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गर्भाशय घोटाले पर HC में सुनवाई, अगली पर सुनवाई पर राज्य सरकार से जवाब मांगा - Justice A Amanullah

पटना हाईकोर्ट में गर्भाशय घोटाले की सुनवाई हुई. मामले में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को अगली सुनवाई में जवाब देने का निर्देश दिया है. पढ़ें पूरी खबर..

Patna High Court News
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Published : Nov 15, 2022, 7:42 PM IST

पटनाः बिहार में गर्भाशय घोटाले पर पटना हाईकोर्ट में सुनवाई (Uterus scam hearing in Patna High Court) हुई. मंगलवार को जस्टिस ए अमानुल्लाह (Justice A Amanullah) की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को अगली सुनवाई पर जवाब देने का निर्देश दिया है. पिछली सुनवाई में कोर्ट ने इन मामलों में केंद्रीय कानून के तहत मामलें दर्ज करने के सम्बन्ध में हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया था. मामलें पर अगली सुनवाई 7 दिसंबर 2022 को की जाएगी.

ये भी पढ़ें-बिहार में गर्भाशय घोटाला पर हाईकोर्ट सख्त, मुख्य सचिव से पूछा- 'कार्रवाई की क्या योजना है?'

वेटरन फोरम की ओर से दायर है याचिकाः ये जनहित याचिका वेटरन फोरम द्वारा दायर की गई थी. कोर्ट ने पूर्व की सुनवाई में राज्य सरकार के मुख्य सचिव को अब तक की गई कार्रवाई का ब्यौरा पर हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया था. पिछली सुनवाई में कोर्ट में उपस्थित एडवोकेट जनरल ने कोर्ट को बताया था कि इस जनहित याचिका में दिए गए तथ्य वास्तविक नहीं हैं. उन्होंने बताया कि बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग के समक्ष साढ़े चार सौ इस तरह के मामलें आए थे.


मुआवजे के लिए 5.89 करोड़ रुपए निर्गतः राज्य सरकार के जांच के बाद नौ जिलों में गर्भाशय निकाले जाने के सात सौ दो मामलें आए थे. इन मामलों में प्राथमिकी दर्ज कराई गई और आगे की कार्रवाई चल रही है. उन्होंने कोर्ट को बताया था कि पीड़ित महिलाओं को क्षतिपूर्ति राज्य सरकार ने पचास पचास हजार रुपये पहले ही दे दिए. इसके बाद बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग ने आदेश दिया था कि यह राशि बढ़ा कर डेढ़ और ढाई लाख रुपए बतौर क्षतिपूर्ति दिए जाए. महाधिवक्ता ललित किशोर ने कोर्ट को बताया था कि क्षतिपूर्ति की राशि देने के लिए राज्य सरकार ने 5.89 करोड़ रुपए निर्गत कर दिए गए हैं.


किन-किन धाराओं के तहत दर्ज है मामलेः कोर्ट ने राज्य सरकार से जानना चाहा था कि किन-किन धाराओं के तहत दोषियों के विरुद्ध मामलें दर्ज किये गए. मानव शरीर से बिना सहमति के अंग निकाला जाना गंभीर अपराध है. इसलिए उनके विरुद्ध नियमों के तहत ही धाराएं लगायी जानी चाहिए. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दीनू कुमार ने बताया था कि सबसे पहले ये मामला मानवाधिकार आयोग के समक्ष 2012 में लाया गया था. 2017 में पटना हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका वेटरन फोरम ने दायर किया गया था.


ये भी पढ़ें-गर्भाशय घोटाले में अब तक किसी भी आरोपी पर कार्रवाई नहीं, CBI जांच पर टिकी पीड़ितों की निगाहें

पटनाः बिहार में गर्भाशय घोटाले पर पटना हाईकोर्ट में सुनवाई (Uterus scam hearing in Patna High Court) हुई. मंगलवार को जस्टिस ए अमानुल्लाह (Justice A Amanullah) की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को अगली सुनवाई पर जवाब देने का निर्देश दिया है. पिछली सुनवाई में कोर्ट ने इन मामलों में केंद्रीय कानून के तहत मामलें दर्ज करने के सम्बन्ध में हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया था. मामलें पर अगली सुनवाई 7 दिसंबर 2022 को की जाएगी.

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वेटरन फोरम की ओर से दायर है याचिकाः ये जनहित याचिका वेटरन फोरम द्वारा दायर की गई थी. कोर्ट ने पूर्व की सुनवाई में राज्य सरकार के मुख्य सचिव को अब तक की गई कार्रवाई का ब्यौरा पर हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया था. पिछली सुनवाई में कोर्ट में उपस्थित एडवोकेट जनरल ने कोर्ट को बताया था कि इस जनहित याचिका में दिए गए तथ्य वास्तविक नहीं हैं. उन्होंने बताया कि बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग के समक्ष साढ़े चार सौ इस तरह के मामलें आए थे.


मुआवजे के लिए 5.89 करोड़ रुपए निर्गतः राज्य सरकार के जांच के बाद नौ जिलों में गर्भाशय निकाले जाने के सात सौ दो मामलें आए थे. इन मामलों में प्राथमिकी दर्ज कराई गई और आगे की कार्रवाई चल रही है. उन्होंने कोर्ट को बताया था कि पीड़ित महिलाओं को क्षतिपूर्ति राज्य सरकार ने पचास पचास हजार रुपये पहले ही दे दिए. इसके बाद बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग ने आदेश दिया था कि यह राशि बढ़ा कर डेढ़ और ढाई लाख रुपए बतौर क्षतिपूर्ति दिए जाए. महाधिवक्ता ललित किशोर ने कोर्ट को बताया था कि क्षतिपूर्ति की राशि देने के लिए राज्य सरकार ने 5.89 करोड़ रुपए निर्गत कर दिए गए हैं.


किन-किन धाराओं के तहत दर्ज है मामलेः कोर्ट ने राज्य सरकार से जानना चाहा था कि किन-किन धाराओं के तहत दोषियों के विरुद्ध मामलें दर्ज किये गए. मानव शरीर से बिना सहमति के अंग निकाला जाना गंभीर अपराध है. इसलिए उनके विरुद्ध नियमों के तहत ही धाराएं लगायी जानी चाहिए. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दीनू कुमार ने बताया था कि सबसे पहले ये मामला मानवाधिकार आयोग के समक्ष 2012 में लाया गया था. 2017 में पटना हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका वेटरन फोरम ने दायर किया गया था.


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