पटना: बिहार की राजनीति में 2020 की तैयारी शुरू हो गयी है. राजनीतिक दल अपने लिए जीत का फार्मूला तैयार करने में जुट गए हैं. विरोधियों पर अपनी राजनीतिक जमीन की मजबूती की धौंस दिखाने में कोई कमजोर नहीं दिख रहा है. जो इस राजनीति में दल के लिए कमजोरी बन रहा है, उसे पार्टी बाहर का रास्ता दिखा रही है.
चुनावी तैयारी सबसे अहम
बिहार में सत्ता पर काबिज बीजेपी और जेडीयू को सबसे ज्यादा तैयारी करनी है. ऐसे में इन दलों के बीच सियासी सरगर्मी बढ़ी हुई है. बीजेपी बिहार में अपने लिए जो रास्ता खोज रही थी, उसे अमित शाह ने बंद कर दिया. उन्होंने नीतीश कुमार की अगुआई में चुनाव लड़ने का एलान कर दिया. उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार ही बिहार में 2020 के चुनाव के लिए एनडीए का सीएम चेहरा होंगे. ऐसे में संजय पासवान सरीखे नेता के लिए कोई शिकायत और किसी तरह की नई सियासत का रास्ता नहीं बचा है.
फ्रंट को मजबूत बनाना होगा
बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू को तैयारी के लिए एक नहीं बल्कि कई फ्रंट मजबूत करने होंगे. पार्टी के भीतर मचे घमासान को कम करने के साथ ही 2015 के चुनाव में लालू यादव के साथ जाने के कारण मिले खामियाजे को भी भरना होगा. 2015 में पार्टी को प्रशांत किशोर जैसे चुनावी रणनीतिकार मिले थे लेकिन इस बार बीजेपी के साथ के बावजूद भी जेडीयू को अपने लिए सियासी जमीन तैयार करनी होगी.
विकास ही चुनावी मुद्दा
दिल्ली चुनावों में प्रचार कर नीतीश कुमार ने एक ओर जहां बीजेपी के साथ अपने दल की एकजुटता को साफ तौर पर दिखाया और चुनावी मुद्दों के तेवर भी. विकास के मुद्दे पर बिहार में नीतीश कुमार ने अपनी सरकार बनायी और चलायी. 2020 के लिए भी विकास ही मुद्दा होगा, लेकिन इस बार जेडीयू को विकास के मुद्दे पर राजनीति के फायदे की सियासत का रंग भी झेलना होगा.
जेडीयू की बड़ी चिंता
पार्टी के नेताओं को इस बात की पूरी उम्मीद है कि बिहार में सरकार नीतीश कुमार ही बनाऐंगे. लेकिन इस बात को लेकर विभेद बना हुआ है कि 2015 में लालू यादव के साथ जाकर नीतीश ने विकास की जिस परिभाषा को गढ़ा था उससे कैसे निपटा जाए. जीत के बाद मुख्यमंत्री आवास में बनने वाली नीति और एक दल से दूसरे दल के साथ सरकार बनाने के मामले को जनता कितना भूली है और राजनति में बदलाव को कितना याद रखा है यह जेडीयू की सबसे बड़ी परेशानी है.
बूथ लेवल पर तैयारी में जेडीयू
जेडीयू बूथ लेवल तक की तैयारी कर रही है. लेकिन, डर भी इसी बात का है कि 2015 के लालू के साथ की बात हर बूथ पर कैसे भुलवाई जाए. पार्टी को सबसे ज्यादा यही डरा रहा है. बहरहाल सियासत की हवा में पुरानी बातें कितनी घुली हैं और समय ने उसे कितना भुलाया है यह जेडीयू की रणनीति बनाने वाली टीम को पता है. अहम यही है कि चुनाव में इसका कितना असर होगा यह देखना अहम होगा.