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पटना में कोरोना के साये में मना लोहड़ी का जश्न

लोहड़ी उत्तर भारत का एक प्रमुख पर्व है. ज्यादातर यह पर्व पंजाबी बिरादरी के लोग ही मनाते हैं. नये फसलों के आगमन, तील और गुड़ की गर्माहट के साथ मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर धार्मिक गीतों के साथ लोहड़ी मनाते हैं. कोरोना संक्रमण के मामलों वृद्धि (Corona infection cases increase) के बीच इस त्योहार को मनाया गया.

Lohri
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Published : Jan 14, 2022, 9:24 AM IST

पटनासिटी: कोरोना संक्रमण के साये के बीच देशभर में गुरुवार को हर्षोल्लास के साथ लोहड़ी का त्योहार (Lohri celebrated in Patna) मनाया गया. खासकर पंजाब, हरियाणा और उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में लोगों ने लोहड़ी का पर्व मनाया और सुख एवं समृद्धि की कामना की. पटना में हर्षोल्लास के साथ यह पर्व मनाया गया. लोहड़ी नये फसलों एवं उमंगों का त्योहार माना जाता है. इस पर्व का जोरदार स्वागत करने के लिये पंजाबी बिरादरी के लोगो को इंतजार रहता है. कपकपाती ठंड में आग और तिल की गर्माहट एवं नये-नये मनमोहक कपड़े व धार्मिक गीतों के साथ इस पर्व की शुरुआत की जाती है.

ये भी पढ़ें: Makar Sankarnti 2022: मकर संक्रांति पर दान करने से मिलता है पुण्य, जानें किस राशि के लिए क्या दान करना रहेगा शुभ

नव दम्पति आग जलाकर पांच फेरे लेकर अपने जीवन की शुरुआत करते हैं. मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर लोहड़ी पर्व मनाया जाता है. धार्मिक गीतों को गाकर इस पर्व को मानते हैं. चौक स्थित किला हाउस के पास पंजाबी एवं अन्य बिरादरी के लोगों ने भी लोहड़ी पर्व खूब धूमधाम से मनाया. लोहड़ी का पर्व आदि काल से मनाया जा रहा है. इस पर्व के कई तथ्य मिलते है. लोहड़ी पर्व के दिन अग्नि प्रज्जवलित कर पंजाबी समाज के लोग उसकी परिक्रमा करते हैं. साथ ही अच्छी फसल, स्वास्थ्य और व्यापार की कामना के साथ अग्नि में रेवड़ी, मक्का, गजक अर्पित करते हैं.

लोहड़ी का जश्न

पौराणिक मान्यता के अनुसार सती के त्याग के रूप में ये त्योहार मनाया जाता है. माना जाता है कि जब प्रजापति दक्ष के यज्ञ की आग में कूदकर शिव की पत्नी सती ने आत्मदाह कर लिया था. उसी दिन की याद में ये पर्व मनाया जाता है. इसके अलावा ये भी मान्यता है कि सुंदरी और मुंदरी नाम की लड़कियों को सौदागरों से बचाकर दुल्ला भट्टी ने हिंदू लड़कों से उनकी शा‍दी करवा दी थी. इसके अलावा कहा ये भी जाता है कि संत कबीर की पत्नी लोई की याद में इस पर्व को मनाया जाता है.

वहीं एक और मान्यता के अनुसार द्वापर युग में जब सभी लोग मकर संक्रांति का पर्व मनाने में व्यस्त थे, तब बालक कृष्ण को मारने के लिए कंस ने लोहिता नामक राक्षसी को गोकुल भेजा, जिसे बालक कृष्ण ने खेल-खेल में ही मार डाला था. लोहिता नामक राक्षसी के नाम पर ही लोहड़ी उत्सव का नाम रखा गया. उसी घटना को याद करते हुए लोहड़ी पर्व मनाया जाता है.

ये भी पढ़ें: Makar Sankranti 2022: जानें आज के दिन क्यों उड़ाई जाती है पतंग, क्या है इसके पीछे कहानी..

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पटनासिटी: कोरोना संक्रमण के साये के बीच देशभर में गुरुवार को हर्षोल्लास के साथ लोहड़ी का त्योहार (Lohri celebrated in Patna) मनाया गया. खासकर पंजाब, हरियाणा और उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में लोगों ने लोहड़ी का पर्व मनाया और सुख एवं समृद्धि की कामना की. पटना में हर्षोल्लास के साथ यह पर्व मनाया गया. लोहड़ी नये फसलों एवं उमंगों का त्योहार माना जाता है. इस पर्व का जोरदार स्वागत करने के लिये पंजाबी बिरादरी के लोगो को इंतजार रहता है. कपकपाती ठंड में आग और तिल की गर्माहट एवं नये-नये मनमोहक कपड़े व धार्मिक गीतों के साथ इस पर्व की शुरुआत की जाती है.

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नव दम्पति आग जलाकर पांच फेरे लेकर अपने जीवन की शुरुआत करते हैं. मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर लोहड़ी पर्व मनाया जाता है. धार्मिक गीतों को गाकर इस पर्व को मानते हैं. चौक स्थित किला हाउस के पास पंजाबी एवं अन्य बिरादरी के लोगों ने भी लोहड़ी पर्व खूब धूमधाम से मनाया. लोहड़ी का पर्व आदि काल से मनाया जा रहा है. इस पर्व के कई तथ्य मिलते है. लोहड़ी पर्व के दिन अग्नि प्रज्जवलित कर पंजाबी समाज के लोग उसकी परिक्रमा करते हैं. साथ ही अच्छी फसल, स्वास्थ्य और व्यापार की कामना के साथ अग्नि में रेवड़ी, मक्का, गजक अर्पित करते हैं.

लोहड़ी का जश्न

पौराणिक मान्यता के अनुसार सती के त्याग के रूप में ये त्योहार मनाया जाता है. माना जाता है कि जब प्रजापति दक्ष के यज्ञ की आग में कूदकर शिव की पत्नी सती ने आत्मदाह कर लिया था. उसी दिन की याद में ये पर्व मनाया जाता है. इसके अलावा ये भी मान्यता है कि सुंदरी और मुंदरी नाम की लड़कियों को सौदागरों से बचाकर दुल्ला भट्टी ने हिंदू लड़कों से उनकी शा‍दी करवा दी थी. इसके अलावा कहा ये भी जाता है कि संत कबीर की पत्नी लोई की याद में इस पर्व को मनाया जाता है.

वहीं एक और मान्यता के अनुसार द्वापर युग में जब सभी लोग मकर संक्रांति का पर्व मनाने में व्यस्त थे, तब बालक कृष्ण को मारने के लिए कंस ने लोहिता नामक राक्षसी को गोकुल भेजा, जिसे बालक कृष्ण ने खेल-खेल में ही मार डाला था. लोहिता नामक राक्षसी के नाम पर ही लोहड़ी उत्सव का नाम रखा गया. उसी घटना को याद करते हुए लोहड़ी पर्व मनाया जाता है.

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