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Bihar Caste Census : पटना हाईकोर्ट 1 अगस्त को सुनाएगा जातीय जनगणना पर फैसला

बिहार में जातीय जनगणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसले की घड़ी आ गई है. 1 अगस्त को 2023 को पहली पाली में पटना हाईकोर्ट इस पर अपना फैसला देगा. बता दें कि 5 दिनों की लगातार सुनवाई के बाद पटना हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा था.

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Published : Jul 31, 2023, 10:54 PM IST

पटना : बिहार की पटना हाई कोर्ट कल यानी की 1अगस्त 2023 को नीतीश सरकार द्वारा राज्य में 'जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण' को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला देगा. पटना हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के वी चंद्रन की खंडपीठ ने इस सम्बन्ध में 3 जुलाई 2023 से पांच दिनों की लम्बी सुनवाई पूरी कर निर्णय सुरक्षित रखा था.


ये भी पढ़ें- Bihar Caste Census: जातीय जनगणना पर बिहार सरकार को बड़ा झटका, अंतरिम रोक हटाने से सुप्रीम कोर्ट का इंकार

जातीय जनगणना पर आएगा फैसला : पिछली सुनवाई में राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता पी के शाही ने कोर्ट के समक्ष पक्ष प्रस्तुत किया था.उन्होंने कहा कि ये सर्वे है, जिसका उद्देश्य आम नागरिकों के सम्बन्ध आंकड़ा एकत्रित करना है, जिसका उपयोग उनके कल्याण और हितों के लिए किया जाना है. उन्होंने कोर्ट को बताया कि जाति सम्बन्धी सूचना, शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश या नौकरियां देने के समय भी दी जाती है. एडवोकेट जनरल शाही ने कहा कि जातियां समाज का हिस्सा हैं, उन्होंने कहा कि हर धर्म में अलग अलग जातियाँ होती है.

'80 फीसदी जनगणना का काम पूरा' : कोर्ट को बताया कि इस सर्वेक्षण के दौरान किसी भी तरह की कोई अनिवार्य रूप से जानकारी देने के लिए किसी को बाध्य नहीं किया जा रहा है. जातीय सर्वेक्षण का कार्य लगभग 80 फीसदी पूरा हो गया है. उन्होंने कहा कि ऐसा सर्वेक्षण राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में है.

हाईकोर्ट ने रोक लगाकर लगातार की थी सुनवाई : इससे पहले हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश देते हुए राज्य सरकार द्वारा की जा रही जातीय व आर्थिक सर्वेक्षण पर रोक लगा दिया था. कोर्ट ने ये जानना चाहा था कि जातियों के आधार पर गणना व आर्थिक सर्वेक्षण कराना क्या कानूनी बाध्यता है. कोर्ट ने ये भी पूछा था कि ये अधिकार राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार में है या नहीं. साथ ही ये भी जानना कि क्या इससे निजता का उल्लंघन होगा.

याचिकाकर्ता की दलील : पहले की सुनवाई में याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अभिनव श्रीवास्तव ने कोर्ट को बताया था कि राज्य सरकार ने जातियों और आर्थिक सर्वेक्षण करा रही है. याचिकाकर्ताओं की ओर से कोर्ट के समक्ष पक्ष प्रस्तुत करते हुए अधिवक्ता दीनू कुमार ने बताया कि सर्वेक्षण कराने का ये अधिकार राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र के बाहर है. ये असंवैधानिक है और समानता के अधिकार का उल्लंघन है.

'राज्य सरकार के पास अधिकार नहीं' : अधिवक्ता दीनू कुमार ने कोर्ट को ये भी बताया था कि राज्य सरकार जातियों की गणना व आर्थिक सर्वेक्षण करा रही हैं. उन्होनें ने बताया कि ये संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत है. दीनू कुमार ने कहा था कि प्रावधानों के तहत इस तरह का सर्वेक्षण केंद्र सरकार करा सकती है. ये केंद्र सरकार की शक्ति के अंतर्गत आता है. उन्होंने बताया था कि इस सर्वेक्षण के लिए राज्य सरकार पाँच सौ करोड़ रुपए खर्च कर रही है.

पटना : बिहार की पटना हाई कोर्ट कल यानी की 1अगस्त 2023 को नीतीश सरकार द्वारा राज्य में 'जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण' को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला देगा. पटना हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के वी चंद्रन की खंडपीठ ने इस सम्बन्ध में 3 जुलाई 2023 से पांच दिनों की लम्बी सुनवाई पूरी कर निर्णय सुरक्षित रखा था.


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जातीय जनगणना पर आएगा फैसला : पिछली सुनवाई में राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता पी के शाही ने कोर्ट के समक्ष पक्ष प्रस्तुत किया था.उन्होंने कहा कि ये सर्वे है, जिसका उद्देश्य आम नागरिकों के सम्बन्ध आंकड़ा एकत्रित करना है, जिसका उपयोग उनके कल्याण और हितों के लिए किया जाना है. उन्होंने कोर्ट को बताया कि जाति सम्बन्धी सूचना, शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश या नौकरियां देने के समय भी दी जाती है. एडवोकेट जनरल शाही ने कहा कि जातियां समाज का हिस्सा हैं, उन्होंने कहा कि हर धर्म में अलग अलग जातियाँ होती है.

'80 फीसदी जनगणना का काम पूरा' : कोर्ट को बताया कि इस सर्वेक्षण के दौरान किसी भी तरह की कोई अनिवार्य रूप से जानकारी देने के लिए किसी को बाध्य नहीं किया जा रहा है. जातीय सर्वेक्षण का कार्य लगभग 80 फीसदी पूरा हो गया है. उन्होंने कहा कि ऐसा सर्वेक्षण राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में है.

हाईकोर्ट ने रोक लगाकर लगातार की थी सुनवाई : इससे पहले हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश देते हुए राज्य सरकार द्वारा की जा रही जातीय व आर्थिक सर्वेक्षण पर रोक लगा दिया था. कोर्ट ने ये जानना चाहा था कि जातियों के आधार पर गणना व आर्थिक सर्वेक्षण कराना क्या कानूनी बाध्यता है. कोर्ट ने ये भी पूछा था कि ये अधिकार राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार में है या नहीं. साथ ही ये भी जानना कि क्या इससे निजता का उल्लंघन होगा.

याचिकाकर्ता की दलील : पहले की सुनवाई में याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अभिनव श्रीवास्तव ने कोर्ट को बताया था कि राज्य सरकार ने जातियों और आर्थिक सर्वेक्षण करा रही है. याचिकाकर्ताओं की ओर से कोर्ट के समक्ष पक्ष प्रस्तुत करते हुए अधिवक्ता दीनू कुमार ने बताया कि सर्वेक्षण कराने का ये अधिकार राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र के बाहर है. ये असंवैधानिक है और समानता के अधिकार का उल्लंघन है.

'राज्य सरकार के पास अधिकार नहीं' : अधिवक्ता दीनू कुमार ने कोर्ट को ये भी बताया था कि राज्य सरकार जातियों की गणना व आर्थिक सर्वेक्षण करा रही हैं. उन्होनें ने बताया कि ये संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत है. दीनू कुमार ने कहा था कि प्रावधानों के तहत इस तरह का सर्वेक्षण केंद्र सरकार करा सकती है. ये केंद्र सरकार की शक्ति के अंतर्गत आता है. उन्होंने बताया था कि इस सर्वेक्षण के लिए राज्य सरकार पाँच सौ करोड़ रुपए खर्च कर रही है.

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