पटना: कार्तिक महीने शुक्ल पक्ष के दिन बुधवार को तुलसी विवाह मनाया गया. जिले में महिलाएं इस पर्व को लेकर काफी उत्साहित देखीं गईं. इस दौरान सुहागिन महिलाएं तुलसी माता और शालिग्राम पत्थर, विष्णु भगवान का फोटो रखकर शादी कराते देखीं गईं.
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महिलाओं ने मनाया तुलसी विवाह
कहते हैं हमारा भारत देश विभिन्न संस्कृति और धार्मिक पूजा की देवभूमि रही है. कार्तिक महीना पूरे साल का पवित्र महीना हिंदुओं के लिए माना जाता है. इस महीने में छठ त्योहार के बाद शुक्ला पक्ष दिन तुलसी विवाह का पर्व पड़ता है. इस दिन सुहागिन महिलाएं और युवतियां तुलसी मइया और शालिग्राम पत्थर या विष्णु भगवान का फोटो रखकर विधिवत शादी कराती हैं. इसके साथ ही मिट्टी और पीतल का दिया जलाकर अगरबत्ती, पुष्प, मिठाई रखकर विधिवत पूजा करती हैं.
जानिए तुलसी विवाह की कहानी
इस पर्व को लेकर पुराणों में कहानी है कि जलंधर नामक एक राक्षस हुआ करता था, जो शादीशुदा होते हुए भी मां पर्वती को चाहने के लिए उनके पास जाकर मायावी शक्ति से भगवान शिव बनकर चला गया था. लेकिन कहते हैं कि मां पार्वती अपने भक्ति और योग के बलबूते पर उस मायावी जालंधर राक्षस को पहचान ली थी और उसी समय गायब हो गई थी. उसके बाद मां पार्वती भगवान विष्णु के पास गई थी और अपने साथ हुए सारी घटनाओं की जानकारी दी. भगवान विष्णु उस राक्षस को मारने के लिए उसकी धार्मिक प्रवृत्ति की पत्नी को उसके पति के नजर से हटाने के लिए पास गए. ऐसा होने पर ही उस राक्षस को मारा जा सकता था. यही वजह है कि भगवान विष्णु उसकी धार्मिक पत्नी के पास गए थे, जहां दो राक्षस के साथ वह मौजूद थी.
खुद को जलाकर हुई सती
भगवान विष्णु दोनों राक्षसों को भस्म कर दिए. इसे देखकर उक्त राक्षस की पत्नी अपने पति जालंधर के बारे में भगवान विष्णु से पूछी तो उन्होंने अपने विधा के बल पर उसका धड़ जो शरीर से अलग था, दिखाया और फिर उसे जिंदा करने के दौरान खुद उस जलंधर राक्षस के शरीर में प्रवेश कर गई. इसके बाद उस धार्मिक प्रवृत्ति की राक्षस की पत्नी भगवान विष्णु को अपना पति जैसा व्यवहार करने लगी, जिसके चलते उसका पतिव्रता भंग हो गया और उसके पति को कैलाश पर्वत पर भगवान शिव मार गिराए. इसकी जानकारी मिलते ही उक्त राक्षस की पत्नी ने भगवान विष्णु को श्राप देकर शालिग्राम पत्थर बना दिया. इसके बाद भगवान विष्णु तुरंत उसके श्राप से शालिग्राम पत्थर बन गए. इसके तीनों लोक में भगवान विष्णु के नहीं पहुंचने पर सभी देवी-देवताओं ने उक्त राक्षस की पत्नी से भगवान विष्णु को अपने श्राप से मुक्त करने के लिए आग्रह किया. उसने भगवान विष्णु को श्राप से मुक्त कर खुद को जलाकर सती हो गई. इसके बाद वहां एक तुलसी का पौधा उग आया. इसके बाद भगवान विष्णु उसके सतीत्व पर खुश होकर कहा कि तुम्हारा जब तक भोग नहीं लगेगा तब तक मैं नहीं जाऊंगा.