पटनाः चुनाव में विपक्ष को हराने के लिए नीतीश सरकार ने बड़ा ऐलान किया है. जिसमें एससी/एसटी परिवार के सदस्य की हत्या होने पर सरकार उस परिवार के एक सदस्य को नौकरी देगी. सरकार के इस फैसले को लेकर विपक्ष तो हमला बोल ही रहा है. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों को भी सरकार के इस फैसले पर एतराज है.
'विपक्ष को हराने के लिए मास्टर स्ट्रोक'
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस फैसले से समाज में भेदभाव बढ़ेंगे. अगर सरकार एससी/एसटी जाति के लिए कुछ करना चाहती है तो उन्हें किसी और रूप में मदद कर सकती है.
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एससी/एसटी के लोगों की हत्या पर सरकारी नौकरी का प्रावधान बना दिया है. हालांकि सरकार के इस फैसले को सभी जातियों ने सिर्फ घोषणा ही माना है.
'सरकार हमारे बच्चों को अच्छी शिक्षा दे'
पटना में रह रहे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों से ईटीवी भारत ने उनकी राय ली. उनका कहना है कि सरकार को हमारी जाति के लोगों को विकसित करने के लिए पहले हमारे बच्चों को अच्छी शिक्षा देनी चाहिए. तभी हम लोग आगे बढ़ेंगे. अब सरकार ने घोषणा की है कि हत्या होने पर नौकरी मिलेगी, तो क्या हमारे परिवार के लोग नौकरी पाने के लिए हत्या का इंतजार करें.
वहीं कुछ लोगों का कहना है कि जब भी चुनाव आता है तो सरकार की तरफ से इस तरह की घोषणा होती ही रहती है. पहले भी सरकार ने दलित को महादलित में बांटकर अपनी राजनीति चमकाई और फिर चुनाव होने वाला है तो हत्या पर नौकरी की बात कह रहे हैं.
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'चुनाव के लिए सरकार ने दलित कार्ड खेला है'
वहीं, सरकार के इस फैसले को राजनीतिक विशेषज्ञ सिर्फ चुनावी घोषणा मानते हैं. राजनीति के जानकार संजय कुमार कहते हैं कि जब नीतीश कुमार 2005 में बिहार की सत्ता पर काबिज हुए थे उस वक्त इस तरह की घोषणा करते तो लगता कि वो सच में इनके हिमायती हैं.
15 साल की सुशासन की सरकार में अब हत्या की बात क्यों सोच रहे हैं. सरकार तो हमेशा ही अपने को सुशासन का नारा देती आई है तो फिर हत्या कैसे हो सकती है. इसलिए हम समझते हैं कि ये सिर्फ चुनाव के लिए सरकार ने दलित कार्ड खेला है.