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Make Memory Power Strong: विशेषज्ञों ने माना- 'पुरानी पद्धति कारगर, जोर-जोर से बोल कर पढ़ने से मजबूत होती है स्मरण शक्ति'

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Published : Jan 26, 2023, 9:53 PM IST

करत करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान, रसरी आवत जात तें, सिल पर परत निशान. यह एक पुरानी कहावत है. इसी कहावत को आधार मानकर पुराने जमाने में शिक्षक बच्चों को पढ़ाते थे. इस कहावत का अर्थ है कि बार- बार किसी एक बात का अभ्यास करने से मंदबुद्धि व्यक्ति भी नई बातें सीख जाता है. स्मरण शक्ति मजबूत (how to strengthen memory power) रखने के लिए आज विशेषज्ञ भी इसी पुरानी पद्धति को कारगर मान रहे हैं. पढ़ें पूरी रिपोर्ट..

छात्र कैसे मजबूत करे स्मरण शक्ति
छात्र कैसे मजबूत करे स्मरण शक्ति
विशेषज्ञों ने माना, याद करने की पुरानी पद्धति कारगर

पटनाः आज कुछ भी पूछे जाने पर बच्चे कैलकुलेटर का इस्तेमाल करने लगे हैं या कॉपी पेन निकाल कर गुना-भाग, जोड़-घटाव करने लगते हैं. हाल ही में आई असर की रिपोर्ट भी इस बात की पुष्टि करती है कि प्रदेश में और देश में हिंदी और अंग्रेजी के पाठ पढ़ने और गणित के सामान्य गुना-भाग के सवालों को हल करने की क्षमता (how to improve memory ) बच्चों में पहले के अपेक्षाकृत काफी कम हुई है. ऐसे में एक्सपर्ट शिक्षकों और अभिभावकों को फिर से पुरानी तौर तरीके से बच्चों को पढ़ाने की अपील कर रहे हैं.

ये भी पढ़ेंः इन सरकारी शिक्षकों के आगे कॉन्वेंट स्कूल भी फेल, पढ़ाने की स्टाइल देखकर आप भी कहेंगे वाह!

पुरानी पद्धति लंबे समय तक पाठ याद रखने के लिए कारगरः पुराने जमाने में स्कूलों में शिक्षक जब बच्चों को पढ़ाते थे तो कोई पाठ याद कराने के लिए जोर जोर से बोल कर उनका निरंतर पाठ कराते थे. इसे लोगों ने रट्टा मार प्रवृत्ति कहा. इसी पद्धति से पुराने जमाने में लोगों ने स्कूलों में जो कुछ भी पढ़ा दशकों बाद आज भी उन्हें याद है. 12 गुना 12 बताने में तनिक समय नहीं लगाते, लेकिन वर्तमान दौर के बच्चे पाठ को समझने की कोशिश कर रहे हैं और याद नहीं कर रहे हैं. इसका खामियाजा उनकी याददाश्त पर पड़ रहा है.

पुरानी पद्धति से बोल-बोलकर पढ़ने से बढ़ती है यादाश्त: पटना के मिलर हाई स्कूल के प्राचार्य विनय कुमार सिंह ने बताया कि पढ़ाई की जो पुरानी पद्धति थी, वह पूर्ण रूप से कारगर थी. ऐसा इसलिए क्योंकि जब हम जोर-जोर से बोलकर पढ़ते हैं और एक बात को लगातार पढ़ते रहते हैं, जिसे लोग रट्टा मार पढ़ाई करते हैं, तो उससे दिमाग के मेमोरी मेंब्रेन पर वाइब्रेशन होता है और मेमोरी सेल डिवेलप होता है. इससे याददाश्त मजबूत होती है. उन्होंने कहा कि अभी के समय बच्चे जो कुछ पढ़ रहे हैं, वह सिर्फ अपने दिमाग पर डिपेंड नहीं है, बल्कि कई सारे एसोसिएट डिवाइस आ गए हैं. इस पर बच्चे डिपेंडेंट हो गए हैं.

