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दियारा के अंतहीन दर्द की कहानी है - दानापुर के पानापुर का पीपा पुल और घाट

दानापुर पीपा पुल से शुक्रवार को एक पिक अप गंगा नदी में गिर गई जिसमें. ये कोई पहला मामला नहीं है. दियरा के इस पीपा पुल पर दर्द की अनगीनत कहानियां घटित हुई है. इस रिपोर्ट में जानिए दियरा के दर्द की कहानी.

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Published : Apr 23, 2021, 11:54 PM IST

patna
दियारा के अंतहीन दर्द की कहानी है

पटना: राजधानी पटना के सबसे चर्चित अनुमंडल दानापुर और उसका पीपा पुल घाट दानापुर दियारा के लोगों के दर्द की अंतहीन कहानी को बयां करता है. दानापुर पीपा पुल से शुक्रवार को एक पिक अप गंगा नदी में गिर गई जिसमें 9 लोगों की जान चली गई. हालांकि इस घाट पर गंगा में लोगों के डूब जाने की यह पहली घटना नहीं है. इससे पहले भी कई घटनाएं हो चुकी हैं. विडंबना तो यह है कि सरकार यहां के दर्द को समझने को तैयार नहीं है. आलम यह है किस घटना के बाद भी अगर यहां जिंदगी चलानी है तो विकल्प में भी पीपा पुल ही है. पेट को भरने के लिए दियारा के लोगों को कुछ करना है तो मौत बांटने वाले इस पीपा पुल और पानापुर के इस घाट से उन्हें गुजरना ही होगा.

इसे भी पढेंः पीपा पुल हादसा: थम गई शहनाई की धुन, पसर गया मातम

5 लाख की आबादी की लाइफ लाइन
दानापुर का यह पीपा पुल 5 लाख लोगों के जीवन की लाइफ लाइन है. रोज लाखों लोग रोजी रोटी कमाने को लेकर यहां से गुजरते हैं. दानापुर प्रखंड के अंतर्गत पड़ने वाले 6 पंचायतें जिनमें पानापुर, मानस कासिमचक, गंगहारा, हेतनपुर और पतलापुर पंचायत है. जबकि पटना सदर में नकटा दियारा और दिघवारा सोनपुर के अकिलपुर, रसूलपुर ,कस्मर और हसिलपुर पंचायतें हैं. दानापुर की इस पीपा पुल से इन पंचायतों की पूरी जिंदगी चलती है. लेकिन जिंदगानी जिस रफ्तार से गई और शुक्रवार को जिस तरीके से 9 जिंदगी गंगा के बीच धारा में विलीन हुई उसने सरकार के तमाम इंतजामों पर एक बार फिर सवाल खड़ा कर दिया है.

इसे भी पढेंः पटना: पीपा पुल से गंगा नदी में गिरी जीप, 9 की मौत, जांच के लिए तीन सदस्यीय टीम का गठन

1995 में छठ के दिन डूबी थी नाव
1995 में इसी पानापुर घाट पर एक नाव डूबी थी जिसमें दो दर्जन से ज्यादा लोगों की जान गई थी. लालू यादव ने उस समय इस मुद्दे को काफी जोर-शोर से उठाया था. उसके बाद यहां पीपा पुल दिया गया था. हालांकि 2006 में जब रघुवंश प्रसाद सिंह केंद्र सरकार में मंत्री थे तो उन्होंने कहा था कि पीपा पुल की जगह पक्का पुल बनवाएंगे इसके लिए बात भी कर रहे हैं. उस समय के केंद्र सरकार में जल संसाधन राज्य मंत्री जयप्रकाश नारायण यादव थे, उन्होंने इस जगह का सर्वे भी किया, चक्कर भी लगाया, लोगों को भरोसा भी दिया, लेकिन ढाक के तीन पात जैसी स्थिति ही रह गई.

इसे भी पढेंः पटना: पीपा पुल से गंगा नदी में गिरी जीप, 9 की मौत, कई लापता, मृतकों के परिजन को मुआवजा

एक साल पहले पुलिस वालों ने मारी थी गोली
दियारा के क्षेत्र में अपराध नियंत्रण को लेकर के अकिलपुर थाना बनाया गया. 2020 में कोरोना के समय एक आलू व्यवसायी ट्रैक्टर से आलू लेकर जा रहा था. जिसमें पुलिसिया वसूली का मामला भी आया था. पुलिस वालों ने उस व्यापारी को गोली मार दी थी. हालांकि तत्कालीन डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे ने इस मामले को संज्ञान में लेते हुए उन पुलिस अधिकारियों को पहले निलंबित किया. फिर उन पर 302 का मुकदमा दर्ज हुआ. अभी वह जेल में है लेकिन यह कहानी भी दियारा के लिए एक दर्द ही दे गया.

