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Analysis: लालू प्रसाद को पसंद या नापसंद कर सकते हैं, नजरअंदाज नहीं

लालू की अहमियत 2019 लोकसभा चुनाव में और भी ज्यादा बढ़ गई है. महागठबंधन में मुख्य दल के तौर पर आरजेडी शामिल है. इस चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीट हासिल करना और एनडीए को पटखनी देना महागठबंधन के लिए बड़ी चुनौती है.

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Published : Mar 17, 2019, 1:07 PM IST

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पटना:आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव फिलहाल चारा घोटाला मामले में सजा काट रहे हैं. इधर, लोकसभा चुनाव 2019 का शंखनाद हो गया है. सभी पार्टियों ने पहले चरण के लिए उम्मीदवारों के नाम तय कर लिए हैं. वहीं, आरजेडी पहली बार लालू प्रसाद के बगैर चुनावी समर में उतर रहा है.

लालू कीअहमियत

रांची के रिम्स में भर्ती लालू प्रसाद भले ही प्रत्यक्ष तौर पर चुनाव से दूर हैं. लेकिन, इस शख्सियत की अहमियत 2019 लोकसभा चुनाव में और भी ज्यादा बढ़ गई है. महागठबंधन में मुख्य दल के तौर पर आरजेडी शामिल है. इस चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीट हासिल करना और एनडीए को पटखनी देना महागठबंधन के लिए बड़ी चुनौती है. सीटों पर कोई पेंच नहीं फंसे, यही वजह है कि महागठबंधन के ज्यादातर बड़े नेताओं के रिम्स में लालू से मिलने का सिलसिला जारी है. लालू वहीं से कई बार नेताओं को हड़काते भी हैं तो कई को एकजुट होकर एनडीए को मात देने की सीख भी देते हैं.

लालू पर हर पार्टी की नजर
राजनीति के जानकार भी मानते हैं कि लालू प्रसाद को अलग रखकर बिहार की सियासत को समझा ही नहीं जा सकता है. सजायाफ्ता होने के बावजूद वे प्रदेश की राजनीति में स्वंय एक केंद्र हैं. जेल में रहते हुए भी राष्ट्रीय स्तर पर उनकी पकड़ में कोई कमी नहीं आई है. देश की दोनों बड़ी पार्टियां आज भी लालू को दरकिनार करने की सोच भी नहीं पा रही है. बीजेपी नेताओं की रणनीति में लालू पर खास नजर रखी जाती है. वहीं, कांग्रेस बिना आरजेडी सुप्रीमो के सहयोग से बिहार में आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं कर पा रही है.

लालू पर जनता का भरोसा

वहीं, बिहार में बाहुबली से सांसद तक का सफर तय करनेवाले आनंद मोहन और शहाबुद्दीन की स्थिति किसी से छिपी नहीं. जेल जाने के बाद इनकी सियासी ताकत कमजोर पड़ गई. जो कभी हुंकार भरते थे. उनकी आवाज भी निकलनी बंद हो गई. लेकिन, लालू प्रसाद के साथ ऐसा नहीं हुआ. बिहार की जनता पर उनकी पकड़ आज भी कमजोर नहीं हुई है. तभी तो उनके सियासी विरोधी भी कहते हैं जनता की नब्ज पकड़ने में लालू प्रसाद का जोड़ नहीं.

पार्टी में दूसरा कद्दावर कौन?
लालू प्रसाद पर पार्टी में परिवारवाद का भी आरोप लगता रहा है. विरोधी उन्हें निशाने पर लेते रहते हैं. पार्टी के अंदर भी कई बार विरोध के स्वर फूटे. लेकिन, कोई इतना कद्दावर नहीं हो सका कि सीधे तौर पर लालू की खिलाफत कर पार्टी के अंदर पहचान बनाए रख सके.

पहली बार कब जेल पहुंचे थे लालू?
आरजेडी की नींव 5 जुलाई 1997 को पड़ी थी. उस समय से लेकर अभी तक लालू प्रसाद ही राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. पहली बार 30 जुलाई 1997 को आरजेडी सुप्रीमो जेल गए थे. इससे पहले ही 25 जुलाई को उन्होंने अपनी जगह राबड़ी देवी को सीएम बनवा दिया था. उस समय भी लगने लगा था कि अब लालू कमजोर पड़ जाएंगे. लेकिन, उसी मजबूती के साथ आरजेडी सुप्रीमो ने वापसी की थी. फिलहाल लालू प्रसाद जेल में हैं. इससे पहले भी कई बार अंदर पहुंचे और बाहर निकले. लेकिन, इससे उनके जनाधार पर कोई फर्क नहीं पड़ा. हर बार वो मजबूती के साथ खड़े हुए. तभी तो लालू प्रसाद को उनके सियासी साथी 'लड़ाका' राजनेता की संज्ञा देते हैं.

