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प्रेमचंद रंगशाला में यक्षिणी नाटक के मंचन से कलाकारों ने जीत लिया दर्शकों का दिल - yakshani Drama

राजधानी के राजेंद्र नगर स्थित प्रेमचंद रंगशाला में कलाकारों द्वारा विनय कुमार की काव्य कृति यक्षिणी नाटक का मंत्रन किया गया. कलाकारों ने इस दोरान इस काव्य कृति की हर कथा का जीवंत चित्रण अपने नाटक में किया .

patna
विनय कुमार की काव्य कृति यक्षिणी नाटक का मंत्रन किया गया
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Published : Apr 4, 2021, 9:37 AM IST

पटना: राजधानी के राजेंद्र नगर स्थित प्रेमचंद रंगशाला में शनिवार को विनय कुमार की काव्य कृति यक्षिणी नाटक का मंचन किया गया. इस नाटक का निर्देशन संजय उपाध्याय ने किया था. यक्षिणी काव्य मौर्यकालीन मूर्ति के बहाने पुराने और रोज नए होते वन की यात्रा के बारे में है. इस यात्रा में कला से साक्षात्कार, इतिहास की पड़ताल और मिथक की अनिवार्य अंतरंगता के बोध के साथ ही सौंदर्य और प्रेम की आत्मीय यात्रा भी दिखाई देती है.

इसे भी पढ़े: बिहार स्थापना दिवस के अवसर पर ऐतिहासिक नाटक 'योगानंद' का किया गया मंचन

यक्षिणी नाटक का मंचन
यक्षिणी नाटक के बारे में कहा जाता है कि यह यात्रा से अधिक एक खोज के बारे में. मगर ये खोज अतीत की नहीं है, बल्कि अतीत के बहाने समय के सवालों और उनके उत्तर ढूंढने की भारतीय संस्कृति की मनोवैज्ञानिक पहल की है. यक्षिणी में कवि की यात्रा कथा का समापन एक मार्मिक चित्रण के साथ होता है. जिसमें बताया जाता है कि यक्षिणी की मूर्ति कब कैसे और कहां बनी. सन 1917 ईस्वी में ये दीदारगंज पटना में ही क्यों मिली? शनिवार को इस नाटक का मंचन करते हुए कलाकारों ने इन सभी सवालों को उठाया और इनके जवाब भी दिए.

देखें वीडियो

यक्षिणी के इतिहास के बारे में बताया
नाटक में परंपरा इतिहास और आधुनिकता के बीच एक संवाद चलता है. नाटक के दौरान कलाकारो ने मूर्ती के पुराने से नए संग्रहालय में जाने और उसकी फ्रांस यात्रा से जुड़े प्रसंग का जीवंत चित्रण किया. नाटक में कालाकारो ने दिखाया कि यक्षिणी रामगिरी पर आज तक अचेत पड़े यक्ष से मिलती है. नाटक में कलाकारो ने मौर्यकालीन परिवेश में रची गई काव्य कथा में बताई गई मूर्ती बनाने और उसके अंग-अंग की कथा का विस्तार से मंचन किया, जो देखने लायक था.

पटना: राजधानी के राजेंद्र नगर स्थित प्रेमचंद रंगशाला में शनिवार को विनय कुमार की काव्य कृति यक्षिणी नाटक का मंचन किया गया. इस नाटक का निर्देशन संजय उपाध्याय ने किया था. यक्षिणी काव्य मौर्यकालीन मूर्ति के बहाने पुराने और रोज नए होते वन की यात्रा के बारे में है. इस यात्रा में कला से साक्षात्कार, इतिहास की पड़ताल और मिथक की अनिवार्य अंतरंगता के बोध के साथ ही सौंदर्य और प्रेम की आत्मीय यात्रा भी दिखाई देती है.

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यक्षिणी नाटक का मंचन
यक्षिणी नाटक के बारे में कहा जाता है कि यह यात्रा से अधिक एक खोज के बारे में. मगर ये खोज अतीत की नहीं है, बल्कि अतीत के बहाने समय के सवालों और उनके उत्तर ढूंढने की भारतीय संस्कृति की मनोवैज्ञानिक पहल की है. यक्षिणी में कवि की यात्रा कथा का समापन एक मार्मिक चित्रण के साथ होता है. जिसमें बताया जाता है कि यक्षिणी की मूर्ति कब कैसे और कहां बनी. सन 1917 ईस्वी में ये दीदारगंज पटना में ही क्यों मिली? शनिवार को इस नाटक का मंचन करते हुए कलाकारों ने इन सभी सवालों को उठाया और इनके जवाब भी दिए.

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यक्षिणी के इतिहास के बारे में बताया
नाटक में परंपरा इतिहास और आधुनिकता के बीच एक संवाद चलता है. नाटक के दौरान कलाकारो ने मूर्ती के पुराने से नए संग्रहालय में जाने और उसकी फ्रांस यात्रा से जुड़े प्रसंग का जीवंत चित्रण किया. नाटक में कालाकारो ने दिखाया कि यक्षिणी रामगिरी पर आज तक अचेत पड़े यक्ष से मिलती है. नाटक में कलाकारो ने मौर्यकालीन परिवेश में रची गई काव्य कथा में बताई गई मूर्ती बनाने और उसके अंग-अंग की कथा का विस्तार से मंचन किया, जो देखने लायक था.

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