पटनाः बिहार में शिक्षा हमेशा से ही सबसे ज्यादा चर्चित विषयों में से एक रहा है. एक वक्त था जब बिहार परीक्षा में कदाचार और टॉपर घोटाले के लिए चर्चित था. शिक्षा मंत्री का दावा है कि पिछले 5 सालों में बिहार में शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह बदल चुकी है. अब बिहार के स्कूलों में एडमिशन के लिए बाहर के छात्रों की लाइन लगी रहती है. पेश है ईटीवी भारत से शिक्षा मंत्री कृष्ण नंदन वर्मा की बातचीत के प्रमुख अंश.
आंकड़ों की जुबानी शिक्षा की कहानी
वर्ष 2020-21 में शिक्षा विभाग का कुल बजट 351 अरब 91 करोड़ 4 लाख 56 हजार का है. बिहार स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना की शुरुआत 2 अक्टूबर 2016 को हुई. इसके तहत उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए निर्धन छात्र छात्राओं को 4 लाख की राशि ऋण के रूप में उपलब्ध कराई जाती है. 5 अगस्त 2020 तक 115074 स्टूडेंट्स को 1164.45 करोड़ रुपए की राशि दी जा चुकी है.
साइकिल खरीदने के लिए 3 हजार रुपए
मुख्यमंत्री बालिका स्नातक प्रोत्साहन योजना के तहत वर्ष 2019-20 में 51163 छात्राओं को बैंक खाते में डीबीटी के माध्यम से 127.91 करोड रुपए की राशि भेजी जा चुकी है. इस योजना में बालिकाओं को उच्चतर शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए स्नातक उत्तीर्ण छात्राओं को प्रति छात्रा 25,000 उपलब्ध कराया जाता है. मुख्यमंत्री बालिका/बालक साइकिल योजना के तहत सभी सरकारी माध्यमिक विद्यालयों में नवीं कक्षा के छात्राओं और छात्रों को प्रति छात्र/छात्रा 3,000 रुपए की दर से साइकिल खरीदने के लिए उनके बैंक खाते में डीबीटी के माध्यम से राशि भेजी जाती है. वर्ष 2019-20 में इस योजना के तहत 9,20,441 छात्र-छात्राओं के बैंक खाते में कुल 276.13 करोड़ रुपए की राशि भेजी गई.
मुख्यमंत्री बालक प्रोत्साहन योजना के तहत बिहार विद्यालय परीक्षा समिति द्वारा आयोजित दसवीं की परीक्षा में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण सामान्य कोटि के छात्रों को प्रति छात्र 10,000 रुपए की राशि दी जाती है. मुख्यमंत्री बालिका प्रोत्साहन योजना के तहत बिहार बोर्ड की ओर से आयोजित दसवीं की परीक्षा में फर्स्ट डिवीजन से पास करने वाली सामान्य और पिछड़ा वर्ग की छात्राओं को 10,000 रुपए की राशि दी जाती है. वर्ष 2019-20 में इस योजना के तहत कुल 56,118 छात्राओं के बैंक खाते में डीबीटी के माध्यम से 56.12 करोड रुपए की राशि भेजी गई.
मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना के तहत 10 हजार रुपए देती है सरकार
मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना के तहत सभी कोटि की अविवाहित छात्राओं को 10,000 की राशि उपलब्ध कराई जाती है. वर्ष 2019-20 में इस योजना के तहत कुल 3,22,668 छात्राओं के बैंक खाते में डीबीटी के माध्यम से कुल 322.67 करोड रुपए की राशि भेजी गई. बिहार के सभी पंचायतों में उच्च माध्यमिक विद्यालय खोलने की घोषणा सरकार ने की थी. पिछले दिनों बिहार के 3,304 पंचायतों में शैक्षिक सत्र 2020 21 से नौवीं की पढ़ाई शुरू करने की तैयारी पूरी हो चुकी है. उन्नयन बिहार कार्यक्रम के तहत बिहार के सभी माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालयों में इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी का उपयोग कर स्मार्ट क्लास के माध्यम से अगस्त 2019 से पढ़ाई कराई जा रही है. इस योजना के तहत वर्ष 2020-21 में 40 करोड़ रुपए होने की संभावना है. राज्य के माध्यमिक विद्यालयों में जल जीवन हरियाली कार्यक्रम के तहत वर्षा जल संचयन के निर्माण के लिए वर्ष 2020-21 में 23,00,00,000 खर्च किए जा रहे हैं.
'बढ़ी बिहार बोर्ड की साख'
शिक्षा मंत्री ने दावा किया कि बिहार की शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन आया है. पिछले 5 साल में मुख्यमंत्री के प्रयास से शिक्षा विभाग ने कई बेहतरीन काम किए हैं. जिसके लिए देशभर में बिहार का नाम हुआ है. उन्होंने बताया कि बिहार बोर्ड में कदाचार पर नियंत्रण ला कर परीक्षा प्रणाली में सुधार किया है. जिससे बेहतर रिजल्ट आने लगा है और परीक्षा फल भी देश में सबसे पहले मैट्रिक और इंटर का बिहार ही प्रकाशित करता है. इससे देश में बिहार बोर्ड की साख बढ़ी है और दूसरे राज्यों के बच्चे अब 11वीं में एडमिशन के लिए बिहार आ रहे हैं.
'3.30 लाख शिक्षकों की नियुक्ति'
शिक्षा मंत्री ने दावा किया कि बिहार के स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी थी. जिससे करीब 3.30 लाख शिक्षकों की नियुक्ति से पूरा कर लिया गया है और आगे भी शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया चल रही है. जिसे जल्द ही पूरा कर लिया जाएगा. उन्होंने यह भी कहा कि विश्वविद्यालयों में भी शिक्षकों की कमी को पूरा करने के प्रयास चल रहे हैं. विश्वविद्यालय सेवा आयोग का फिर से गठन किया गया है और बहुत जल्द करीब 5,000 सहायक अध्यापकों की बहाली बिहार में होगी. शिक्षा मंत्री कृष्ण नंदन वर्मा ने कहा कि 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चे पहले बड़ी संख्या में विद्यालय से बाहर थे. लेकिन उन्हें बिहार में शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने के प्रयास के कारण वर्ष 2019-20 में स्कूल से बाहर के बच्चों की संख्या 1 फीसदी से भी कम रह गई है.