पटना:आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव फिलहाल चारा घोटाला मामले में सजा काट रहे हैं. इधर, लोकसभा चुनाव 2019 का शंखनाद हो गया है. सभी पार्टियों ने पहले चरण के लिए उम्मीदवारों के नाम तय कर लिए हैं. वहीं, आरजेडी पहली बार लालू प्रसाद के बगैर चुनावी समर में उतर रहा है.

लालू कीअहमियत

रांची के रिम्स में भर्ती लालू प्रसाद भले ही प्रत्यक्ष तौर पर चुनाव से दूर हैं. लेकिन, इस शख्सियत की अहमियत 2019 लोकसभा चुनाव में और भी ज्यादा बढ़ गई है. महागठबंधन में मुख्य दल के तौर पर आरजेडी शामिल है. इस चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीट हासिल करना और एनडीए को पटखनी देना महागठबंधन के लिए बड़ी चुनौती है. सीटों पर कोई पेंच नहीं फंसे, यही वजह है कि महागठबंधन के ज्यादातर बड़े नेताओं के रिम्स में लालू से मिलने का सिलसिला जारी है. लालू वहीं से कई बार नेताओं को हड़काते भी हैं तो कई को एकजुट होकर एनडीए को मात देने की सीख भी देते हैं.

लालू पर हर पार्टी की नजर
राजनीति के जानकार भी मानते हैं कि लालू प्रसाद को अलग रखकर बिहार की सियासत को समझा ही नहीं जा सकता है. सजायाफ्ता होने के बावजूद वे प्रदेश की राजनीति में स्वंय एक केंद्र हैं. जेल में रहते हुए भी राष्ट्रीय स्तर पर उनकी पकड़ में कोई कमी नहीं आई है. देश की दोनों बड़ी पार्टियां आज भी लालू को दरकिनार करने की सोच भी नहीं पा रही है. बीजेपी नेताओं की रणनीति में लालू पर खास नजर रखी जाती है. वहीं, कांग्रेस बिना आरजेडी सुप्रीमो के सहयोग से बिहार में आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं कर पा रही है.

लालू पर जनता का भरोसा

वहीं, बिहार में बाहुबली से सांसद तक का सफर तय करनेवाले आनंद मोहन और शहाबुद्दीन की स्थिति किसी से छिपी नहीं. जेल जाने के बाद इनकी सियासी ताकत कमजोर पड़ गई. जो कभी हुंकार भरते थे. उनकी आवाज भी निकलनी बंद हो गई. लेकिन, लालू प्रसाद के साथ ऐसा नहीं हुआ. बिहार की जनता पर उनकी पकड़ आज भी कमजोर नहीं हुई है. तभी तो उनके सियासी विरोधी भी कहते हैं जनता की नब्ज पकड़ने में लालू प्रसाद का जोड़ नहीं.

पार्टी में दूसरा कद्दावर कौन?
लालू प्रसाद पर पार्टी में परिवारवाद का भी आरोप लगता रहा है. विरोधी उन्हें निशाने पर लेते रहते हैं. पार्टी के अंदर भी कई बार विरोध के स्वर फूटे. लेकिन, कोई इतना कद्दावर नहीं हो सका कि सीधे तौर पर लालू की खिलाफत कर पार्टी के अंदर पहचान बनाए रख सके.

पहली बार कब जेल पहुंचे थे लालू?
आरजेडी की नींव 5 जुलाई 1997 को पड़ी थी. उस समय से लेकर अभी तक लालू प्रसाद ही राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. पहली बार 30 जुलाई 1997 को आरजेडी सुप्रीमो जेल गए थे. इससे पहले ही 25 जुलाई को उन्होंने अपनी जगह राबड़ी देवी को सीएम बनवा दिया था. उस समय भी लगने लगा था कि अब लालू कमजोर पड़ जाएंगे. लेकिन, उसी मजबूती के साथ आरजेडी सुप्रीमो ने वापसी की थी. फिलहाल लालू प्रसाद जेल में हैं. इससे पहले भी कई बार अंदर पहुंचे और बाहर निकले. लेकिन, इससे उनके जनाधार पर कोई फर्क नहीं पड़ा. हर बार वो मजबूती के साथ खड़े हुए. तभी तो लालू प्रसाद को उनके सियासी साथी 'लड़ाका' राजनेता की संज्ञा देते हैं.