इसे भी पढेंः 15 जून से बिहार के सभी पीपापुल होंगे बंद, मानसून के आगमन को लेकर पुल निर्माण निगम ने दिया आदेश

लालू का राजनैतिक बल रहा है दानापुर दियारा
दानापुर की 6 पंचायतें पुरानी पानापुर, मानस, कासिमचक, गंगाहारा, हेतनपुर, पतलापुर के अलावा नकटा दियारा, दिघवारा, अकिलपुर, रसूलपुर, कस्माल, हासिलपुर इन पंचायतों में 5 लाख से ज्यादा की आबादी है. यादव बाहुल्य क्षेत्र होने के नाते लालू यादव की यहां तूती बोलती है. नकटा दियारा लालू यादव का दूसरा घर कहा जाता है. कभी राबड़ी देवी इस क्षेत्र से विधायक भी होती थी और यहां का नाम भी काफी ज्यादा था.

इसे भी पढेंः दानापुर में अनियंत्रित ट्रैक्टर पलटा, हादसे के बाद पीपा पुल पर लगा जाम

'जाति' की सियासत में फंसा दियारा
वैसे दियारा की एक बड़ी आबादी अभी भी तेजस्वी यादव को वोट देकर अपना विधायक चुनी है. लेकिन यहां की सियासत 'जाति' की ही बनकर रह गई. विकास यहां तक नहीं पहुंचा. लालू यादव गांधी मैदान या पटना में जब भी रैली, रैला, महा रैला, लाठी रैली, लाठी तेल पिया वन रैली करते थे सभी में दियारा के लोग भर-भर कर जाते थे. पूरा गांधी मैदान ही भर देते थे. लेकिन जब भी विकास से दियारा की झोली भरने की बात आई लालू के हाथ तंग हुए. आज की सरकार भी विकास के मामले में हाथ खाली किए ही बैठी है.

इसे भी पढेंः पटना: पीपा पुल का निर्माण कार्य अधूरा, बंदरबांट का आरोप

साफ दिखता है अगड़ा और पिछड़ा बिहार
गंगा का पूर्वी छोर पटना शहर है. अगर दीघा से सड़क मुड़ जाए तो दिशा बदल जाती है. लेकिन अगर आप पटना से दियारा की तरफ दिशा बदल दें तो आपको साफ-साफ दिखेगा कि पटना से महज 500 मीटर की दूरी पर दो बिहार बसता है. एक वो बिहार जिसमें चमकती राजधानी का चकाचौंध, दौड़ती भागती जिंदगी, ऐसो आराम वाला शहर है. जबकि वहां से सिर्फ 500 मीटर की दूरी अगर चल दी जाए तो एक सा सन्नाटा जो खुद के लिए विकास की राह जोह रहा है.

इसे भी पढेंः बड़े-बड़े नेताओं को सदन में भेजने के बाद भी नहीं सुधरी यहां के लोगों की जिंदगी

सब्जी-दूध पहुंचाने वाला दियारा खुद है भूखा
यह दियारा ऐसा नहीं है कि यहां के लोग सरकार से नौकरी मांगने जाते हैं. क्योंकि दानापुर का दियारा पटना को सब्जी देता है, दूध देता है, दही पहुंचाता है. कहा जा सकता है कि पटना को हरी सब्जी की सौगात दानापुर दियारा ही देता है. लेकिन विकास की हरियाली आज भी उस के नसीब में नहीं है. अगर इसके पास कुछ है तो पीपा पुल पर वह थाती जिसमें कोई गाड़ी गंगा में फिसल जाती है और दियारा के 9 लोग अपनी जान गंवा देते हैं.

इसे भी पढेंः गांधी सेतु पर मिलेगी जाम से निजात, एक सप्ताह में चालू होगा पीपा पुल - नंद किशोर यादव

पीपा पुल के बाद नाव होकर भी जिंदगी दांव पर
दानापुर का पीपा पुल घाट फरवरी महीने के किसी तारीख से चलना शुरू करता है. मई के पहले हफ्ते के आते-आते तक खुल जाता है. इसके बाद पूरी दानापुर दियारा की जिंदगी नाव पर टिक जाती है. दानापुर दियारा के इन 5 लाख लोगों की जिंदगी के लिए नाव ही इनकी मर्सिडीज है, नाव ही इनकी जीवन की लाइफ लाइन.