टेबल याद करने से गणित के सवाल हल करने में मिलती है मददः उन्होंने कहा कि उदाहरण के तौर पर यदि कहे तो पहले 12 गुना 12 क्या होगा. यह बच्चे याद कर गए रहते थे और जो इस प्रकार की पढ़ाई पड़े हैं. उन्हें आज भी पूछा जाए 12 गुना 12 क्या होगा तो झट से दिमाग में आ जाएगा 144. लेकिन नई पद्धति में बच्चे 12 गुना 12 कागज पर गुना करते हैं या फिर मोबाइल पर कैलकुलेट करने की कोशिश करते हैं और मोबाइल पर जब कैलकुलेट करते हैं तो उनके ब्रेन पर कमजोर पड़ता है और जोड़, घटाव. गुना, भाग करने की उनकी क्षमता कमजोर होती है.

"पढ़ाई की जो पुरानी पद्धति थी, वह पूर्ण रूप से कारगर थी. ऐसा इसलिए क्योंकि जब हम जोर-जोर से बोलकर पढ़ते हैं और एक बात को लगातार पढ़ते रहते हैं, जिसे लोग रट्टा मार पढ़ाई करते हैं, तो उससे दिमाग के मेमोरी मेंब्रेन पर वाइब्रेशन होता है और मेमोरी सेल डिवेलप होता है. इससे याददाश्त मजबूत होती है" - विनय सिंह, प्राचार्य, मिलर हाईस्कूल

आज नीरस भाव से हो रही है पढ़ाईः विनय कुमार सिंह ने बताया कि उन लोगों के जमाने में कविता के रूप में पाठ याद कराया जाता था. उसमें क से कबूतर ख से खरगोश बताया जाता था. अल्फाबेट पढ़ाने में ए से एप्पल, बी से बॉल पढ़ाया जाता था और टेबल याद कराने के लिए गणित में दो का दो, दो दूनी चार कविता के रूप में पढ़ाई जाती थी. बच्चों को इसी रूप में लगातार अभ्यास कराया जाता था, जो बच्चों को याद हो जाता था. आज की पढ़ाई की पद्धति में सिर्फ फीचर समझा दिया जाता है. बाकी बच्चे खुद से पढ़ें. चाहे वर्णमाला की पढ़ाई हो या अल्फाबेट की या गणित में काउंटिंग और टेबल की. नीरस भाव से पढ़ाया जा रहा है और इसका परिणाम होता है कि कुछ समय के लिए तो बच्चों को याद रहता है, लेकिन आगे जाकर बच्चे इसे भूल जाते हैं.

दिमाग में यादाश्त के तीन लेवलः विनय कुमार सिंह ने कहा कि हमारे दिमाग में यादाश्त का तीन लेवल बना होता है. पहला लेवल है जिसमें एक बार आदमी सुनता है एक बार पढ़ता है जो दिमाग में कुछ मिनट से चंद घंटों तक ही याद रहती है लेकिन उस पर यदि 2-4 बार गौर किया जाए और ध्यान दिया जाए तो वह बात कुछ घंटों और कुछ दिनों तक याद रहती है लेकिन उस बात को कुछ समय के लिए बार-बार दोहराया जाए तो आजीवन के लिए वह बात मेमोरी में बैठ जाती है.

बच्चों में बढ़ी लर्निंग डिसेबिलिटी: पटना के समाज कल्याण विभाग से जुड़े मनोचिकित्सक डॉ मनोज कुमार ने बताया कि पहले बच्चों को पढ़ाई और खेलकूद के अलावा अन्य काम नहीं होते थे, लेकिन अब बच्चों का ध्यान विभिन्न जगहों पर लगा रहता है. मोबाइल के वीडियो गेम्स और रील्स पर लगा रहता है. इस समय अधिकांश बच्चों को डिस्केलकुलिया नाम की बीमारी हो रही है जो एक तरह की लर्निंग डिसेबिलिटी है. इसमें बच्चे को मैथमेटिक्स के सवालों को हल करने में समस्या होती है. उन्हें छोटे-छोटे गुना भाग के लिए भी काफी समय लगता है.

