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वामदलों का एलान 'कृषि विरोधी काले कानून के खिलाफ 8 दिसंबर का भारत बंद होगा ऐतिहासिक' - Left parties support Bharat bandh

वामदलों की संयुक्त बैठक में नेताओं ने किसान संघर्ष समन्वय समिति की 8 दिसंबर को बुलाई गई भारत बंद को अपना समर्थन दिया है. वाम दलों के नेताओं ने कहा कि केन्द्र की मंशा साफ नहीं है. इसलिए इतने दौर की बातचीत बेनतीजा रही है.

पटना
वाम दलों की प्रेसवार्ता
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Published : Dec 7, 2020, 1:05 AM IST

पटना: कृषि बिल वापस लेने की मांग को लेकर अब किसानों को वाम मोर्चे का भी साथ मिल गया है. अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति की 8 दिसंबर को बुलाई गई भारत बंद को अब वाम दलों का साथ मिल गया है.

किसानों के समर्थन में उतरेगी वाम मोर्चा
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), भाकपा (माले) के नेताओं ने फैसला लिया है कि वामदल संयुक्त रूप से किसानों के समर्थन में सड़कों पर उतरेगी. भारत बंद को सफल बनाएगी. वामदल के नेताओं ने कहा की मोदी सरकार अपनी दमनकारी नीति चला कर किसानों को डराना चाह रही है. सरकार किसानों से वार्ता का बस दिखावा कर रही है. वास्तव में सरकार किसानों की मांगों को मानना ही नहीं चाहती है.

सरकार की नियत साफ नहीं
वाम दलों के नेताओं ने कहा कि कई दौर की वार्ता के बावजूद वार्ता बेनतीजा रही. इससे जाहिर होता है कि सरकार कानूनों को वापस लेने की मांग पर तैयार नहीं है. किसानों ने भी इस बार मूड बना लिया है कि वह पीछे नहीं हटेंगे इस बार सरकार को ही पीछे हटना होगा. वाम दलों के नेताओं ने कहा कि भारत बंद में तीनों काले कृषि कानूनों को रद्द करने के साथ प्रस्तावित बिजली बिल की वापसी, न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकारी दर पर फसल खरीद की गारंटी की भी मांग प्रमुखता से उठाई जाएगी.

पटना: कृषि बिल वापस लेने की मांग को लेकर अब किसानों को वाम मोर्चे का भी साथ मिल गया है. अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति की 8 दिसंबर को बुलाई गई भारत बंद को अब वाम दलों का साथ मिल गया है.

किसानों के समर्थन में उतरेगी वाम मोर्चा
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), भाकपा (माले) के नेताओं ने फैसला लिया है कि वामदल संयुक्त रूप से किसानों के समर्थन में सड़कों पर उतरेगी. भारत बंद को सफल बनाएगी. वामदल के नेताओं ने कहा की मोदी सरकार अपनी दमनकारी नीति चला कर किसानों को डराना चाह रही है. सरकार किसानों से वार्ता का बस दिखावा कर रही है. वास्तव में सरकार किसानों की मांगों को मानना ही नहीं चाहती है.

सरकार की नियत साफ नहीं
वाम दलों के नेताओं ने कहा कि कई दौर की वार्ता के बावजूद वार्ता बेनतीजा रही. इससे जाहिर होता है कि सरकार कानूनों को वापस लेने की मांग पर तैयार नहीं है. किसानों ने भी इस बार मूड बना लिया है कि वह पीछे नहीं हटेंगे इस बार सरकार को ही पीछे हटना होगा. वाम दलों के नेताओं ने कहा कि भारत बंद में तीनों काले कृषि कानूनों को रद्द करने के साथ प्रस्तावित बिजली बिल की वापसी, न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकारी दर पर फसल खरीद की गारंटी की भी मांग प्रमुखता से उठाई जाएगी.

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