इसे भी पढेंः पटना: पीपा पुल फिर से शुरू, बरकरार है कई खामियां

बातों के सिवाय दियारा को कुछ ना मिला
ऐसा नहीं है कि सत्ता में बैठे लोग इस दर्द को जानते नहीं. इस हकीकत से वाकिफ नहीं है. या इससे रूबरू नहीं होते. ये अलग बात है कि हकीकत से सामना करने के लिए जाते ही नहीं हैं. क्योंकि दियारा के लोग विकास के लिए चाहे जो मांगे, देने के नाम पर सरकार के पास बस बाते ही हैं. यहां के विकास में जाति है जो राजनीति में जड़ जमा चुकी है. जाति ने आज भी दियारा के विकास को रोक रखा है.

इसे भी पढेंः पटना: गांधी सेतु पर चल रहे निर्माण कार्य के दौरान JCB से लदा बार्ज गंगा में डूबा

पिस रहा दानापुर कर दियारा
दरअसल बिहार में जिस जाति की सियासत हुई उसमें दियारा की भी एक ऐसी कहानी है जो आज तक राजनेताओं की नजर से खत्म नहीं हुई. सियासत में विकास की बात करने वाले लोग जो जाति के साथ जुड़े थे आज सत्ता में नहीं हैं. जो लोग आज सत्ता में है उन्हें उस जाति से कोई फायदा होता दिख नहीं रहा है. इसी में पूरा दानापुर कर दियारा पिस रहा है.

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दियारा के लिए सरकार की नहीं टूटी निंद
3 महीने तक पांच लाख की आबादी गंगा के बाढ़ और कटाव से जूझती है. बचा समय जिंदगी को कभी पीपा पुल और कभी नाव के ऊपर ढोने के लिए मजबूर है. दर्द की यह अंतहीन कथा लगातार चली आ रही है. अखिल भारतीय बाढ़ सुखाड़ और कटाव पीड़ित मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राम भजन सिंह यादव लगातार इस विषय के लिए सवाल उठाते रहे हैं. शायद ही कोई ऐसा साल हो जिसमें इस दियारा के लोगों को सरकार के गलियारे में अपनी बात पहुंचाने के लिए कई जोड़ी चप्पलें न तोड़नी पड़ी हो. बस नहीं कुछ टूटा तो सरकारों की वो नींद जो दियारा को भी विकास की कोई दिशा दे दे.

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दियारा के अंतहीन दर्द की कहानी है

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दियारा के दर्द की अंतहीन कथा
दानापुर दियारा के 9 लोग असमय काल के गाल में समा गए. जो पीपापुल पर हुआ, अब बारी नाव की है. क्योंकि जिंदगी को रोक पाना मुश्किल है और सरकार से कोई विकास पहुंचा पाना भी नामुमकिन जैसा है. अगर कुछ है तो दानापुर दियारा के लिए बस दियारा के दर्द की अंतहीन कथा. जिसमें अपनों की मौत पे रो लेने के बाद मौत वाले उसी रास्ते पे जिंदगी पाने के लिए चल देना. यही हकीकत है और दर्द है दियारा का.

पटना: राजधानी पटना के सबसे चर्चित अनुमंडल दानापुर और उसका पीपा पुल घाट दानापुर दियारा के लोगों के दर्द की अंतहीन कहानी को बयां करता है. दानापुर पीपा पुल से शुक्रवार को एक पिक अप गंगा नदी में गिर गई जिसमें 9 लोगों की जान चली गई. हालांकि इस घाट पर गंगा में लोगों के डूब जाने की यह पहली घटना नहीं है. इससे पहले भी कई घटनाएं हो चुकी हैं. विडंबना तो यह है कि सरकार यहां के दर्द को समझने को तैयार नहीं है. आलम यह है किस घटना के बाद भी अगर यहां जिंदगी चलानी है तो विकल्प में भी पीपा पुल ही है. पेट को भरने के लिए दियारा के लोगों को कुछ करना है तो मौत बांटने वाले इस पीपा पुल और पानापुर के इस घाट से उन्हें गुजरना ही होगा.

