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'माछ-भात' वाले सहनी का टूटा दिल, अब किसके साथ करेंगे डील? - bihar mahasamar

महागठबंधन संयुक्त रूप से प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सीटों के बंटवारे की घोषणा कर रहा था. इसी दौरान वीआईपी अध्यक्ष मुकेश सहनी बीच प्रेस कॉन्फ्रेंस में ही महागठबंधन से अलग होने की घोषणा कर दी. ऐसे में अब सवाल ये है सन ऑफ मल्लाह कि अब आगे क्या करेंगे?

Mukesh Sahni
Mukesh Sahni
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Published : Oct 3, 2020, 7:30 PM IST

Updated : Oct 3, 2020, 8:00 PM IST

पटनाः 'सन ऑफ मल्लाह' के नाम से मशहूर मुकेश सहनी ने संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान महागठबंधन से अलग होने का ऐलान कर दिया. खुद के साथ धोखा होने और निषाद समाज के अपमान का आरोप लगाकर उन्होंने अपनी राह अलग कर ली. जब से वे राजनीति में आए हैं, कई बार पाला बदल चुके हैं. लेकिन इस बार जिस अंदाज में उन्होंने फैसला लिया, उसकी उम्मीद किसी को भी नहीं थी. अब बड़ा सवाल यही है कि वे यहां से कहां जाएंगे.

राजनीतिक पंडितों की माने तो सहनी के पास अब भी दो विकल्प है. पहला- एक बार फिर से वो एनडीए का साथ जा सकते हैं और दूसरा, आरएलएसपी (RLSP ) या जाप (JAP ) के साथ गठबंधन कर एनडीए और महागठबंधन के लिए चुनौती बन सकते हैं.

आइए एक नजर डालते हैं मुकेश सहनी की करियर और उनके वोट बैंक परः

घर छोड़ने से लेकर मुंबई का संघर्ष
मुकेश, बिहार में दरभंगा जिले के सुपौल बाजार के मूल निवासी हैं.19 साल की उम्र में वे घर से भागकर मुंबई गए थे. हालांकि, कुछ समय के लिए वे लौट आए पर उन्हें गांव रास न आया. वे फिर मुंबई चले गए. इस बार मुंबई में उनकी मुलाकात फिल्मकार संजय लीला भंसाली की फिल्म की सेट डिजाइनिंग टीम के एक कर्मचारी से हुई और इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.

लेकिन इसके बाद जब 2013 में छठ के मौके पर मुकेश सहनी अपने पुश्तैनी गांव आए, तो मल्लाह बिरादरी के ही कुछ लोगों ने उनसे अपील की कि वे उनके लिए कुछ करें. इसके बाद उन्होंने कुछे सभाएं कीं.

2014 में बीजेपी का किया था समर्थन
मल्लाह समुदाय में मुकेश साहनी की पकड़ को देख बीजेपी ने 2014 के आम चुनाव में उनका समर्थन लिया. वर्ष 2014 और 2015 में उन्होंने बीजेपी के लिए काम भी किया.

'माछ भात खाएंगे और…'
हालांकि, बाद में उन्होंने कहा है कि बीजेपी ने जिन वादों को पूरा करने का आश्वासन दिया था, वो पूरा नहीं किया. मुकेश ने घोषणा कर दी, 'माछ भात खाएंगे और महागठबंधन को जिताएंगे'.

इसके बाद मुकेश सहनी ने नवंबर साल 2018 में पटना के गांधी मैदान में एक रैली की और अपनी पार्टी के गठन का ऐलान कर दिया. पार्टी का नाम रखा वीआईपी यानी विकासशील इंसान पार्टी. पटना की इस रैली के दौरान मुकेश साहनी ने कहा, 'जब प्रदेश में तीन प्रतिशत आबादी वाले लोग मुख्यमंत्री पद पर आसीन हो सकते हैं, तो हम 14 प्रतिशत की आबादी वाले क्यों नहीं?'

बिहार में 3-4 फीसदी है मल्लाह
दरअसल, बिहार में मल्लाह(निषाद) की आबादी तकरीबन 3-4 फीसदी है. इस समुदाय में मल्लाह और मछुआरे दोनों आते हैं. वोट बैंक के हिसाब से यह आंकड़ा मामूली है, लेकिन गठबंधन के दौर में एक-एक वोट की कीमत है. पिछले वोटिंग पैटर्न पर नजर डालें तो बिहार की मुजफ्फरपुर, दरभंगा, औरंगाबाद, उजियारपुर और खगड़िया लोकसभा सीट पर मल्लाह समाज निर्णायक भूमिका में रहे हैं. हालांकि इसमें से केवल मुजफ्फरपुर इकलौती ऐसी सीट है, जहां मल्लाह की आबादी साढ़े तीन लाख से ज्यादा है, यानी यहां इस समाज के लोगों का वर्चस्व है.

मुजफ्फरपुर के इलाके में है जनाधार
यहां आपको बता दें कि, लंबे वक्त तक कैप्टन जयनारायण निषाद भी मल्लाहों के नेता रहे. लेकिन, उन्होंने अपनी कोई पार्टी नहीं बनाई, बल्कि आरजेडी के साथ अपना सियासी करियर शुरू की और फिर जेडीयू और उसके बाद बीजेपी में चले गए. निषाद मल्लाहों के वोट बैंक को ही साध कर मुजफ्फरपुर संसदीय सीट से पांच बार सांसद चुने गए. साल 2018 में उनका निधन हो गया. उनके पुत्र अजय निषाद भाजपा के टिकट पर मुजफ्फरपुर से ही सांसद हैं.

