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कितने लाख लोगों ने LIVE देखा? वर्चुअल रैलियों के लिए यही भीड़ का पैमाना

सोशल मीडिया साइट्स पर आक्रामक प्रचार, छोटे भाषण और एलईडी स्क्रीन उन वर्चुअल रैलियों का हिस्सा हैं, जिनका आयोजना बीजेपी की तरफ से शुरू किया गया था. इसके बाद जेडीयू, आरजेडी, कांग्रेस और दूसरे दलों की डिजिटल पिच ने पूरे बिहार के सियासी तापमान को बढ़ा दिया है.

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Published : Sep 15, 2020, 8:13 AM IST

पटना: कोरोना से पहले के दौर में जब चुनावी रैलियां होती थीं तो भीड़ का सिर्फ अनुमान लगाया जा सकता था, मगर वर्चुअल रैलियों में एक-एक व्यक्ति का हिसाब रखना आसान हो गया है. अब किसी वर्चुअल रैली को सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म पर कितने लोगों ने देखा, यही राजनीतिक दलों और नेताओं के लिए भीड़ का पैमाना हो गया है. जिस नेता की रैली को ज्यादा लोगों ने लाइव देखा तो वह उसकी लोकप्रियता मानी जा रही है.

देखें रिपोर्ट

हर वर्चुअल रैली के बाद पार्टियां लाइव देखने वालों का हिसाब भी बता रही हैं. यह ठीक उसी तरह से है, जैसे पहले के दौर में रैलियों के समापन के बाद पार्टियां अनुमानित भीड़ का आंकड़ा बताकर आयोजन की सफलता का दावा करती थीं.

नीतीश की रैली को सिर्फ 12.82 लाख लोगों ने देखा
मिसाल के तौर पर बीते सात सितंबर को जब जदयू की ओर से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की निश्चच संवाद वर्चुअल रैली हुई तो पार्टी ने दावा किया कि इसे देशभर में 40 लाख से ज्यादा लोगों ने देखा. पार्टी ने इसकी एक रिपोर्ट भी जारी की थी. हालांकि नीतीश की रैली को बिहार में सिर्फ 12.82 लाख लोगों ने देखा था, लेकिन अन्य राज्यों के लोगों के जुड़ने पर पार्टी ने 44 लाख का आंकड़ा बताया.

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निश्चच संवाद वर्चुअल रैली के दौरान नीतीश कुमार

शाह की रैली को 1.2 लाख स्क्रीन पर देखा गया
इसी तरह जब सात जून को गृहमंत्री अमित शाह की बिहार की वर्चुअल रैली हुई थी तब भी बीजेपी ने 40 लाख से ज्यादा लोगों के देखने का दावा किया था. लेकिन, वर्चुअल रैली को बिहार में 1.2 लाख स्क्रीन पर देखा गया था. गृहमंत्री अमित शाह का भाषण जनता तक पहुंचाने के लिए 243 विधानसभा सीटों के 72 हजार बूथों पर एलईडी लगवाई गई थी.

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बिहार जन-संवाद रैली के दौरान अमित शाह

हालांकि, एक रिपोर्ट के मुताबिक, फेसबुक पर जहां 'बिहार जन-संवाद' वर्चुअल रैली को 14 लाख से अधिक व्यूज मिले वहीं यूट्यूब पर इसे 1.40 लाख से ज्यादा व्यूज मिले. ट्विटर पर इसे 66 हजार से अधिक व्यूज मिले. 40 हजार से ज्यादा बार कार्यक्रम को हैश टैग कर ट्वीट किया गया.

वर्चुअल रैलियां कहीं ज्यादा पारदर्शी : बीजेपी
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि, 'वर्चुअल रैलियों के आयोजन में बीजेपी सबसे आगे है. कोरोना के खतरे के बीच ये रैलियां सुरक्षित हैं. पहले लोग भीड़ का अनुमान लगाते थे. कम भीड़ को भी लोग ज्यादा बता देते थे. लेकिन वर्चुअल रैलियां कहीं ज्यादा पारदर्शी हैं, जहां लाइव देखने वाले हर व्यक्ति का हिसाब मिल जाता है. कितने लोगों ने लाइव देखा, यही वर्चुअल रैलियों की भीड़ का पैमाना है.