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5 लाख की आबादी की लाइफ लाइन
दानापुर का यह पीपा पुल 5 लाख लोगों के जीवन की लाइफ लाइन है. रोज लाखों लोग रोजी रोटी कमाने को लेकर यहां से गुजरते हैं. दानापुर प्रखंड के अंतर्गत पड़ने वाले 6 पंचायतें जिनमें पानापुर, मानस कासिमचक, गंगहारा, हेतनपुर और पतलापुर पंचायत है. जबकि पटना सदर में नकटा दियारा और दिघवारा सोनपुर के अकिलपुर, रसूलपुर ,कस्मर और हसिलपुर पंचायतें हैं. दानापुर की इस पीपा पुल से इन पंचायतों की पूरी जिंदगी चलती है. लेकिन जिंदगानी जिस रफ्तार से गई और शुक्रवार को जिस तरीके से 9 जिंदगी गंगा के बीच धारा में विलीन हुई उसने सरकार के तमाम इंतजामों पर एक बार फिर सवाल खड़ा कर दिया है.

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1995 में छठ के दिन डूबी थी नाव
1995 में इसी पानापुर घाट पर एक नाव डूबी थी जिसमें दो दर्जन से ज्यादा लोगों की जान गई थी. लालू यादव ने उस समय इस मुद्दे को काफी जोर-शोर से उठाया था. उसके बाद यहां पीपा पुल दिया गया था. हालांकि 2006 में जब रघुवंश प्रसाद सिंह केंद्र सरकार में मंत्री थे तो उन्होंने कहा था कि पीपा पुल की जगह पक्का पुल बनवाएंगे इसके लिए बात भी कर रहे हैं. उस समय के केंद्र सरकार में जल संसाधन राज्य मंत्री जयप्रकाश नारायण यादव थे, उन्होंने इस जगह का सर्वे भी किया, चक्कर भी लगाया, लोगों को भरोसा भी दिया, लेकिन ढाक के तीन पात जैसी स्थिति ही रह गई.

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एक साल पहले पुलिस वालों ने मारी थी गोली
दियारा के क्षेत्र में अपराध नियंत्रण को लेकर के अकिलपुर थाना बनाया गया. 2020 में कोरोना के समय एक आलू व्यवसायी ट्रैक्टर से आलू लेकर जा रहा था. जिसमें पुलिसिया वसूली का मामला भी आया था. पुलिस वालों ने उस व्यापारी को गोली मार दी थी. हालांकि तत्कालीन डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे ने इस मामले को संज्ञान में लेते हुए उन पुलिस अधिकारियों को पहले निलंबित किया. फिर उन पर 302 का मुकदमा दर्ज हुआ. अभी वह जेल में है लेकिन यह कहानी भी दियारा के लिए एक दर्द ही दे गया.

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लालू का राजनैतिक बल रहा है दानापुर दियारा
दानापुर की 6 पंचायतें पुरानी पानापुर, मानस, कासिमचक, गंगाहारा, हेतनपुर, पतलापुर के अलावा नकटा दियारा, दिघवारा, अकिलपुर, रसूलपुर, कस्माल, हासिलपुर इन पंचायतों में 5 लाख से ज्यादा की आबादी है. यादव बाहुल्य क्षेत्र होने के नाते लालू यादव की यहां तूती बोलती है. नकटा दियारा लालू यादव का दूसरा घर कहा जाता है. कभी राबड़ी देवी इस क्षेत्र से विधायक भी होती थी और यहां का नाम भी काफी ज्यादा था.

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'जाति' की सियासत में फंसा दियारा
वैसे दियारा की एक बड़ी आबादी अभी भी तेजस्वी यादव को वोट देकर अपना विधायक चुनी है. लेकिन यहां की सियासत 'जाति' की ही बनकर रह गई. विकास यहां तक नहीं पहुंचा. लालू यादव गांधी मैदान या पटना में जब भी रैली, रैला, महा रैला, लाठी रैली, लाठी तेल पिया वन रैली करते थे सभी में दियारा के लोग भर-भर कर जाते थे. पूरा गांधी मैदान ही भर देते थे. लेकिन जब भी विकास से दियारा की झोली भरने की बात आई लालू के हाथ तंग हुए. आज की सरकार भी विकास के मामले में हाथ खाली किए ही बैठी है.

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साफ दिखता है अगड़ा और पिछड़ा बिहार
गंगा का पूर्वी छोर पटना शहर है. अगर दीघा से सड़क मुड़ जाए तो दिशा बदल जाती है. लेकिन अगर आप पटना से दियारा की तरफ दिशा बदल दें तो आपको साफ-साफ दिखेगा कि पटना से महज 500 मीटर की दूरी पर दो बिहार बसता है. एक वो बिहार जिसमें चमकती राजधानी का चकाचौंध, दौड़ती भागती जिंदगी, ऐसो आराम वाला शहर है. जबकि वहां से सिर्फ 500 मीटर की दूरी अगर चल दी जाए तो एक सा सन्नाटा जो खुद के लिए विकास की राह जोह रहा है.

