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'स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हिंदी ने लोगों को एक सूत्र में बांधने का काम किया'

हिंदी आम लोगों की बोलचाल की भाषा है. फिर भी लोग अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ाना पसंद करते हैं. अंग्रेजी माध्यम स्कूल ही लोगों की पहली पसंद है. ऐसे में हिंदी को सशक्त बनाने के लिए शिक्षा प्रणाली में भी सुधार की जरूरत है.

साहित्यकार रत्नेश्वर
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Published : Sep 14, 2019, 11:23 AM IST

पटना: आज हिंदी दिवस है. भाषा के रूप में हिंदी ने लगभग 200 साल की यात्रा पूरी कर ली है. लेकिन अभी भी हिंदी के सामने कई चुनौतियां हैं. मोबाइल और इंटरनेट के दौर में हिंदी शब्द विलुप्त होता जा रहा है जबकि स्वतंत्रता आंदोलन को मजबूत करने में हिंदी भाषा ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी.

चर्चित साहित्यकार रत्नेश्वर ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में कहा कि पहले हिंदी आम लोगों की भाषा नहीं हुआ करती थी. लेकिन चारों दिशाओं से आने वाले स्वतंत्रता सेनानियों ने हिंदी को अपनाया और स्वतंत्रता आंदोलन को ताकत देने में हिंदी भाषा ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. गैर हिंदी भाषियों ने भी स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हिंदी को अपनाया. मिसाल के तौर पर सुभाष चंद्र बोस का नाम है.

जानकारी देते साहित्यकार रत्नेश्वर

हिंदी के सामने कई चुनौती
रत्नेश्वर ने कहा कि मोबाइल और इंटरनेट के दौर में हिंदी के समक्ष कई चुनौतियां हैं. एक ओर जहां मोबाइल और इंटरनेट ने हिंदी लेखन को सुविधाजनक बनाया है, वहीं दूसरी तरफ नए शब्दों का इजात ना होना हिंदी भाषा के सामने एक चुनौती है. जरूरत इस बात की है कि हिंदी के नए शब्दों का अविष्कार हो, बजाय इसके कि हम अंग्रेजी शब्दों की ओर शिफ्ट कर जाए.

patna
रत्नेश्वर, साहित्यकार

शिक्षा प्रणाली में सुधार की जरूरत
रत्नेश्वर ने कहा कि हिंदी आज भी आम लोगों की बोलचाल की भाषा है. फिर भी लोग अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ाना पसंद करते हैं. अंग्रेजी माध्यम स्कूल ही लोगों की पहली पसंद है. ऐसे में हिंदी को सशक्त बनाने के लिए शिक्षा प्रणाली में भी सुधार की जरूरत है.

पटना: आज हिंदी दिवस है. भाषा के रूप में हिंदी ने लगभग 200 साल की यात्रा पूरी कर ली है. लेकिन अभी भी हिंदी के सामने कई चुनौतियां हैं. मोबाइल और इंटरनेट के दौर में हिंदी शब्द विलुप्त होता जा रहा है जबकि स्वतंत्रता आंदोलन को मजबूत करने में हिंदी भाषा ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी.

चर्चित साहित्यकार रत्नेश्वर ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में कहा कि पहले हिंदी आम लोगों की भाषा नहीं हुआ करती थी. लेकिन चारों दिशाओं से आने वाले स्वतंत्रता सेनानियों ने हिंदी को अपनाया और स्वतंत्रता आंदोलन को ताकत देने में हिंदी भाषा ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. गैर हिंदी भाषियों ने भी स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हिंदी को अपनाया. मिसाल के तौर पर सुभाष चंद्र बोस का नाम है.

जानकारी देते साहित्यकार रत्नेश्वर

हिंदी के सामने कई चुनौती
रत्नेश्वर ने कहा कि मोबाइल और इंटरनेट के दौर में हिंदी के समक्ष कई चुनौतियां हैं. एक ओर जहां मोबाइल और इंटरनेट ने हिंदी लेखन को सुविधाजनक बनाया है, वहीं दूसरी तरफ नए शब्दों का इजात ना होना हिंदी भाषा के सामने एक चुनौती है. जरूरत इस बात की है कि हिंदी के नए शब्दों का अविष्कार हो, बजाय इसके कि हम अंग्रेजी शब्दों की ओर शिफ्ट कर जाए.

patna
रत्नेश्वर, साहित्यकार

शिक्षा प्रणाली में सुधार की जरूरत
रत्नेश्वर ने कहा कि हिंदी आज भी आम लोगों की बोलचाल की भाषा है. फिर भी लोग अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ाना पसंद करते हैं. अंग्रेजी माध्यम स्कूल ही लोगों की पहली पसंद है. ऐसे में हिंदी को सशक्त बनाने के लिए शिक्षा प्रणाली में भी सुधार की जरूरत है.

Intro:आज हिंदी दिवस है और भाषा के रूप में हिंदी ने 200 साल की यात्राएं पूरी कर ली हैं लेकिन अभी हिंदी के सामने कई चुनौतियां हैं मोबाइल और इंटरनेट के दौर में हिंदी शब्दों की जहां कमी देखी जा रही है वहीं स्वतंत्रता आंदोलन को मजबूत करने में हिंदी भाषा में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी


Body:हिंदी भाषा ने लगभग 200 साल की यात्रा पूरी कर ली है भाषा के रूप में हिंदी के सामने आज की तारीख में कई चुनौतियां हैं मोबाइल और इंटरनेट के दौर में नए शब्दों के इजात नहीं हो रहे हैं और हमें अंग्रेजी शब्दों पर ही निर्भर रहना पड़ रहा है आम लोगों की भाषा होने के बावजूद हिंदी स्कूलों में लोग अपने बच्चे को पढ़ाना नहीं चाहते अंग्रेजी माध्यम के स्कूल उनकी पहली पसंद हुआ करती है


Conclusion:चर्चित साहित्यकार रत्नेश्वर नहीं ईटीवी भारत से खास बातचीत में कहा कि पहले हिंदी आम लोगों की भाषा नहीं हुआ करती थी लेकिन चारों दिशाओं से आने वाले स्वतंत्रता सेनानियों ने हिंदी को अपनाया और स्वतंत्रता आंदोलन को हिंदी भाषा मे ताकत देने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की गैर हिंदी भाषियों ने भी स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हिंदी को अपनाया मिसाल के तौर पर सुभाष चंद्र बोस का नाम है ।
रत्नेश्वर ने कहा कि मोबाइल और इंटरनेट के दौर में हिंदी के समक्ष कई चुनौतियां हैं एक ओर जहां मोबाइल और इंटरनेट ने हिंदी लेखन को सुविधाजनक बनाया है वहीं दूसरी तरफ नए शब्दों का इजात ना होना हिंदी भाषा के सामने एक चुनौती है । जरूरत इस बात की है कि हिंदी के नए शब्दों का अविष्कार हो बजाय इसके कि हम अंग्रेजी शब्दों की ओर शिफ्ट कर जाए
रत्नेश्वर ने कहा कि हिंदी आज भी आम लोगों के बोलचाल की भाषा है फिर भी लोग अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ाना पसंद करते हैं । हिंदी को सशक्त बनाने के लिए शिक्षा प्रणाली में भी सुधार की जरूरत है
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