पटना: आज हिंदी दिवस है. भाषा के रूप में हिंदी ने लगभग 200 साल की यात्रा पूरी कर ली है. लेकिन अभी भी हिंदी के सामने कई चुनौतियां हैं. मोबाइल और इंटरनेट के दौर में हिंदी शब्द विलुप्त होता जा रहा है जबकि स्वतंत्रता आंदोलन को मजबूत करने में हिंदी भाषा ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी.
चर्चित साहित्यकार रत्नेश्वर ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में कहा कि पहले हिंदी आम लोगों की भाषा नहीं हुआ करती थी. लेकिन चारों दिशाओं से आने वाले स्वतंत्रता सेनानियों ने हिंदी को अपनाया और स्वतंत्रता आंदोलन को ताकत देने में हिंदी भाषा ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. गैर हिंदी भाषियों ने भी स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हिंदी को अपनाया. मिसाल के तौर पर सुभाष चंद्र बोस का नाम है.
हिंदी के सामने कई चुनौती
रत्नेश्वर ने कहा कि मोबाइल और इंटरनेट के दौर में हिंदी के समक्ष कई चुनौतियां हैं. एक ओर जहां मोबाइल और इंटरनेट ने हिंदी लेखन को सुविधाजनक बनाया है, वहीं दूसरी तरफ नए शब्दों का इजात ना होना हिंदी भाषा के सामने एक चुनौती है. जरूरत इस बात की है कि हिंदी के नए शब्दों का अविष्कार हो, बजाय इसके कि हम अंग्रेजी शब्दों की ओर शिफ्ट कर जाए.
शिक्षा प्रणाली में सुधार की जरूरत
रत्नेश्वर ने कहा कि हिंदी आज भी आम लोगों की बोलचाल की भाषा है. फिर भी लोग अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ाना पसंद करते हैं. अंग्रेजी माध्यम स्कूल ही लोगों की पहली पसंद है. ऐसे में हिंदी को सशक्त बनाने के लिए शिक्षा प्रणाली में भी सुधार की जरूरत है.