पटनाः 'सन ऑफ मल्लाह' के नाम से मशहूर मुकेश सहनी ने संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान महागठबंधन से अलग होने का ऐलान कर दिया. खुद के साथ धोखा होने और निषाद समाज के अपमान का आरोप लगाकर उन्होंने अपनी राह अलग कर ली. जब से वे राजनीति में आए हैं, कई बार पाला बदल चुके हैं. लेकिन इस बार जिस अंदाज में उन्होंने फैसला लिया, उसकी उम्मीद किसी को भी नहीं थी. अब बड़ा सवाल यही है कि वे यहां से कहां जाएंगे.

राजनीतिक पंडितों की माने तो सहनी के पास अब भी दो विकल्प है. पहला- एक बार फिर से वो एनडीए का साथ जा सकते हैं और दूसरा, आरएलएसपी (RLSP ) या जाप (JAP ) के साथ गठबंधन कर एनडीए और महागठबंधन के लिए चुनौती बन सकते हैं.

आइए एक नजर डालते हैं मुकेश सहनी की करियर और उनके वोट बैंक परः

घर छोड़ने से लेकर मुंबई का संघर्ष
मुकेश, बिहार में दरभंगा जिले के सुपौल बाजार के मूल निवासी हैं.19 साल की उम्र में वे घर से भागकर मुंबई गए थे. हालांकि, कुछ समय के लिए वे लौट आए पर उन्हें गांव रास न आया. वे फिर मुंबई चले गए. इस बार मुंबई में उनकी मुलाकात फिल्मकार संजय लीला भंसाली की फिल्म की सेट डिजाइनिंग टीम के एक कर्मचारी से हुई और इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.

लेकिन इसके बाद जब 2013 में छठ के मौके पर मुकेश सहनी अपने पुश्तैनी गांव आए, तो मल्लाह बिरादरी के ही कुछ लोगों ने उनसे अपील की कि वे उनके लिए कुछ करें. इसके बाद उन्होंने कुछे सभाएं कीं.

2014 में बीजेपी का किया था समर्थन
मल्लाह समुदाय में मुकेश साहनी की पकड़ को देख बीजेपी ने 2014 के आम चुनाव में उनका समर्थन लिया. वर्ष 2014 और 2015 में उन्होंने बीजेपी के लिए काम भी किया.

'माछ भात खाएंगे और…'
हालांकि, बाद में उन्होंने कहा है कि बीजेपी ने जिन वादों को पूरा करने का आश्वासन दिया था, वो पूरा नहीं किया. मुकेश ने घोषणा कर दी, 'माछ भात खाएंगे और महागठबंधन को जिताएंगे'.

इसके बाद मुकेश सहनी ने नवंबर साल 2018 में पटना के गांधी मैदान में एक रैली की और अपनी पार्टी के गठन का ऐलान कर दिया. पार्टी का नाम रखा वीआईपी यानी विकासशील इंसान पार्टी. पटना की इस रैली के दौरान मुकेश साहनी ने कहा, 'जब प्रदेश में तीन प्रतिशत आबादी वाले लोग मुख्यमंत्री पद पर आसीन हो सकते हैं, तो हम 14 प्रतिशत की आबादी वाले क्यों नहीं?'

बिहार में 3-4 फीसदी है मल्लाह
दरअसल, बिहार में मल्लाह(निषाद) की आबादी तकरीबन 3-4 फीसदी है. इस समुदाय में मल्लाह और मछुआरे दोनों आते हैं. वोट बैंक के हिसाब से यह आंकड़ा मामूली है, लेकिन गठबंधन के दौर में एक-एक वोट की कीमत है. पिछले वोटिंग पैटर्न पर नजर डालें तो बिहार की मुजफ्फरपुर, दरभंगा, औरंगाबाद, उजियारपुर और खगड़िया लोकसभा सीट पर मल्लाह समाज निर्णायक भूमिका में रहे हैं. हालांकि इसमें से केवल मुजफ्फरपुर इकलौती ऐसी सीट है, जहां मल्लाह की आबादी साढ़े तीन लाख से ज्यादा है, यानी यहां इस समाज के लोगों का वर्चस्व है.

मुजफ्फरपुर के इलाके में है जनाधार
यहां आपको बता दें कि, लंबे वक्त तक कैप्टन जयनारायण निषाद भी मल्लाहों के नेता रहे. लेकिन, उन्होंने अपनी कोई पार्टी नहीं बनाई, बल्कि आरजेडी के साथ अपना सियासी करियर शुरू की और फिर जेडीयू और उसके बाद बीजेपी में चले गए. निषाद मल्लाहों के वोट बैंक को ही साध कर मुजफ्फरपुर संसदीय सीट से पांच बार सांसद चुने गए. साल 2018 में उनका निधन हो गया. उनके पुत्र अजय निषाद भाजपा के टिकट पर मुजफ्फरपुर से ही सांसद हैं.

Last Updated : Oct 3, 2020, 8:00 PM IST
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