राजनीतिक दल पिछड़ों और दलितों के बीच जरूर पहुंच सकते हैं. लेकिन, उनका वोट नहीं ले सकते. जनता समझदार है. जब तक पिछड़े समाज के बुनियादी मुद्दों का हल नहीं होगा, वे किसी दल के साथ नहीं जाएंगे.

Intro:स्पेशल स्टोरी...
सब हेड...
चुनावी साल आते ही सभी राजनीतिक दल मनाने में जुटे हैं जयंती व पुण्यतिथि। पिछड़ो का वोट लेने में जुटे हैं सभी राजनीतिक दल। विशेषज्ञ का मानना है कि से नहीं मिलने वाला है कोई लाभ।

साल के अंत में बिहार विधानसभा चुनाव होना है। चुनावी साल आते हैं सभी राजनीतिक दल जयंती और पुण्यतिथि कार्यक्रम आयोजित करने लगे हैं। खासकर तीसरे समाज को लुभाने के लिए वैसे विभूतियों और राजनीतिक हस्तियों का जयंती या पुण्यतिथि मनाया जा रहा है जिनका किसी खास जाति में अलग पहचान रही है।


Body:हालांकि इस बाबत विपक्षी दलों और जानकारों की अपनी अलग अलग राय है। राजद विधायक विजय प्रकाश का मानना है, कि 1990 के बाद से लालू प्रसाद के प्रभाव के कारण तमाम पिछड़े दलित और महादलित के समाज से आने वाले बिहार विभूति आ महापुरुषों की जयंती पुण्यतिथि मना कर सम्मान करने का काम शुरू हुआ। लेकिन आज सभी दल इसका अनुसरण कर रहे हैं। लालू प्रसाद की पहचान सभी पिछड़ों और समाज के वंचितों के बीच शुरू से उनके हितेषी की रही है। आज भले मनुवादी पार्टी के लोग भी दलित महादलित और दूसरों के वोट बैंक के लिए इसका अनुसरण कर रहे हो। लेकिन जनता बेहतर ढंग से जानती है कि कौन पिछड़ों और वंचितों के लिए बेहतर है और जिन्होंने आज तक उनका शोषण किया है। राजद का मानना है कि चाहे कोई कितना भी जयंती या पुण्यतिथि मना ले लेकिन सभी पिछड़ों और दलितों का नेता सिर्फ लालू प्रसाद हैं।


Conclusion:इस मामले पर एन सिन्हा के प्रोफेसर व राजनीतिक जानकार डीएम दिवाकर का मानना है कि राज्य की जनता इतनी भोली नहीं है। वे समझती है कि जो लोग कल तक जिस महापुरुष या विभूति का विरोध करते थे आज उनका जयंती या पुण्यतिथि को मना रहे हैं। दिवाकर का मानना है कि पुण्यतिथि अ जयंती मनाकर आप पिछड़ों और दलितों के बीच पहुंच सकते हैं लेकिन उनका वोट नहीं ले सकते। क्योंकि जब तक पिछड़े समाज के बुनियादी मुद्दों का हल नहीं होगा वह तब तक नए राजनीतिक दलों के साथ नहीं जुड़ने वाले।

वह इस मुद्दे पर कांग्रेस की अपनी अलग राय है। कांग्रेस प्रवक्ता राजेश राठौर का मानना है कि किसी भी दल के लोग किसी की भी जयंती या पुण्यतिथि मना सकते हैं। लेकिन सिर्फ पुण्यतिथि वोट बैंक के लिए मनाना बिल्कुल गलत है। जब तक उनके पार्टी के सिद्धांत में उन महापुरुषों का सिद्धांत नहीं समाहित होता है तो उनका पुण्यतिथि या जयंती मनाने का मतलब अवसरवादी से ज्यादा कुछ नहीं है।
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