पटना : उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अनुग्रह नारायण शोध संस्थान (AN Sinha Institute Patna) की राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान रही है. अमर्त्य सेन जैसे विद्वान शोध संस्थान में आते रहे हैं. धीरे-धीरे अनुग्रह नारायण शोध संस्थान की पहचान समाप्त होती जा रही है. बिहार सरकार संस्थान को लेकर गंभीर नहीं है. लिहाजा पिछले कई सालों से पूर्णकालिक निदेशक की नियुक्ति (Appointment of full Time Director) नहीं हो पाई है. रजिस्ट्रार के पद के लिए रिक्ति तो निकाली गई है लेकिन नियम-कानून को ताक पर रख दिया गया है.
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प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने किया था इसका उद्घाटन: अनुग्रह नारायण शोध संस्थान का उद्घाटन 31 जनवरी 1958 को देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने किया था. 8 अक्टूबर 1964 को अनुग्रह नारायण शोध संस्थान को एक स्वतंत्र इकाई के रूप में बिहार सरकार ने मान्यता दी. संस्थान बोर्ड ऑफ डायरेक्टर के देखरेख में काम करता है और बिहार सरकार के शिक्षा मंत्री इसके चेयरमैन होते हैं. बिहार सरकार शोध संस्थान को लेकर बहुत गंभीर नहीं है, संस्थान में पिछले कुछ सालों से पूर्णकालिक निदेशक नहीं है और नौकरशाह प्रभार में हैं. महीने में एक या दो दिन उनका संस्थान आना होता है. दूसरी तरफ सरकार ट्राइबल संस्थान कैंपस में हॉस्टल को तोड़कर बनाना चाहती थी लेकिन विरोध के बाद मामला ठंडे बस्ते में पड़ गया. सरकार ने संस्थान के बड़े भूभाग को रोड के लिए भी हस्तांतरित कर दिया. पिछले 4 वर्षों में 3 बार निदेशक पद के लिए नियुक्ति निकाली गई और दो बार यह कह दिया गया कि योग्य उम्मीदवार नहीं आए. चार वर्षों से संस्थान में निदेशक का पद खाली है और शिक्षा विभाग के सचिव स्तर के पदाधिकारी निदेशक के प्रभार में हैं. संपूर्ण क्रांति के नायक जयप्रकाश नारायण का संस्थान से गहरा जुड़ाव रहा था. वह इसके पहले अध्यक्ष भी रहे. जेपी आंदोलनों के दौरान ए एन सिन्हा संस्थान आते रहते थे और छात्रों के साथ विमर्श भी करते थे.
शोध संस्थान को लेकर सरकार है उदासीन: ताजा विवाद रजिस्ट्रार पद पर नियुक्ति को लेकर हुआ है.अनुग्रह नारायण सिन्हा शोध संस्थान के लिए जो 1964 में एक्ट बना उसकी धारा 7B के मुताबिक रजिस्ट्रार पद पर उसी व्यक्ति की नियुक्ति हो सकती है जो बिहार के किसी भी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बनने की अर्हता रखता हो. बिहार में प्रोफेसर की नियुक्ति के लिए अधिकतम उम्र सीमा 65 साल है. सरकार की ओर से रजिस्ट्रार पद के लिए जो वैकेंसी निकाली गई है उसमें नियमों की अनदेखी हुई है. रिटायरमेंट एज किसी खास व्यक्ति को लाभान्वित करने के लिए 67 साल कर दिया गया है. आपको बता दें कि बिहार राज्य के किसी भी स्वायत्त संस्थान विश्वविद्यालय और सचिवालय में नियमित नियुक्ति के लिए कुलसचिव के सेवानिवृत्ति की उम्र सीमा 62 साल है और अनुग्रह नारायण शोध संस्थान की पिछली नियुक्ति के लिए विज्ञापन जो कि 2021 में निकाला गया था. उसमें रिटायरमेंट के लिए आयु सीमा 62 साल रखी गई थी, लेकिन इस बार किन परिस्थितियों में 67 साल कर दिया गया है ये सबकी समझ से परे है.
सरकार के आदेश हैं परस्पर विरोधी : ईटीवी भारत के पास दोनों वैकेंसी के कागजात भी हैं जो इस बात को प्रमाणित करता है कि सरकार के आदेश में परस्पर विरोध है. शिक्षाविद और अवकाश प्राप्त प्रोफ़ेसर नवल किशोर चौधरी का कहना है कि बिहार सरकार की मंशा शोध संस्थान को लेकर ठीक नहीं है. नियम- कानून को ताक पर रखकर संस्थान चलाया जा रहा है. रजिस्ट्रार की नियुक्ति में भी जिस तरह का फरमान जारी किया गया है वह तुगलकी है. सरकार के ऐसे फरमान से अंतरराष्ट्रीय शोध संस्थान की छवि लगातार धूमिल हो रही है. सरकार ने अब तक पूर्णकालिक निदेशक नियुक्त करने की जहमत भी नहीं उठाई है. इसके लिए सीधे-सीधे सरकार में बड़े ओहदे पर बैठे लोग जिम्मेदार हैं. निदेशक के पद पर आसीन असंगबा चुबा आओ ने हमने बात करने की कोशिश की तो उन्होंने बात करने से इनकार किया.