पटना: बिहार की सभी हस्तकलाएं बेहतरीन हैं. कलाकृति में सफलता के लिए कड़ी मेहनत की आवश्यकता होती है. सच्ची साधना अंत में फलदायी होती है. बिहार की प्रसिद्ध पेपरमेसी और मधुबनी पेंटिंग कलाकार पद्मश्री सुभद्रा देवी (Madhbani Painting Artist Padmshree Subhdra Devi) ने बिहार राज्य खादी ग्रामोद्योग बोर्ड की ओर से आयोजित ग्रामोद्योग विमर्श कार्यक्रम में कहीं. उन्होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रोंं में रोजगार के अवसर शुरू करने के लिए कई तरह के कलाकृतिओं का योगदान रहा है. उनके अनुसार गांव में हजारों लोग मधुबनी पेंटिंग बनाकर आजीविका जुटाने में लगे हुए हैं. इसी तरह मूर्तिकला, टेराकोटा, सिक्की आर्ट, बंबू आर्ट आदि में भी रोजगार के नए अवसर उपलब्ध हैं, जिन्हें और बढ़ाया जा सकता है.
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पेपरमेसी आर्ट से मिली ख्याति: अपनी जीवन यात्रा के संघर्षों का उल्लेख करते हुए पद्मश्री सुभद्रा देवी ने कहा कि वह बचपन में कागज की लुगदी बनाया करती थीं और साथ में मधुबनी पेंटिंग भी करती थीं. बाद में उपेंद्र महारथी की प्रेरणा से पेपरमेसी कला के साथ मधुबनी पेंटिंग को अपनाया. यहां पर वह करीब 11 सालों तक रही. मधुबनी पेंटिंग के लिए अपने आप को समर्पित कर दिया.
दो लोगों का मिला सहयोग: बिहार की लोक कथाओं और यहां की सांस्कृतिक कला को दिखाने का प्रयास करती रहीं. उनके अनुसार हर दिन काम में आने वाले सामानों, खिलौने, टेबल लैंप पेपरमेसी के जरिए बनाए गए है. उन्होंने कहा कि सामा चकेवा, कोहबर आदि से चित्रों और पेपरमेसी आर्ट ने उन्हें विशेष रूप से ख्याति दिलाई. इस कलाकृति में उपेंद्र महारथी और सेनगुप्ता साहब ने काफी मदद किया.
खादी बोर्ड के तरफ से मिला सम्मान: उन्होंने कहा कि कला की बदौलत ही उन्हें पहले राज्य पुरस्कार और फिर राष्ट्रीय पुरस्कार मिला. इस वर्ष पद्मश्री से सम्मानित किया गया. अपनी कलाकृति के लिए 2014 में स्पेन भी गई हैं. मधुबनी स्थित सलेमपुर गांव निवासी सुभद्रा देवी के बारे में बताया जाता है कि अभी वे दिल्ली में अपने बेटे के साथ ही ज्यादा रहना पसंद करती है.
दादी भी रही कलाकार: उनके अनुसार दादी भी मधुबनी पेंटिंग के साथ पेपरमेसी कला से जुड़ी थी. दादी के बाद विरासत को अब वो आगे बढ़ा रही है. उनके अनुसार मैथिली शैली में अलग-अलग तरह की कलाकृतियां बनाती हैं. उनके अनुसार संस्कृति का विकास इसी तरीके से होता है. खादी बोर्ड के सचिव दिलीप कुमार की तरफ से पद्मश्री सुभद्रा देवी को बुके और गांधीजी का चरखा देकर सम्मानित किया गया.