पटना(मसौढ़ी): पाटलिपुत्रा लोकसभा के अंतर्गत आने वाली मसौढ़ी विधानसभा क्षेत्र कई सियासी उठापटक की गवाह रही है. पिछले पांच साल के चुनाव पर गौर करें तो तीन बार राजद को जीत. जबकि, दो बार जदयू को जश्न मनाने का मौका मिला है. यादव बहुल इस क्षेत्र में जदयू और राजद के बीच हमेशा से ही कांटे की टक्कर रही है.
इस सीट से 2015 के विधानसभा चुनाव में राजद के उम्मीदवार रेखा देवी ने अपने प्रतिद्वंद्वी नूतन पासवान को 39 हजार 186 वोट से हराया था. हालांकि, 2015 में राजानीतिक हालात बदले हुए थे. नीतीश कुमार महागठबंधन का अंग थे. जिस वजह से यादव और कुर्मी जाती के वोट धुव्रीकरण के कारण महागठबंधन ने परचम लहराया था. इन सब के बीच एक बार फिर समय के साथ राजनीतिक हालात पूरी तरह से बदले हुए है. इन हालात में राजग और महागठबंधन के बीच दिलचस्प मुकाबला होना लगभग तय माना जा रहा है.
विधानसभा क्षेत्र से एक ही साथ दो विधायक
मसौढी विधानसभा क्षेत्र का नाम इतिहास में भी दर्ज है. 1952 और 1957 में इस विधानसभा सीट से एक साथ दो विधायक चुने गए थे. जो इतिहास में आज भी दर्ज है. दरअसल, आजादी के बाद विधानसभा के आम चुनाव 1951-52 में हुए थे. उस दौरान इस सीट पर एक विधायक सामान्य श्रेणी से तो दूसरा अनुसूचित जाति या फिर पिछड़ी जातियों से चुना जाता था. 1952 और 1957 के चुनाव के दौरान भी ऐसी ही प्रकिया थी. जिसमें एक समान्य कोटि के प्रत्याशी नवल किशोर सिंह को जीत मिली थी. जबकी, अनुसुचित जाति से सरस्वती चौधरी ने चुनाव जीता था.
हालांकि, 1962 के विधानसभा चुनाव के दौरान ऐसी नियमों को रद्द कर दिया गया. 1962 के बाद से इस सीट से भी एक ही विधायक चुना जाने लगा. सरस्वती चौधरी ने मसौढ़ी विधानसभा सीट से सर्वाधिक तीन बार 1952, 1957 और 1962 में इस विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था. जिसके बाद चुनावी इतिहास में इस सीट से वर्तमान तक ऐसा कोई भी विधायक नहीें बन सका, जिसने 15 साल तक क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया हो.
1967 में विधानसभा सीट हुआ था सामान्य
1967 विधानसभा चुनाव के दौरान यह सीट सामान्य हो गया था. 1967 के चुनाव में भाकपा माले के उम्मीदवार भुवनेश्वर शर्मा जीते थे. लेकिन दो साल के बाद ही हुए चुनाव के बाद जनसंघ से रामदेवन दास ने जीत मिली थी. वहीं, 1972 में हुए चुनाव के बाद एक बार फिर से भुवनेश्वर ने जीत का परचम लहराया था. जिसके बाद उन्होंने 5 साल तक क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. 1977 के चुनाव में एक बार फिर से राजनीतिक परिस्थितियां बदली और रामदेव यादव ने जनसंघ के टिकट पर जीत हासिल की. इस राजनीतिक सफर के बीच लगभग 43 साल के बाद मसौढ़ी विधानसभा सीट को एक बार फिर से सुरक्षित घोषित कर दिया गया. जिसके बाद से जदयू और राजद के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिलती रही.
विधानसभा सीट पर एक नजर:-
मसौढ़ी विधानसभा क्षेत्र में 3 लाख 33 हजार 211 मतदाता हैं. जिनमें से पुरुष मतदाता की संख्या 1 लाख 72 हजार 722 है. जबकि, महिला मतदाता की संख्या 1 लाख 60 हजार 486 हैं. वहीं, तीन मतदाता थर्ड जेंडर के भी हैं.
