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आखिर केसीआर और शरद पवार नीतीश कुमार को क्यों बनाना चाहते हैं राष्ट्रपति, जानें इनसाइड स्टोरी

नीतीश कुमार के दिल्ली दौरे ने देश का सियासी पारा चढ़ा (Politics over presidential candidacy) दिया है. दिल्ली में प्रशांत किशोर से मुलाकात और उसके बाद राष्ट्रपति पद को लेकर विपक्षी दलों का सियासी दांव (Opposition strategy to make Nitish Kumar Presidential Candidate) से राजनीतिक बवंडर खड़ा हो गया है. अब सवाल यह उठता है कि राष्ट्रपति चुनाव से पहले ये मुद्दा क्यों उठाया गया.

राष्ट्रपति पद को लेकर सियासत
राष्ट्रपति पद को लेकर सियासत
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Published : Feb 23, 2022, 7:47 PM IST

पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Bihar CM Nitish Kumar) को विपक्षी खेमे में लाने की तैयारी जोरों से चल रही है. दरअसल, जुलाई महीने में वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल पूरा होने वाला है. उससे पहले राष्ट्रपति पद को लेकर सियासत शुरू हो गई है. दिल्ली में नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर की मुलाकात (Nitish Kumar and Prashant Kishor meeting) से नए राजनीतिक समीकरण के संकेत मिलने लगे हैं. केसीआर और शरद पवार नीतीश कुमार को राष्ट्रपति बनाने की चाहत रखते हैं.

ये भी पढ़ें- CM नीतीश ने राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी को फिर किया खारिज, बोले- 'मुझे आश्चर्य है ये बात कैसे उठी'

चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Poll Strategist Prashant Kishor) नीतीश कुमार को राष्ट्रपति बनाने के लिए समर्थन जुटा रहे हैं. प्रशांत किशोर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, शरद पवार, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा समेत तेजस्वी यादव से मुलाकात कर चुके हैं. आने वाले तीन चार महीने बिहार की राजनीति के लिए अहम होने वाले हैं.

''नीतीश कुमार बड़े ही मंझे हुए राजनेता हैं और समय पर ही स्पष्ट करते हैं कि उनकी मंशा क्या है. प्रशांत किशोर से जिस तरह से उनकी गर्मजोशी से मुलाकातें हुई. ये बात तो तय है कि प्रशांत किशोर अगर कोई प्रपोजल लेकर आए होंगे तो कहीं ना कहीं से इनकी सहमति मिली होगी. राजनीति का यह तकाजा रहा है कि जब तक चीजें पक नहीं जाती हैं तब तक लोग उसकी घोषणा नहीं करते हैं. राष्ट्रपति चुनाव से पहले विपक्षी खेमे के द्वारा नीतीश कुमार को अपने पक्ष में लाने की कोशिश शुरू हुई है. नीतीश कुमार भी हालात को समझना चाहते हैं. प्रशांत किशोर के जरिए सियासत को साधने की कोशिश हो रही है. इसकी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.''- डॉक्टर संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

बता दें कि देश के 14वें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल जुलाई 2022 को खत्म हो रहा है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने साल 2017 में प्रणब मुखर्जी की जगह ली थी और अब बिहार के सीएम नीतीश कुमार का नाम सियासी गलियारे (Presidential Candidate Nitish Kumar) में चल रहा है. खबर यह भी है कि उत्तर प्रदेश चुनाव के बाद नीतीश बीजेपी का साथ छोड़ विरोधी खेमे में जा सकते हैं और विरोधी खेमे के द्वारा भी एक सियासी दांव चल दिया गया है. दरअसल, नीतीश कुमार सियासत के बड़े चेहरे हैं और प्रधानमंत्री पद के रूप में सशक्त उम्मीदवार माने जाते हैं.

बीजेपी विरोधी खेमे के कई नेताओं की मंशा प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को लेकर है. ऐसे में नीतीश कुमार को राष्ट्रपति बनाकर कुछ लोग अपना रास्ता भी साफ करना चाहते हैं. नीतीश भी नेताओं के दाव को बेहतर समझ रहे हैं और नीतीश कुमार ने स्पष्ट किया है कि उनकी मंशा राष्ट्रपति पद को लेकर नहीं है. इस तरह की खबर बिल्कुल बेबुनियाद है और उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है. अहम सवाल यह है कि नीतीश कुमार के बिहार छोड़ने का असर जदयू पर क्या होगा.

''मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पहले ही इंकार कर दिया है कि वो राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार नहीं है. प्रशांत किशोर प्रोपेगेंडा मास्टर हैं और फिलहाल वह रोजगार की तलाश में हैं. इस तरह की बातें करके वो अपने हल्केपन को हमेशा दर्शाते हैं. इन्होंने यूपी में कांग्रेस की खटिया खड़ी कर दी थी. उन्हें किसी तरह की सफलता मिलने वाली नहीं है.''- विनोद शर्मा, प्रवक्ता, बीजेपी

''राजनीतिक जीवन में सीएम नीतीश कुमार एक्टिव होकर बखूबी तरह से अपनी जिम्मेदारी को निभा रहे हैं. इसलिए एग्जिट का तो सवाल ही नहीं आता है. नीतीश कुमार ने राष्ट्रपति पद को लेकर स्पष्ट कर दिया है कि उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है. वैसे भी 2025 तक के लिए बिहार की जनता ने नीतीश कुमार को जनादेश दिया है. फिलहाल, बिहार के लिए काम करते रहेंगे.''- निखिल मंडल, जदयू प्रवक्ता

''नीतीश कुमार को विपक्ष राष्ट्रपति क्यों बनाएगा. उनका योगदान विपक्ष के लिए क्या रहा है. वो भारतीय जनता पार्टी की नीतियों को आगे बढ़ा रहे हैं. बीजेपी के साथ वो समाजवाद की विचारधारा को छोड़कर आरएसएस की विचारधारा को स्वीकार करके आगे बढ़ रहे हैं, तो उनको विपक्ष क्यों बनाएगा. ये सब ख्याली पुलाव हैं. अगर उन्हें केंद्र की राजनीति में आना है तो पहले एनडीए का साथ छोड़ना होगा.''-एजाज अहमद, प्रवक्ता, राजद

जदयू में आरसीपी सिंह और ललन सिंह के बीच आर-पार की लड़ाई है और निश्चित तौर पर नीतीश कुमार को इस बात की चिंता भी होगी कि बिहार की राजनीति से निकलने के बाद उनकी पार्टी का क्या होगा. बीजेपी भी वर्तमान परिस्थितियों में नीतीश कुमार को छोड़ना नहीं चाहेगी. 2024 लोकसभा चुनाव और 2025 विधानसभा चुनाव बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती है. फिलहाल, नीतीश कुमार ने किसी भी संभावना को खारिज कर दिया है. वहीं, राष्ट्रपति पद का शिगूफा छोड़कर विपक्ष ने नेताओं की नब्ज टटोलने की कोशिश की है. उत्तर प्रदेश चुनाव के बाद सियासत के अलग रंग देखने को मिलेंगे, इसकी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.

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पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Bihar CM Nitish Kumar) को विपक्षी खेमे में लाने की तैयारी जोरों से चल रही है. दरअसल, जुलाई महीने में वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल पूरा होने वाला है. उससे पहले राष्ट्रपति पद को लेकर सियासत शुरू हो गई है. दिल्ली में नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर की मुलाकात (Nitish Kumar and Prashant Kishor meeting) से नए राजनीतिक समीकरण के संकेत मिलने लगे हैं. केसीआर और शरद पवार नीतीश कुमार को राष्ट्रपति बनाने की चाहत रखते हैं.

ये भी पढ़ें- CM नीतीश ने राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी को फिर किया खारिज, बोले- 'मुझे आश्चर्य है ये बात कैसे उठी'

चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Poll Strategist Prashant Kishor) नीतीश कुमार को राष्ट्रपति बनाने के लिए समर्थन जुटा रहे हैं. प्रशांत किशोर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, शरद पवार, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा समेत तेजस्वी यादव से मुलाकात कर चुके हैं. आने वाले तीन चार महीने बिहार की राजनीति के लिए अहम होने वाले हैं.