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सब्जी-दूध पहुंचाने वाला दियारा खुद है भूखा
यह दियारा ऐसा नहीं है कि यहां के लोग सरकार से नौकरी मांगने जाते हैं. क्योंकि दानापुर का दियारा पटना को सब्जी देता है, दूध देता है, दही पहुंचाता है. कहा जा सकता है कि पटना को हरी सब्जी की सौगात दानापुर दियारा ही देता है. लेकिन विकास की हरियाली आज भी उस के नसीब में नहीं है. अगर इसके पास कुछ है तो पीपा पुल पर वह थाती जिसमें कोई गाड़ी गंगा में फिसल जाती है और दियारा के 9 लोग अपनी जान गंवा देते हैं.

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पीपा पुल के बाद नाव होकर भी जिंदगी दांव पर
दानापुर का पीपा पुल घाट फरवरी महीने के किसी तारीख से चलना शुरू करता है. मई के पहले हफ्ते के आते-आते तक खुल जाता है. इसके बाद पूरी दानापुर दियारा की जिंदगी नाव पर टिक जाती है. दानापुर दियारा के इन 5 लाख लोगों की जिंदगी के लिए नाव ही इनकी मर्सिडीज है, नाव ही इनकी जीवन की लाइफ लाइन.

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बातों के सिवाय दियारा को कुछ ना मिला
ऐसा नहीं है कि सत्ता में बैठे लोग इस दर्द को जानते नहीं. इस हकीकत से वाकिफ नहीं है. या इससे रूबरू नहीं होते. ये अलग बात है कि हकीकत से सामना करने के लिए जाते ही नहीं हैं. क्योंकि दियारा के लोग विकास के लिए चाहे जो मांगे, देने के नाम पर सरकार के पास बस बाते ही हैं. यहां के विकास में जाति है जो राजनीति में जड़ जमा चुकी है. जाति ने आज भी दियारा के विकास को रोक रखा है.

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पिस रहा दानापुर कर दियारा
दरअसल बिहार में जिस जाति की सियासत हुई उसमें दियारा की भी एक ऐसी कहानी है जो आज तक राजनेताओं की नजर से खत्म नहीं हुई. सियासत में विकास की बात करने वाले लोग जो जाति के साथ जुड़े थे आज सत्ता में नहीं हैं. जो लोग आज सत्ता में है उन्हें उस जाति से कोई फायदा होता दिख नहीं रहा है. इसी में पूरा दानापुर कर दियारा पिस रहा है.

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दियारा के लिए सरकार की नहीं टूटी निंद
3 महीने तक पांच लाख की आबादी गंगा के बाढ़ और कटाव से जूझती है. बचा समय जिंदगी को कभी पीपा पुल और कभी नाव के ऊपर ढोने के लिए मजबूर है. दर्द की यह अंतहीन कथा लगातार चली आ रही है. अखिल भारतीय बाढ़ सुखाड़ और कटाव पीड़ित मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राम भजन सिंह यादव लगातार इस विषय के लिए सवाल उठाते रहे हैं. शायद ही कोई ऐसा साल हो जिसमें इस दियारा के लोगों को सरकार के गलियारे में अपनी बात पहुंचाने के लिए कई जोड़ी चप्पलें न तोड़नी पड़ी हो. बस नहीं कुछ टूटा तो सरकारों की वो नींद जो दियारा को भी विकास की कोई दिशा दे दे.

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दियारा के अंतहीन दर्द की कहानी है

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दियारा के दर्द की अंतहीन कथा
दानापुर दियारा के 9 लोग असमय काल के गाल में समा गए. जो पीपापुल पर हुआ, अब बारी नाव की है. क्योंकि जिंदगी को रोक पाना मुश्किल है और सरकार से कोई विकास पहुंचा पाना भी नामुमकिन जैसा है. अगर कुछ है तो दानापुर दियारा के लिए बस दियारा के दर्द की अंतहीन कथा. जिसमें अपनों की मौत पे रो लेने के बाद मौत वाले उसी रास्ते पे जिंदगी पाने के लिए चल देना. यही हकीकत है और दर्द है दियारा का.

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