कट, काॅपी, पेस्ट ट्रेंड से कमजोर हो रहे बच्चेः डिस्केलकुलिया सामान्य तौर पर 12 साल के हर बच्चे में पाई जाती है, लेकिन इन दिनों देखने को मिला है कि 12 साल के ऊपर के बच्चों में यह बीमारी बढ़ रही है. इन सबके अलावा बच्चों का राइटिंग स्किल भी कमजोर हुआ है और बच्चे मोबाइल पर ही कट कॉपी पेस्ट के फॉर्मेट में नोट्स तैयार कर रहे हैं. इसका परिणाम हो रहा है कि बच्चे को पढ़ाई अच्छे से याद नहीं रह रही. राइटिंग एबिलिटी मेंटल एबिलिटी से जुड़ा रहता है और जिसका लिखने का कौशल बेहतर होता है. उसका बातों को समझने और याद रखने का भी कौशल बेहतर होता है. दिमाग में जो पढ़ाई रीकॉल हो रही होती है और उसे जब छात्र लिखते हैं तो वह परमानेंट मेमोरी में चला जाता है.

बार-बार बोलकर पढ़ने से पाठ लंबे समय तक याद रहती हैः डॉ मनोज कुमार ने बताया कि दिमाग में एक टेंपोररी मेमोरी होती है और एक परमानेंट मेमोरी होती है. जिन बातों का हम अधिक अभ्यास करते हैं बोल बोल कर उसे पढ़ते हैं वह बातें परमानेंट मेमोरी में आसानी से सेटल कर जाती है. बच्चों में याद करने की समस्या में जो कमी आई है उसको रिटेंशन कहा जाता है. पहले बच्चों को जो पाठ पढ़ाई जाती थी उसमें एक लय होता था. इसे राइम कहा जाता है. बच्चे उस पाठ को एक निश्चित लय में बार-बार गुनगुनाते थे. बार-बार बोलकर पाठ करते थे और बच्चों को वह बातें याद रह जाती थी

लयबद्ध तरीके से पढ़ने से जल्दी याद होता है पाठः मनोज कुमार ने कहा कि अब पढ़ाई के पैटर्न बदल गए हैं. आज के समय में बच्चों की पढ़ाई सीधे अल्फाबेट से शुरू की जा रही है. इसमें सीधे उन्हें अक्षर की पहचान कराई जा रही है. इसमें कोई लय कोई रिदम नहीं होता है. ऐसे में बच्चे थोड़ी समय तो याद रखते हैं, लेकिन बाद में भूलने लगते हैं. इसका असर यह होता है कि बच्चे जो पढ़ते हैं. वह सही से समझ नहीं पाते. नजर से पढ़ लेते हैं लेकिन उनके दिमाग में मैसेज नहीं जाता. बच्चों को पढ़ाने के लिए जरूरी है कि शुरुआती शिक्षा उनकी मातृभाषा में शुरू करें और पहले लिखने की आदत डालने के बजाय कविता के माध्यम से लयबद्ध तरीके से वर्णमाला और अल्फाबेट सिखाएं. बच्चों को लयबद्ध तरीके में ही बोल बोल कर रिवाइज करने को कहें.