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बीजेपी की वर्चुअल रैली

हालांकि, बीजेपी के कई नेता ये भी मानते है कि कि वर्चुअल संवाद में कई चीजें छूट जा रही है. अति पिछड़ा प्रकोष्ठ के अध्यक्ष अजीत चौधरी कहते हैं कि ये सही है कि तकनीक के माध्यम से हम चाहे कितनी भी कोशिश कर ले, लेकिन जनता से सीधा संवाद ज्यादा बेहतर होता है.

वर्चुअल सम्मेलन के अलावा कोई और विकल्प नहीं: कांग्रेस
प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष मदन मोहन झा कहते हैं कि वर्तमान हालात जिस तरह से बदल गए हैं, वर्चुअल सम्मेलन के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचा है. चुनाव में आम जनता तक अपनी बातों को पहुंचाने के लिए पहले रैलियां और अन्य कई कार्यक्रम आयोजित होते थे. लेकिन कोरोना महामारी के बाद अब वर्चुअल संवाद ही संभव है. झा कहते हैं कि भले ही बिहार में स्मार्ट फोन और इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या कम हो. लेकिन हम आम जनता तक अपनी बातों को हर माध्यम से पहुंचाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं.

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कांग्रेस की वर्चुअल रैली

आरजेडी को वर्चुअल नहीं एक्चुअल संवाद पर यकीन
वहीं, आरजेडी विधायक विजय प्रकाश ने कहा कि, बीजेपी लोकतंत्र की हत्या करने वाली पार्टी है, इसलिए उन्हें वर्चुअल रैली काफी रास आ रही है. लेकिन राजद के नेता लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव वर्चुअल नहीं एक्चुअल और फिजिकल संवाद पर यकीन रखते हैं.'

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तेजस्वी यादव

आंकड़ों के जरिए समझें
बिहार में स्मार्टफोन और इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों का आंकड़ा इस प्रकार है. यह आंकड़ा ट्राई का है.

⦁ बिहार में 52. 54 प्रतिशत क्षेत्र में मोबाइल नेटवर्क है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर ये 86.15% है.

⦁ 27 से 30 प्रतिशत बिहार वासियों के पास स्मार्ट मोबाइल फोन उपलब्ध है.

⦁ साल 2019 के आंकड़ों के अनुसार बिहार में 100 में से 32 लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं. जबकि राष्ट्रीय औसत 100 में 54 लोगों का है.

⦁ बिहार के ग्रामीण इलाकों में 100 में से 22 लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं.

⦁ फोर्थ नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार 2015- 16 के आखरी में बताया गया है कि बिहार में 61 फीसदी महिलाएं और 36 फीसदी पुरुष सोशल मीडिया इस्तेमाल नहीं करते हैं.

पटना: कोरोना से पहले के दौर में जब चुनावी रैलियां होती थीं तो भीड़ का सिर्फ अनुमान लगाया जा सकता था, मगर वर्चुअल रैलियों में एक-एक व्यक्ति का हिसाब रखना आसान हो गया है. अब किसी वर्चुअल रैली को सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म पर कितने लोगों ने देखा, यही राजनीतिक दलों और नेताओं के लिए भीड़ का पैमाना हो गया है. जिस नेता की रैली को ज्यादा लोगों ने लाइव देखा तो वह उसकी लोकप्रियता मानी जा रही है.

देखें रिपोर्ट

हर वर्चुअल रैली के बाद पार्टियां लाइव देखने वालों का हिसाब भी बता रही हैं. यह ठीक उसी तरह से है, जैसे पहले के दौर में रैलियों के समापन के बाद पार्टियां अनुमानित भीड़ का आंकड़ा बताकर आयोजन की सफलता का दावा करती थीं.

नीतीश की रैली को सिर्फ 12.82 लाख लोगों ने देखा
मिसाल के तौर पर बीते सात सितंबर को जब जदयू की ओर से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की निश्चच संवाद वर्चुअल रैली हुई तो पार्टी ने दावा किया कि इसे देशभर में 40 लाख से ज्यादा लोगों ने देखा. पार्टी ने इसकी एक रिपोर्ट भी जारी की थी. हालांकि नीतीश की रैली को बिहार में सिर्फ 12.82 लाख लोगों ने देखा था, लेकिन अन्य राज्यों के लोगों के जुड़ने पर पार्टी ने 44 लाख का आंकड़ा बताया.