''नीतीश कुमार बड़े ही मंझे हुए राजनेता हैं और समय पर ही स्पष्ट करते हैं कि उनकी मंशा क्या है. प्रशांत किशोर से जिस तरह से उनकी गर्मजोशी से मुलाकातें हुई. ये बात तो तय है कि प्रशांत किशोर अगर कोई प्रपोजल लेकर आए होंगे तो कहीं ना कहीं से इनकी सहमति मिली होगी. राजनीति का यह तकाजा रहा है कि जब तक चीजें पक नहीं जाती हैं तब तक लोग उसकी घोषणा नहीं करते हैं. राष्ट्रपति चुनाव से पहले विपक्षी खेमे के द्वारा नीतीश कुमार को अपने पक्ष में लाने की कोशिश शुरू हुई है. नीतीश कुमार भी हालात को समझना चाहते हैं. प्रशांत किशोर के जरिए सियासत को साधने की कोशिश हो रही है. इसकी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.''- डॉक्टर संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

बता दें कि देश के 14वें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल जुलाई 2022 को खत्म हो रहा है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने साल 2017 में प्रणब मुखर्जी की जगह ली थी और अब बिहार के सीएम नीतीश कुमार का नाम सियासी गलियारे (Presidential Candidate Nitish Kumar) में चल रहा है. खबर यह भी है कि उत्तर प्रदेश चुनाव के बाद नीतीश बीजेपी का साथ छोड़ विरोधी खेमे में जा सकते हैं और विरोधी खेमे के द्वारा भी एक सियासी दांव चल दिया गया है. दरअसल, नीतीश कुमार सियासत के बड़े चेहरे हैं और प्रधानमंत्री पद के रूप में सशक्त उम्मीदवार माने जाते हैं.

बीजेपी विरोधी खेमे के कई नेताओं की मंशा प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को लेकर है. ऐसे में नीतीश कुमार को राष्ट्रपति बनाकर कुछ लोग अपना रास्ता भी साफ करना चाहते हैं. नीतीश भी नेताओं के दाव को बेहतर समझ रहे हैं और नीतीश कुमार ने स्पष्ट किया है कि उनकी मंशा राष्ट्रपति पद को लेकर नहीं है. इस तरह की खबर बिल्कुल बेबुनियाद है और उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है. अहम सवाल यह है कि नीतीश कुमार के बिहार छोड़ने का असर जदयू पर क्या होगा.

''मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पहले ही इंकार कर दिया है कि वो राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार नहीं है. प्रशांत किशोर प्रोपेगेंडा मास्टर हैं और फिलहाल वह रोजगार की तलाश में हैं. इस तरह की बातें करके वो अपने हल्केपन को हमेशा दर्शाते हैं. इन्होंने यूपी में कांग्रेस की खटिया खड़ी कर दी थी. उन्हें किसी तरह की सफलता मिलने वाली नहीं है.''- विनोद शर्मा, प्रवक्ता, बीजेपी

''राजनीतिक जीवन में सीएम नीतीश कुमार एक्टिव होकर बखूबी तरह से अपनी जिम्मेदारी को निभा रहे हैं. इसलिए एग्जिट का तो सवाल ही नहीं आता है. नीतीश कुमार ने राष्ट्रपति पद को लेकर स्पष्ट कर दिया है कि उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है. वैसे भी 2025 तक के लिए बिहार की जनता ने नीतीश कुमार को जनादेश दिया है. फिलहाल, बिहार के लिए काम करते रहेंगे.''- निखिल मंडल, जदयू प्रवक्ता

''नीतीश कुमार को विपक्ष राष्ट्रपति क्यों बनाएगा. उनका योगदान विपक्ष के लिए क्या रहा है. वो भारतीय जनता पार्टी की नीतियों को आगे बढ़ा रहे हैं. बीजेपी के साथ वो समाजवाद की विचारधारा को छोड़कर आरएसएस की विचारधारा को स्वीकार करके आगे बढ़ रहे हैं, तो उनको विपक्ष क्यों बनाएगा. ये सब ख्याली पुलाव हैं. अगर उन्हें केंद्र की राजनीति में आना है तो पहले एनडीए का साथ छोड़ना होगा.''-एजाज अहमद, प्रवक्ता, राजद

जदयू में आरसीपी सिंह और ललन सिंह के बीच आर-पार की लड़ाई है और निश्चित तौर पर नीतीश कुमार को इस बात की चिंता भी होगी कि बिहार की राजनीति से निकलने के बाद उनकी पार्टी का क्या होगा. बीजेपी भी वर्तमान परिस्थितियों में नीतीश कुमार को छोड़ना नहीं चाहेगी. 2024 लोकसभा चुनाव और 2025 विधानसभा चुनाव बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती है. फिलहाल, नीतीश कुमार ने किसी भी संभावना को खारिज कर दिया है. वहीं, राष्ट्रपति पद का शिगूफा छोड़कर विपक्ष ने नेताओं की नब्ज टटोलने की कोशिश की है. उत्तर प्रदेश चुनाव के बाद सियासत के अलग रंग देखने को मिलेंगे, इसकी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.

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