"पहले बच्चों को पढ़ाई और खेलकूद के अलावा अन्य काम नहीं होते थे, लेकिन अब बच्चों का ध्यान विभिन्न जगहों पर लगा रहता है. मोबाइल के वीडियो गेम्स और रील्स पर लगा रहता है. इस समय अधिकांश बच्चों को डिस्केलकुलिया नाम की बीमारी हो रही है जो एक तरह की लर्निंग डिसेबिलिटी है. दिमाग में एक टेंपोररी मेमोरी होती है और एक परमानेंट मेमोरी होती है. जिन बातों का हम अधिक अभ्यास करते हैं बोल बोल कर उसे पढ़ते हैं वह बातें परमानेंट मेमोरी में आसानी से सेटल कर जाती है"- डॉ मनोज कुमार, मनोचिकित्सक

विशेषज्ञों ने माना, याद करने की पुरानी पद्धति कारगर

पटनाः आज कुछ भी पूछे जाने पर बच्चे कैलकुलेटर का इस्तेमाल करने लगे हैं या कॉपी पेन निकाल कर गुना-भाग, जोड़-घटाव करने लगते हैं. हाल ही में आई असर की रिपोर्ट भी इस बात की पुष्टि करती है कि प्रदेश में और देश में हिंदी और अंग्रेजी के पाठ पढ़ने और गणित के सामान्य गुना-भाग के सवालों को हल करने की क्षमता (how to improve memory ) बच्चों में पहले के अपेक्षाकृत काफी कम हुई है. ऐसे में एक्सपर्ट शिक्षकों और अभिभावकों को फिर से पुरानी तौर तरीके से बच्चों को पढ़ाने की अपील कर रहे हैं.

ये भी पढ़ेंः इन सरकारी शिक्षकों के आगे कॉन्वेंट स्कूल भी फेल, पढ़ाने की स्टाइल देखकर आप भी कहेंगे वाह!

पुरानी पद्धति लंबे समय तक पाठ याद रखने के लिए कारगरः पुराने जमाने में स्कूलों में शिक्षक जब बच्चों को पढ़ाते थे तो कोई पाठ याद कराने के लिए जोर जोर से बोल कर उनका निरंतर पाठ कराते थे. इसे लोगों ने रट्टा मार प्रवृत्ति कहा. इसी पद्धति से पुराने जमाने में लोगों ने स्कूलों में जो कुछ भी पढ़ा दशकों बाद आज भी उन्हें याद है. 12 गुना 12 बताने में तनिक समय नहीं लगाते, लेकिन वर्तमान दौर के बच्चे पाठ को समझने की कोशिश कर रहे हैं और याद नहीं कर रहे हैं. इसका खामियाजा उनकी याददाश्त पर पड़ रहा है.

पुरानी पद्धति से बोल-बोलकर पढ़ने से बढ़ती है यादाश्त: पटना के मिलर हाई स्कूल के प्राचार्य विनय कुमार सिंह ने बताया कि पढ़ाई की जो पुरानी पद्धति थी, वह पूर्ण रूप से कारगर थी. ऐसा इसलिए क्योंकि जब हम जोर-जोर से बोलकर पढ़ते हैं और एक बात को लगातार पढ़ते रहते हैं, जिसे लोग रट्टा मार पढ़ाई करते हैं, तो उससे दिमाग के मेमोरी मेंब्रेन पर वाइब्रेशन होता है और मेमोरी सेल डिवेलप होता है. इससे याददाश्त मजबूत होती है. उन्होंने कहा कि अभी के समय बच्चे जो कुछ पढ़ रहे हैं, वह सिर्फ अपने दिमाग पर डिपेंड नहीं है, बल्कि कई सारे एसोसिएट डिवाइस आ गए हैं. इस पर बच्चे डिपेंडेंट हो गए हैं.