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पटना:आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव फिलहाल चारा घोटाला मामले में सजा काट रहे हैं. इधर, लोकसभा चुनाव 2019 का शंखनाद हो गया है. सभी पार्टियों ने पहले चरण के लिए उम्मीदवारों के नाम तय कर लिए हैं. वहीं, आरजेडी पहली बार लालू प्रसाद के बगैर चुनावी समर में उतर रहा है.





रांची के रिम्स में भर्ती लालू प्रसाद भले ही प्रत्यक्ष तौर पर चुनाव से दूर हैं. लेकिन, इस शख्सियत की अहमियत 2019 लोकसभा चुनाव में और भी ज्यादा बढ़ गई है. महागठबंधन में मुख्य दल के तौर पर आरजेडी शामिल है. इस चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीट हासिल करना और एनडीए को पटखनी देना महागठबंधन के लिए बड़ी चुनौती है. सीटों पर कोई पेंच नहीं फंसे, यही वजह है कि महागठबंधन के ज्यादातर बड़े नेताओं के रिम्स में लालू से मिलने का सिलसिला जारी है. लालू वहीं से कई बार नेताओं को हड़काते भी हैं तो कई को एकजुट होकर एनडीए को मात देने की सीख भी देते हैं.





लालू पर हर पार्टी की नजर

राजनीति के जानकार भी मानते हैं कि लालू प्रसाद को अलग रखकर बिहार की सियासत को समझा ही नहीं जा सकता है. सजायाफ्ता होने के बावजूद वे प्रदेश की राजनीति में स्वंय एक केंद्र हैं. जेल में रहते हुए भी राष्ट्रीय स्तर पर उनकी पकड़ में कोई कमी नहीं आई है. देश की दोनों बड़ी पार्टियां आज भी लालू को दरकिनार करने की सोच भी नहीं पा रही है. बीजेपी नेताओं की रणनीति में लालू पर खास नजर रखी जाती है. वहीं, कांग्रेस बिना आरजेडी सुप्रीमो के सहयोग से बिहार में आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं कर पा रही है.





लालू पर जनता का भरोसा



 वहीं, बिहार में बाहुबली से सांसद तक का सफर तय करनेवाले आनंद मोहन और शहाबुद्दीन की स्थिति किसी से छिपी नहीं. जेल जाने के बाद इनकी सियासी ताकत कमजोर पड़ गई. जो कभी हुंकार भरते थे. उनकी आवाज भी निकलनी बंद हो गई. लेकिन, लालू प्रसाद के साथ ऐसा नहीं हुआ. बिहार की जनता पर उनकी पकड़ आज भी कमजोर नहीं हुई है. तभी तो उनके सियासी विरोधी भी कहते हैं जनता की नब्ज पकड़ने में लालू प्रसाद का जोड़ नहीं. 



पार्टी में दूसरा कद्दावर कौन?

लालू प्रसाद पर पार्टी में परिवारवाद का भी आरोप लगता रहा है. विरोधी उन्हें निशाने पर लेते रहते हैं. पार्टी के अंदर भी कई बार विरोध के स्वर फूटे. लेकिन, कोई इतना कद्दावर नहीं हो सका कि सीधे तौर पर लालू की खिलाफत कर पार्टी के अंदर पहचान बनाए रख सके.

पहली बार कब जेल पहुंचे थे लालू?

आरजेडी की नींव 5 जुलाई 1997 को पड़ी थी. उस समय से लेकर अभी तक लालू प्रसाद ही राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. पहली बार 30 जुलाई 1997 को आरजेडी सुप्रीमो जेल गए थे. इससे पहले ही 25 जुलाई को उन्होंने अपनी जगह राबड़ी देवी को सीएम बनवा दिया था. उस समय भी लगने लगा था कि अब लालू कमजोर पड़ जाएंगे. लेकिन, उसी मजबूती के साथ आरजेडी सुप्रीमो ने वापसी की थी. फिलहाल लालू प्रसाद जेल में हैं. इससे पहले भी कई बार अंदर पहुंचे और बाहर निकले. लेकिन, इससे उनके जनाधार पर कोई फर्क नहीं पड़ा. हर बार वो मजबूती के साथ खड़े हुए. तभी तो लालू प्रसाद को उनके सियासी साथी 'लड़ाका' राजनेता की संज्ञा देते हैं.






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