- कौन कब जीते
1952- रामखेलावन सिह, कांग्रेस
1952-सरस्वती चौधरी, कांग्रेस
1957-नवल किशोर सिंह ,कांग्रेस
1957-सरस्वती चौधरी, कांग्रेस
1962-सरस्वती चौधरी, कांग्रेस
1967-भुवनेश्वर शर्मा, भाकपा
1969-रामदेवन दास उर्फ साधु जी, जनसंघ
1972-भुवनेश्वर शर्मा, भाकपा
1977-रामदेव प्रसाद यादव, जनता पार्टी
1980-गणेश प्रसाद यादव, लोकदल
1985-पुनम देवी, कांग्रेस
1990-युगेश्वर गोप, आईपीएफ
1995-गणेश प्रसाद सिंह, जनता दल
2000-धर्मेंद्र प्रसाद यादव,राजद
2005(फरवरी)-पुनम देवी, जदयू
2005(अक्टूबर)-पुनम देवी, जदयू
2010-अरूण मांझी, जदयू
2015-रेखा देवी, राजद
पिछले कुछ वर्षों के चुनाव विजेता
साल 2000 में राजद कोटे से धर्मेंद्र प्रसाद यादव ने समता पार्टी के उम्मीदवार पुनम देवी को हराया था. धर्मेंद्र यादव को जहां 70,370 वोट मिले थे. जबकि पुनम देवी को 48571 वोट मिले थे. इस दौरान वोट का प्रतिशत 76.23 रहा था.
2005 के विधानसभा चुनाव में जदयू कोटे से पुनम देवी ने जीत हासिल की थी. उनको इस चुनाव में 41,314 वोट मिले थे. पुनम देवी ने राजद के प्रत्याशी राजकिशोर यादव को पटखनी दी थी. राजद प्रत्याशी को 30047 मत प्राप्त हुए थे. जबकि इस दौरान मत का प्रतिशत महज 44.16 रहा था.
2010 के चुनाव की बात करें तो जदयू कोटे से अरूण मांझी ने लोजपा के प्रत्याशी अनिल कुमार साधु को हराया था. इस दौरान जहां जदयू प्रत्याशी को 56977 वोट मिले थे. जबकि लोजपा के नेता को 51945 मत मिले थे. इस दौरान मत का प्रतिशत 52.15 रहा था. वहीं, 2015 के विधानसभा चुनाव में राजद उम्मीदवार रेखा देवी ने हम पार्टी के उम्मीदवार नुतन पासवान को हराया था. इस दौरान रेखा देवी को जहां 89,657 वोट मिले थे. वहीं, नुतन पासवान को महज 50 हजार मत मिले थे. इस दौरान मत का प्रतिशत 57.71 रहा था. बता दें कि 2015 के विधानसभा चुनाव के दौरान राजनीतिक हालात बदले हुए थे. उस दौरान नीतीश कुमार ने राजग से नाता तोड़ कर लालू यादव का दामन थाम लिया था. एक बार फिर से राजनीतिक हालात पूरी तरह से बदल चुके हैं. नीतीश कुमार अपने पूराने घर एनडीए में वापस आ चुके हैं और एनडीए सीएम नीतीश के नेतृतव में ही चुनाव लड़ रही है. इस बार के चुनावी मैदान में जदयू कोटे से जहां नुतन पासवान एक बार फिर से किस्मत आजामा रही हैं. वहीं, राजद ने एक बार फिर से रेखा पासवान पर भरोसा जाताया है.
राजनीतिक उथल-पुथल के बीच विकास छूटा पीछे
गौरतलब है कि मसौढ़ी विधानसभा सीट पर हमेशा से ही राजनीतिक उथल-पुथल होता रहा है. इन सब के बीच मसौढी को अनुमंडल भी बनाया गया. बावजूद मसौढ़ी आज भी विकास की राह देख रही है. इलाके के किसानों के सामने आज भी पटवन की समस्या बड़ी चुनौती बना हुआ है. मसौढी आज भी एक सरकारी कॉलेज के लिए तरस रहा है. इसके अलावे जाम के कारण भी मसौढ़ी शहर का दम लगभग प्रतिदिन घुटता ही रहता है. बहुप्रतीक्षित बेर्रा बराज का निर्माण कार्य भी बीते 4 साल से अघर में लटका हुआ है.