टेबल याद करने से गणित के सवाल हल करने में मिलती है मददः उन्होंने कहा कि उदाहरण के तौर पर यदि कहे तो पहले 12 गुना 12 क्या होगा. यह बच्चे याद कर गए रहते थे और जो इस प्रकार की पढ़ाई पड़े हैं. उन्हें आज भी पूछा जाए 12 गुना 12 क्या होगा तो झट से दिमाग में आ जाएगा 144. लेकिन नई पद्धति में बच्चे 12 गुना 12 कागज पर गुना करते हैं या फिर मोबाइल पर कैलकुलेट करने की कोशिश करते हैं और मोबाइल पर जब कैलकुलेट करते हैं तो उनके ब्रेन पर कमजोर पड़ता है और जोड़, घटाव. गुना, भाग करने की उनकी क्षमता कमजोर होती है.

"पढ़ाई की जो पुरानी पद्धति थी, वह पूर्ण रूप से कारगर थी. ऐसा इसलिए क्योंकि जब हम जोर-जोर से बोलकर पढ़ते हैं और एक बात को लगातार पढ़ते रहते हैं, जिसे लोग रट्टा मार पढ़ाई करते हैं, तो उससे दिमाग के मेमोरी मेंब्रेन पर वाइब्रेशन होता है और मेमोरी सेल डिवेलप होता है. इससे याददाश्त मजबूत होती है" - विनय सिंह, प्राचार्य, मिलर हाईस्कूल

आज नीरस भाव से हो रही है पढ़ाईः विनय कुमार सिंह ने बताया कि उन लोगों के जमाने में कविता के रूप में पाठ याद कराया जाता था. उसमें क से कबूतर ख से खरगोश बताया जाता था. अल्फाबेट पढ़ाने में ए से एप्पल, बी से बॉल पढ़ाया जाता था और टेबल याद कराने के लिए गणित में दो का दो, दो दूनी चार कविता के रूप में पढ़ाई जाती थी. बच्चों को इसी रूप में लगातार अभ्यास कराया जाता था, जो बच्चों को याद हो जाता था. आज की पढ़ाई की पद्धति में सिर्फ फीचर समझा दिया जाता है. बाकी बच्चे खुद से पढ़ें. चाहे वर्णमाला की पढ़ाई हो या अल्फाबेट की या गणित में काउंटिंग और टेबल की. नीरस भाव से पढ़ाया जा रहा है और इसका परिणाम होता है कि कुछ समय के लिए तो बच्चों को याद रहता है, लेकिन आगे जाकर बच्चे इसे भूल जाते हैं.

दिमाग में यादाश्त के तीन लेवलः विनय कुमार सिंह ने कहा कि हमारे दिमाग में यादाश्त का तीन लेवल बना होता है. पहला लेवल है जिसमें एक बार आदमी सुनता है एक बार पढ़ता है जो दिमाग में कुछ मिनट से चंद घंटों तक ही याद रहती है लेकिन उस पर यदि 2-4 बार गौर किया जाए और ध्यान दिया जाए तो वह बात कुछ घंटों और कुछ दिनों तक याद रहती है लेकिन उस बात को कुछ समय के लिए बार-बार दोहराया जाए तो आजीवन के लिए वह बात मेमोरी में बैठ जाती है.

बच्चों में बढ़ी लर्निंग डिसेबिलिटी: पटना के समाज कल्याण विभाग से जुड़े मनोचिकित्सक डॉ मनोज कुमार ने बताया कि पहले बच्चों को पढ़ाई और खेलकूद के अलावा अन्य काम नहीं होते थे, लेकिन अब बच्चों का ध्यान विभिन्न जगहों पर लगा रहता है. मोबाइल के वीडियो गेम्स और रील्स पर लगा रहता है. इस समय अधिकांश बच्चों को डिस्केलकुलिया नाम की बीमारी हो रही है जो एक तरह की लर्निंग डिसेबिलिटी है. इसमें बच्चे को मैथमेटिक्स के सवालों को हल करने में समस्या होती है. उन्हें छोटे-छोटे गुना भाग के लिए भी काफी समय लगता है.

