पटना: बाजार में बढ़ते चायनीज लाइट्स की डिमांड ने मिट्टी के दीयों की रोशनी को कम कर दिया है लेकिन इसकी धार्मिक मान्यता (Religious Importance Of Earthen Lamps) के कारण आज भी लोग दिवाली में मिट्टी के दीये जरूर जलाते हैं. ऐसे में दीपो के पर्व दीपावली को लेकर मिट्टी के दीये बनाने का काम गांवों में जोर-शोर से हो रहा है. कुम्हारों को उम्मीद है कि इस बार उनके दीयों से उनके आंगन में भी खुशियों के दीप जलेंगे.
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मिट्टी के दीयों का धार्मिक महत्व: हिंदू परंपरा में मान्यता है कि मिट्टी का दीपक जलाने से घर में सुख समृद्धि और शांति का वास होता है. मिट्टी को मंगल ग्रह का प्रतीक माना जाता है. मंगल साहस पराक्रम में वृद्धि करता है और तेल को शनि का प्रतीक माना जाता है. शनि को न्याय और भाग्य का देवता कहा जाता है. मिट्टी का दीपक जलाने से मंगल और शनि की कृपा प्राप्त होती है. इसके अलावा मां लक्ष्मी की कृपा बरसती है.
"आधुनिकता के इस दौर में भी हम सभी मिट्टी के दीये की पहचान को बरकरार रखे हैं. इस कारण हमारी इस बार कमाई की उम्मीद बढ़ गई है. पहले लोग पूजा पाठ के लिए सिर्फ 5 या 11 या 21 दीये खरीदते थे मगर इस दीपावली में दीयों की मांग बढ़ने की उम्मीद है."- रामानंद पंडित, कुम्हार
कुम्हारों की जगी आस: दिवाली में अब महज कुछ दिन ही शेष बचे हैं. इसके साथ ही कुम्हारों के चाक की रफ्तार तेज हो गई है. गांव में मिट्टी का बर्तन बनाने वाले कुम्हार दिन-रात मिट्टी का दीया बनाने का काम कर रहे हैं. कुम्हारों को उम्मीद है कि इस बार दीपावली पर लोगों के घर आंगन मिट्टी के दीये से रोशन होंगे और उनके कारोबार को दोबारा नई जिंदगी मिलेगी. करोना काल में इस कार्य से जुड़े लोग पिछले 2 सालों में भुखमरी का शिकार हो गए थे. दीये बनाने वाले रामानंद पंडित का कहना है कि इस बार बाजार में मिट्टी के दीयों की मांग बढ़ने की उम्मीद है. यही कारण है कि दिन रात दीये बनाने का काम किया जा रहा है.
चाइनीज लाइट्स ने दीयों की डिमांड पर डाला असर: आधुनिकता के दौर में चाइनीज बल्ब और रंग-बिरंगी मोमबत्ती की डिमांड ज्यादा होती है. लेकिन आज भी मिट्टी का दीयों की महत्ता कम नहीं हुई है. मिट्टी शुद्ध मानी जाती है और मिट्टी के दीये जलाने का पौराणिक महत्व है. वहीं इस बार वोकल फोर लोकल की अपील का भी असर देखने को मिल रहा है. लोग चाइनीज झालरों की बजाय मिट्टी के दीयों को प्राथमिकता दे रहे हैं.