पटना: 'पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे तो बनोगे खराब'. लेकिन आज के परिवेश में यह कहावत उल्टा हो रहा है. बिहार के युवा खेल की दुनिया में कदम बढ़ाते हुए देश और दुनिया में नाम रोशन कर रहे हैं. इसी कड़ी में लखीसराय के रहने वाले रंजीत ने ताइक्वांडो में बिहार का नाम रोशन कर रहे हैं.
वर्ष 2008 में जूनियर नेशनल ताइक्वांडो चैंपियन में रंजीत ने बिहार को कांस्य पदक और वर्ष 2009 में नेशनल स्कूल गेम्स में भी कांस्य पदक दिलाया था. इसके बाद रंजीत ने बिहार राज्य ताइक्वांडो चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक प्राप्त किया.
रंजीत ताइक्वांडो को अपना लक्ष्य बनाकर कई गोल्ड मेडल जीत चुके हैं और इसके साथ ही रंजीत लगातार देश के पहले स्थान पर खेलते हैं. रंजीत ने बताया कि गांव के छोटे से ग्राउंड पर खेल कर आज यहां तक पहुंचे हैं. हालांकि, संघर्ष 2004 से जारी है और आगे और भी संघर्ष है, हालांकि, रंजीत के जो कोच थे अमित अब इस दुनिया में नहीं रहे. अपने कामयाबी का श्रेय रंजीत अपने कोच को ही देते हैं.
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रंजीत कहते हैं कि उनको लोग चिढ़ाते थे. जिसमें कहा जाता था कि यह लड़का कुछ नहीं कर पाएगा क्योंकि यह पढ़ता- लिखता नहीं है. लोफर बनकर घूमेगा. लेकिन हौसले बुलंद हो तो कामयाबी जरूर मिलती है. रंजीत 7 बार स्टेट चैंपियन रहे और पांच बार नेशनल चैंपियन रहे और दो बार भारत के लिए प्रतिनिधित्व कर चुके हैं, हालांकि रंजीत के जीवन में खेल कोई बाधा नहीं बना. साउथ एशियन गेम में भी सिल्वर मेडल पा चुके हैं, लेकिन खिलाड़ी ने बिहार सरकार से यह मांग किया है कि खिलाड़ियों के लिए अलग से कोटा दिया जाए जिससे के खिलाड़ी खेल के साथ जॉब भी कर सकें.
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छपरा के रहने वाले शूटर खिलाड़ी रंजन ने ईटीवी भारत से बातचीत की. इस दौरान उन्होंने बताया कि गांव में पढ़ाई और खेल का माहौल नहीं होने के कारण मनेर और पटना में रह कर उन्होंने अपने जीवन की शुरुआत की. उन्हें एनसीसी से काफी लाभ मिला. एनसीसी में तीन सालों तक उन्होंने शूटिंग का अभ्यास किया था. उसके बाद 2015 में पहली बार नेशनल खेले थे और कई बार लगतार नेशनल खेलते रहे. हालाकि, इसके लिए रंजन को काफी मेहनत करना पड़ता था. 2016 में स्टेट लेवल पर प्रदर्शन करके मेडल प्राप्त किया ,उसके बाद 2019 में एक संस्था के द्वारा मनेर में सम्मानित किया गया था. बता दें कि रंजन जिस गांव के निवासी हैं. उसी गांव के रहने वाले भिखारी ठाकुर को भोजपुरी के शेक्सपियर कहा जाता है.
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'मैंने पटना में रहकर ही अपना करियर की शुरआत किया. साथ ही मेरे खेल में किसी प्रकार की बाधा नहीं आई. लेकिन बिहार में आज भी खेल के ग्राउंड कम होने और संसाधनों की कमी होने के कारण खिलाड़ियों को थोड़ी सी परेशानी का सामना करना पड़ता है. बिहार में हर क्षेत्र में लड़के आगे हैं, सिर्फ सही माहौल मिले तो बिहार के नौजवान सभी क्षेत्र में परचम लहरा सकते हैं'. रंजन, खिलाड़ी