कट, काॅपी, पेस्ट ट्रेंड से कमजोर हो रहे बच्चेः डिस्केलकुलिया सामान्य तौर पर 12 साल के हर बच्चे में पाई जाती है, लेकिन इन दिनों देखने को मिला है कि 12 साल के ऊपर के बच्चों में यह बीमारी बढ़ रही है. इन सबके अलावा बच्चों का राइटिंग स्किल भी कमजोर हुआ है और बच्चे मोबाइल पर ही कट कॉपी पेस्ट के फॉर्मेट में नोट्स तैयार कर रहे हैं. इसका परिणाम हो रहा है कि बच्चे को पढ़ाई अच्छे से याद नहीं रह रही. राइटिंग एबिलिटी मेंटल एबिलिटी से जुड़ा रहता है और जिसका लिखने का कौशल बेहतर होता है. उसका बातों को समझने और याद रखने का भी कौशल बेहतर होता है. दिमाग में जो पढ़ाई रीकॉल हो रही होती है और उसे जब छात्र लिखते हैं तो वह परमानेंट मेमोरी में चला जाता है.

बार-बार बोलकर पढ़ने से पाठ लंबे समय तक याद रहती हैः डॉ मनोज कुमार ने बताया कि दिमाग में एक टेंपोररी मेमोरी होती है और एक परमानेंट मेमोरी होती है. जिन बातों का हम अधिक अभ्यास करते हैं बोल बोल कर उसे पढ़ते हैं वह बातें परमानेंट मेमोरी में आसानी से सेटल कर जाती है. बच्चों में याद करने की समस्या में जो कमी आई है उसको रिटेंशन कहा जाता है. पहले बच्चों को जो पाठ पढ़ाई जाती थी उसमें एक लय होता था. इसे राइम कहा जाता है. बच्चे उस पाठ को एक निश्चित लय में बार-बार गुनगुनाते थे. बार-बार बोलकर पाठ करते थे और बच्चों को वह बातें याद रह जाती थी

लयबद्ध तरीके से पढ़ने से जल्दी याद होता है पाठः मनोज कुमार ने कहा कि अब पढ़ाई के पैटर्न बदल गए हैं. आज के समय में बच्चों की पढ़ाई सीधे अल्फाबेट से शुरू की जा रही है. इसमें सीधे उन्हें अक्षर की पहचान कराई जा रही है. इसमें कोई लय कोई रिदम नहीं होता है. ऐसे में बच्चे थोड़ी समय तो याद रखते हैं, लेकिन बाद में भूलने लगते हैं. इसका असर यह होता है कि बच्चे जो पढ़ते हैं. वह सही से समझ नहीं पाते. नजर से पढ़ लेते हैं लेकिन उनके दिमाग में मैसेज नहीं जाता. बच्चों को पढ़ाने के लिए जरूरी है कि शुरुआती शिक्षा उनकी मातृभाषा में शुरू करें और पहले लिखने की आदत डालने के बजाय कविता के माध्यम से लयबद्ध तरीके से वर्णमाला और अल्फाबेट सिखाएं. बच्चों को लयबद्ध तरीके में ही बोल बोल कर रिवाइज करने को कहें.

"पहले बच्चों को पढ़ाई और खेलकूद के अलावा अन्य काम नहीं होते थे, लेकिन अब बच्चों का ध्यान विभिन्न जगहों पर लगा रहता है. मोबाइल के वीडियो गेम्स और रील्स पर लगा रहता है. इस समय अधिकांश बच्चों को डिस्केलकुलिया नाम की बीमारी हो रही है जो एक तरह की लर्निंग डिसेबिलिटी है. दिमाग में एक टेंपोररी मेमोरी होती है और एक परमानेंट मेमोरी होती है. जिन बातों का हम अधिक अभ्यास करते हैं बोल बोल कर उसे पढ़ते हैं वह बातें परमानेंट मेमोरी में आसानी से सेटल कर जाती है"- डॉ मनोज कुमार, मनोचिकित्सक

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