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निश्चच संवाद वर्चुअल रैली के दौरान नीतीश कुमार

शाह की रैली को 1.2 लाख स्क्रीन पर देखा गया
इसी तरह जब सात जून को गृहमंत्री अमित शाह की बिहार की वर्चुअल रैली हुई थी तब भी बीजेपी ने 40 लाख से ज्यादा लोगों के देखने का दावा किया था. लेकिन, वर्चुअल रैली को बिहार में 1.2 लाख स्क्रीन पर देखा गया था. गृहमंत्री अमित शाह का भाषण जनता तक पहुंचाने के लिए 243 विधानसभा सीटों के 72 हजार बूथों पर एलईडी लगवाई गई थी.

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बिहार जन-संवाद रैली के दौरान अमित शाह

हालांकि, एक रिपोर्ट के मुताबिक, फेसबुक पर जहां 'बिहार जन-संवाद' वर्चुअल रैली को 14 लाख से अधिक व्यूज मिले वहीं यूट्यूब पर इसे 1.40 लाख से ज्यादा व्यूज मिले. ट्विटर पर इसे 66 हजार से अधिक व्यूज मिले. 40 हजार से ज्यादा बार कार्यक्रम को हैश टैग कर ट्वीट किया गया.

वर्चुअल रैलियां कहीं ज्यादा पारदर्शी : बीजेपी
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि, 'वर्चुअल रैलियों के आयोजन में बीजेपी सबसे आगे है. कोरोना के खतरे के बीच ये रैलियां सुरक्षित हैं. पहले लोग भीड़ का अनुमान लगाते थे. कम भीड़ को भी लोग ज्यादा बता देते थे. लेकिन वर्चुअल रैलियां कहीं ज्यादा पारदर्शी हैं, जहां लाइव देखने वाले हर व्यक्ति का हिसाब मिल जाता है. कितने लोगों ने लाइव देखा, यही वर्चुअल रैलियों की भीड़ का पैमाना है.

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बीजेपी की वर्चुअल रैली

हालांकि, बीजेपी के कई नेता ये भी मानते है कि कि वर्चुअल संवाद में कई चीजें छूट जा रही है. अति पिछड़ा प्रकोष्ठ के अध्यक्ष अजीत चौधरी कहते हैं कि ये सही है कि तकनीक के माध्यम से हम चाहे कितनी भी कोशिश कर ले, लेकिन जनता से सीधा संवाद ज्यादा बेहतर होता है.

वर्चुअल सम्मेलन के अलावा कोई और विकल्प नहीं: कांग्रेस
प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष मदन मोहन झा कहते हैं कि वर्तमान हालात जिस तरह से बदल गए हैं, वर्चुअल सम्मेलन के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचा है. चुनाव में आम जनता तक अपनी बातों को पहुंचाने के लिए पहले रैलियां और अन्य कई कार्यक्रम आयोजित होते थे. लेकिन कोरोना महामारी के बाद अब वर्चुअल संवाद ही संभव है. झा कहते हैं कि भले ही बिहार में स्मार्ट फोन और इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या कम हो. लेकिन हम आम जनता तक अपनी बातों को हर माध्यम से पहुंचाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं.

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कांग्रेस की वर्चुअल रैली

आरजेडी को वर्चुअल नहीं एक्चुअल संवाद पर यकीन
वहीं, आरजेडी विधायक विजय प्रकाश ने कहा कि, बीजेपी लोकतंत्र की हत्या करने वाली पार्टी है, इसलिए उन्हें वर्चुअल रैली काफी रास आ रही है. लेकिन राजद के नेता लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव वर्चुअल नहीं एक्चुअल और फिजिकल संवाद पर यकीन रखते हैं.'

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तेजस्वी यादव

आंकड़ों के जरिए समझें
बिहार में स्मार्टफोन और इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों का आंकड़ा इस प्रकार है. यह आंकड़ा ट्राई का है.

⦁ बिहार में 52. 54 प्रतिशत क्षेत्र में मोबाइल नेटवर्क है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर ये 86.15% है.

⦁ 27 से 30 प्रतिशत बिहार वासियों के पास स्मार्ट मोबाइल फोन उपलब्ध है.

⦁ साल 2019 के आंकड़ों के अनुसार बिहार में 100 में से 32 लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं. जबकि राष्ट्रीय औसत 100 में 54 लोगों का है.

⦁ बिहार के ग्रामीण इलाकों में 100 में से 22 लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं.

⦁ फोर्थ नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार 2015- 16 के आखरी में बताया गया है कि बिहार में 61 फीसदी महिलाएं और 36 फीसदी पुरुष सोशल मीडिया इस्तेमाल नहीं करते हैं.

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