पटना: बिहार में 2020 के हुकूमत के लिए होने वाली सियासी जंग की तैयारी में सभी राजनीतिक दल अभी से ही सियासी गुणा गणित बैठाने में जुट गए हैं. सत्ताधारी दल जदयू चुनावी तैयारी को लेकर मैदान में उतर गयी है. जदयू ने अपनी तैयारी में 2020 के लिए पार्टी का एजेंडा भी तय कर दिया है. 2020 के विधान सभा चुनाव के लिए नीतीश कुमार बिहार में चेहरा होंगे और बिहार का विकास पार्टी का मुददा होगा. इसी एजेंडे को लेकर पार्टी अपनी चुनावी तैयारी को अमली जामा पहनाने में जुट गयी है.
2020 की तैयारी के लिए पार्टी ने पूरे प्रदेश में जो कार्ययोजना तैयार की है. उसमें 15 नवम्बर से 5 दिसम्बर तक बूथ स्तर पर तैयारी को पुख्ता किया जाएगा. जिस क्रम में बूथ अध्यक्ष और बूथ सचिव बनाऐ जाएंगे. जिलाध्यक्षों को यह जिम्मेदारी दी गयी है. वे महीने में कम से कम 20 दिन बूथ लेवल तक चल रही पार्टी की तैयारी की समीक्षा करेंगे.
बूथ लेवल पर जुटने की तैयारी
साथ ही विधानसभा प्रभारियों को यह निर्देश दिया गया है कि वे बूथ स्तर तक बनी सभी कमेटियों की नियमित समीक्षा बैठक करेंगे. पार्टी के जारी हुए कार्यक्रम के अनुसार पार्टी के सभी विधायक उनके क्षेत्र में चल रहे पार्टी के कार्यक्रम और कार्यकर्ताओं के साथ बैठक करेंगे. पार्टी 15 दिसम्बर से 5 जनवरी 2020 तक हर विधानसभा क्षेत्र में पार्टी सम्मेलन का आयोजन करेगी. जनवरी तक पार्टी के लिए तय हुए कार्यक्रम से पार्टी बूथ स्तर तक पार्टी की पहुंच और पकड़ मजबूत करने में जुटी है.
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उपचुनाव में मिला झटका
2019 में बिहार विधानसभा की 5 सीटों के लिए हुए उपचुनाव में जदयू को बड़ा झटका लगा है. पार्टी ने 4 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन 3 सीटों पर पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था. उपचुनाव में राजद ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए नीतीश के विकास मॉडल पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया था. 3 सीटों पर हुई हार के बाद पार्टी में बड़े मंथन का दौर चला था. पार्टी अपनी रणनीति को और पुख्ता करते हुए 2020 के लिए पहले से ही तैयारी को अमली जामा पहनाने और उसे रफ्तार देने में जुट गयी है.
जातीय समीकरण साधना बड़ी चुनौती
2014 में लोक सभा चुनाव में जदयू की हार के बाद नैतिक जिम्मेवारी लेते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस्तीफा दे दिया और बिहार विधान सभा की तैयारी में जुट गए. बीजेपी के मोदी के गुजरात विकास मॉडल और नीतीश के बिहार के विकास मॉडल के बीच 2015 की राजनीतिक जमीन तैयार होने लगी, लेकिन जातीय गोलबंदी में कमजोर दिख रही जदयू ने बिहार में चुनावी नैय्या पार लगाने के लिए राजद के साथ गठबंधन किया. हालांकि इस गठबंधन से जदयू को कम राजद और कांग्रेस को ज्यादा फायदा हुआ.
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2015 की चुनावी समीक्षा
2015 के विधानसभा चुनाव की सियासी समीक्षा में यह बात साफ हो गयी थी कि बिहार में विकास का उतना असर नहीं दिखा जितना सोशल इंजीनियरिंग का. राजद से गठबंधन तोड़ने के बाद से जदयू की यही तैयारी है कि जातीय समीकरण के गणित को पहले ही बैठाना होगा और यही वजह है कि पार्टी अपनी तैयारी में इन चीजों को जोड़कर चल रही है.
विभेद और विरोध से किनारा
बिहार में जदयू और भाजपा में चेहरे के विरोध की राजनीति गठबंधन के सियासी सेहत पर असर डालती रही है. 2014 में लोक सभा चुनाव और भाजपा जदयू का गठबंधन टूटने से पहले सभी बड़ी सियासी लड़ाई इसी बात की चल रही थी कि आखिर किस चेहरे को सामने रखकर चुनाव लड़ा जाएगा और इसमें जदयू और भाजपा नेताओं के बीच काफी तल्खी भी बढ़ गयी थी. जदयू ने अपने प्रचार के लिए तैयार किए गए थिम सांग में भी 'फिर से एक बार हो बिहार में बहार हो... फिर से एक बार हो नीतीशे कुमार हो' को लांच कर दिया था. हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में यह विभेद बहुत ज्यादा उभरकर नहीं आया लेकिन 2020 में इस बात से गुरेज नहीं किया जा सकता की नीतीश और मोदी के चेहरे पर विरोध ओर विभेद की सियासत दोनो राजनीतिक दलों में नहीं होगी. जदयू पहले से ही इस बात को पूरे बिहार में माहौल तैयार करने में जुटी है कि 2020 के विधान सभा चुनाव में नीतीश ही चेहरा होंगे और विकास मुददा होगा और यह सदन में चर्चा और सड़क पर पोस्टर के रूप में दिख भी रहा है. जिसमें नीतीश कुमार को अभी से स्थापित करने का काम शुरू है. जो पोस्टर लग रहे हैं उसका नारा ही है कि 'क्यो करें विचार.. ठीके तो है नीतीश कुमार'.
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जदयू की सियासी रणनीति
2020 की सियासी रणनीति की तैयारी में जुटी जदयू नीतीश के नाम पर चुनावों में जाऐगी यह तय है और नाम के साथ पार्टी की मजबूती बनी रहे इसकी मजबूत तैयारी में पार्टी अभी से जुट गयी है.