पटना: मसौढ़ी प्रखंड में इन दिनों अफ्रीकन स्वाइन फीवर (African Swine Fever in Patna) से सुअरों की मौत हो रही है. इस महामारी से डॉक्टर और पशुपालक दोनों में हड़कंप मचा है. अफ्रीकन स्वाइन फीवर एक सूअर से दूसरे सूअर को फैल रहा है. ऐसे में संक्रमित सूअरों की पहचान करके उन्हें वैज्ञानिक विधि से मारा ज रहा है.
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2 महीने में 90 सूअरों की मौत: इस वायरस के अटैक से 2 महीने के अंदर में मसौढ़ी प्रखंड के अंतर्गत विभिन्न मुशहरी में 90 से ज्यादा सूअरों की मौत (Pigs die of African Swine Fever) हो गई है. एतिहात के तौर पर प्रशासन ने पशु चिकित्सा विभाग के साथ बैठक कर संक्रमित सुअरो को वैक्सिंग लगाकर मारने के आदेश जारी कर दिए हैं. दौलतपुर पंचायत के फरीदाबाद बलियारी गांव में आज पहले दिन 10 सुअरो को वैज्ञानिक विधि से मारा गया है. वहीं सूअर पालकों को महामारी से निजात और आर्थिक नुकसान नहीं हो इसके लिए पशुपालन विभाग ने मुआवजे का भी ऐलान किया है. वजन के हिसाब से सभी सुअर पालकों को मुआवजा देने की व्यवस्था की गई है.
संक्रमित सूअरों को मारने के आदेश: जिला पशुपालन पदाधिकारी ने बताया कि मसौढ़ी प्रखंड के कई मुसहरी में लगातार सुअरों की मौत की सूचना मिल रही थी. सबसे पहले मसौढ़ी प्रखंड के चरमा पंचायत में 40 सूअरों की मौत हुई थी. उसका सैंपल भोपाल भेजा गया था उसके बाद अफ्रीकन स्वाइन फीवर की पुष्टि होने के बाद सभी मुसहरी में जो भी बचे हुए सूअर हैं उनको जिला प्रशासन के आदेश पर मारा जा रहा है.
"अफ्रीकन स्वाइन फीवर काफी तेजी से फैलता है. इसका इलाज नहीं है. भारत सरकार का सूअरों को मारने का निर्देश है."- डॉ मोहम्मद अली शब्बर, जिला पशुपालन पदाधिकारी
अफ्रीकन स्वाइन फीवर के लक्षण: जिला पशु चिकित्सा पदाधिकारियों ने कहा है कि विभिन्न मुसहरी में सुअरों की बस्ती में डोर टू डोर सर्वे किया जा रहा है. अफ्रीकन स्वाइन फीवर वाले सूअरों में तेज बुखार उल्टी और सांस लेने में तकलीफ दिखाई देती है. लक्षण मिलने पर उन्हें अन्य सुअरों से अलग कर वैज्ञानिक विधि से इंजेक्शन द्वारा मारा जा रहा है.
"सुअर पालकों से हम अपील करते हैं कि वे इस कार्य में सहयोग करें. यदि संक्रमित सूअर को नष्ट नहीं किया गया तो सभी सूअर इसके शिकार हो जाएंगे."- डॉ अशोक कुमार, अवर प्रमंडल पशुपालन पदाधिकारी
क्या है अफ्रीकन स्वाइन फ्लू: अफ्रीकन स्वाइन फ्लू अत्याधिक संक्रामक पशु रोग है. यह घरेलू और जंगली सुअरों को संक्रमित करता है. इससे संक्रमित सुअर एक प्रकार के तीव्र रक्तस्रावी बुखार से पीड़ित होते हैं. इस बीमारी को पहली बार 1920 के दशक में अफ्रीका में देखा गया था. इस रोग में मृत्यु दर 100 प्रतिशत के करीब होती है. इस बुखार का अभी तक कोई इलाज नहीं है. इसके संक्रमण को फैलने से रोकने का एकमात्र तरीका जानवरों को मारना है. वहीं जो लोग इस बीमारी से ग्रसित सूअरों के मांस का सेवन करते हैं उनमें तेज बुखार, अवसाद सहित कई गंभीर समस्याएं शुरू हो जाती हैं.