पटना: बिहार में त्रिस्तरीय पंचायत प्रतिनिधियों का कार्यकाल 15 जून को समाप्त हो रहा है, लेकिन अभी कोरोना के समय चुनाव असंभव है. ऐसे में सरकार की ओर से कई विकल्पों पर चर्चा शुरू है. हालांकि अभी तक सरकार ने कोई फैसला नहीं लिया है.
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हो रही कार्यकाल बढ़ाने की मांग
कई दलों के नेताओं की ओर से पंचायत प्रतिनिधियों का कार्यकाल चुनाव तक बढ़ाने की मांग शुरू हो गई है. नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने भी पत्र लिखकर पंचायत प्रतिनिधियों का कार्यकाल बढ़ाने की मांग की है. भाजपा सांसद रामकृपाल यादव ने भी मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है. कांग्रेस की तरफ से भी कार्यकाल बढ़ाने की मांग हो रही है. ऐसे में जदयू कोई फैसला नहीं कर पा रही है. लगता है सरकार जो फैसला करेगी जदयू उसी का इंतजार कर रही है.
पंचायतों के संचालन का अधिकार नीतीश सरकार अधिकारियों को भी सौंप सकती है. बीडीओ, डीडीसी और डीएम को जिम्मेदारी दी जा सकती है. कोरोना के समय ग्राम पंचायतों में पंचायत प्रतिनिधियों की अहम भूमिका है. हाईकोर्ट ने भी सभी मुखिया को कोरोना की निगरानी करने का निर्देश दिया है.
केंद्र से मिला है 5018 करोड़
15वें वित्त आयोग की अनुशंसा के अनुसार 2020-21 में पंचायतों को 5018 करोड़ रुपए मिला है. इसमें बड़ा हिस्सा इस साल बिहार को केंद्र ने दिया है. वहीं 2021-22 में बिहार को 15 में वित्त आयोग की अनुशंसा के अनुसार 3709 करोड़ रुपए मिलेगा और उसमें से पहली किस्त के तौर पर 741.8 करोड़ रुपए केंद्र ने दिया है. इसमें से 70% ग्राम पंचायतों को खर्च करना है. 20% राशि पंचायत समिति और 10% जिला परिषद खर्च करेगा. बिहार की राशि 1000 करोड़ से अधिक अब घटा दी गई है. अब हर साल इतनी ही राशि बिहार को पंचायती राज संस्थानों के लिए मिलेगी.
हर पंचायत को खर्च करना है 50 लाख
2020-21 से 2021-22 तक बड़ी राशि बिहार के त्रिस्तरीय पंचायतों को मिली है. ऐसे में प्रत्येक ग्राम पंचायत को 50 लाख से अधिक की राशि खर्च करनी है. कई योजना पर काम चल रहा है और फिलहाल कोरोना के समय पंचायत प्रतिनिधियों की भूमिका अहम है. इस मामले में पंचायती राज मंत्री सम्राट चौधरी ने कहा कि अभी सरकार ने कोई फैसला नहीं लिया है. फैसला लेने के बाद जरूर जानकारी देंगे.
8386 पंचायतों में होना है चुनाव
बिहार में 8386 ग्राम पंचायतों में चुनाव होना है. 2 लाख 56 हजार से अधिक पदों के लिए त्रिस्तरीय पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद का चुनाव होना है. मुखिया संघ के अध्यक्ष अशोक सिंह ने भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पंचायती राज मंत्री सम्राट चौधरी से मिलकर चुनाव तक पंचायत प्रतिनिधियों को काम करने देने का आग्रह किया है. कार्यकाल कम से कम 6 महीने बढ़ाने की मांग की है.
"झारखंड में जनवरी में ही चुनाव होना था लेकिन वहां 6 महीने के लिए कार्यकाल बढ़ा दिया गया है. अभी कोरोना के समय पंचायत प्रतिनिधियों की महत्वपूर्ण भूमिका है. अधिकारियों को ग्राम पंचायतों के संचालन की जिम्मेदारी दी जाएगी तो भ्रष्टाचार बढ़ेगा."- अशोक सिंह, अध्यक्ष, मुखिया संघ
हम के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने भी ट्वीट कर पंचायत प्रतिनिधियों का कार्यकाल बढ़ाने की मांग की है. कांग्रेस की तरफ से भी पंचायत प्रतिनिधियों का कार्यकाल चुनाव तक बढ़ाने की मांग हो रही है.
"यदि पंचायत प्रतिनिधियों के स्थान पर अधिकारियों को जिम्मेदारी दी जाएगी तो ग्रामीण इलाकों में भ्रष्टाचार चरम पर पहुंचेगा."- राजेश राठौर, प्रवक्ता, कांग्रेस
पूरे मामले में जदयू नेताओं ने चुप्पी साध ली है. प्रदेश अध्यक्ष ने इस मामले में कुछ भी बोलने से मना कर दिया. जदयू सरकार के फैसले का इंतजार कर रही है. हालांकि जदयू से जुड़े पंचायत जनप्रतिनिधि भी चाहते हैं कि कार्यकाल बढ़ना चाहिए.
15 जून से पहले होना था चुनाव
गौरतलब है कि 8386 ग्राम पंचायतों में चुनाव 15 जून से पहले होना था, लेकिन अब नहीं होगा. 2016 में 4 करोड़ 80 लाख 39 हजार 781 मतदाता थे. इस बार बढ़कर 6 करोड़ 44 लाख 54749 मतदाता हो गए हैं. कुल मिलाकर 64 लाख 14968 से अधिक मतदाता पंचायत चुनाव में बढ़े हैं. इस बार ईवीएम से सरकार ने चुनाव कराने का फैसला लिया है. ईवीएम का मामला भी काफी लंबे समय तक विवाद का कारण बना रहा. इसके कारण चुनाव की अधिसूचना राज्य निर्वाचन आयोग ने जारी नहीं की, जबकि 2016 में फरवरी में ही जारी कर दिया गया था. त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में मुखिया, पंच, सरपंच, ग्राम कचहरी, वार्ड सदस्य, पंचायत समिति 6 पदों पर चुनाव होना है.
पद | संख्या |
मुखिया | 8386 |
सरपंच | 8386 |
पंच | 114667 |
वार्ड सदस्य | 114667 |
पंचायत समिति सदस्य | 12491 |
जिला परिषद सदस्य | 1161 |
सरकार कर रही अधिकारियों को जिम्मेदारी देने की तैयारी
पंचायत जनप्रतिनिधियों का कार्यकाल बढ़ाने के लिए पंचायत नियमावली 2006 में संशोधन करना होगा. ऐसे सूत्रों की माने तो पंचायती राज विभाग ने सरकार को 1 महीने पहले ही पत्र लिखकर अधिकारियों को अधिकार देने का आग्रह किया है ताकि योजनाओं पर कोई असर न पड़े. शिक्षा विभाग की तरफ से भी सभी डीएम को आदेश निर्गत हुआ है कि शिक्षक से संबंधित जितने कागजात हैं उसे अपने कब्जे में ले लें. कुल मिलाकर सरकार की तरफ से अधिकारियों को जिम्मेदारी देने की तैयारी हो रही है. हालांकि देखना है 15 जून से पहले जिस प्रकार से विपक्ष और एनडीए के प्रमुख घटक दलों की ओर से मांग हो रही है उस पर नीतीश सरकार का क्या फैसला होता है.
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