पटना : पटना हाईकोर्ट में बिहार के गर्भाशय घोटाले के मामले पर सुनवाई हुई (Hearing in Patna High Court) है. चीफ जस्टिस केवी चन्द्रन की खंडपीठ वेटरन फोरम की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है. कोर्ट ने राज्य सरकार को पीड़ितों की सूची और क्षतिपूर्ति देने की जानकारी देने के लिए राज्य सरकार को समय दिया है. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दीनू कुमार ने हाईकोर्ट को बताया कि राज्य में अवैध रूप 27 हजार महिलाओं के गर्भाशय हटाने के मामले पर राज्य सरकार ने कोई जांच नहीं कराई. इस संबंध में राज्य मानवाधिकार आयोग ने जांच कराने का आदेश दिया था. अब इस मामले में 23 जून 2023 को सुनवाई होगी.
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540 में से 204 पीड़ित महिलाओं को क्षतिपूर्ति नहीं दी गई: उन्होंने बताया कि 40 वर्ष तक आयु की पीड़ित महिलाओं को दो लाख रुपये और उससे ऊपर आयु के की पीड़ित महिलाओं को सवा लाख रुपये बतौर क्षतिपूर्ति का आदेश राज्य सरकार को देने का निर्देश दिया था. उन्होंने बताया कि आठ जिलों के 540 में से 204 पीड़ित महिलाओं को क्षतिपूर्ति नहीं दी गई है. उन्होंने कहा कि राज्य ने इस बात को अब तक रिकॉर्ड पर नहीं लाया कि कितनी पीड़ित महिलाओं को क्षतिपूर्ति की धनराशि दे दी गई है और कितनों को देना बाकी है.
जनहित याचिका वेटरन फोरम ने दायर किया गया था: पहले की सुनवाई में कोर्ट जानना चाहा था कि इस तरह की अमानवीय घटना के मामलें में राज्य सरकार ने क्या किया. बिहार सरकार को इस मामले में ज्यादा संवेदनशीलता दिखानी चाहिए थी. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दीनू कुमार ने बताया कि सबसे पहले ये मामला मानवाधिकार आयोग के समक्ष 2012 में लाया गया था. 2017 में पटना हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका वेटरन फोरम ने दायर किया गया था. इसमें ये आरोप लगाया गया था कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना का गलत लाभ उठाने के लिए बिहार के विभिन्न अस्पतालों, डॉक्टरों द्वारा बड़ी तादाद में बगैर महिलाओं की सहमति के ऑपरेशन कर गर्भाशय निकाल लिए गए.
बीमा राशि लेने के चक्कर में 82 पुरुषों का भी कर दिया आपरेशन: अधिवक्ता रितिका रानी ने बताया कि लगभग 49 हजार पीड़ित महिलाओं की संख्या होने की संभावना है. बीमा राशि लेने के चक्कर में 82 पुरुषों का भी आपरेशन कर दिया गया. इस मामला के खुलासा होने के बाद मानवाधिकार आयोग ने 30 अगस्त 2012 को स्वयं संज्ञान लिया था. आयोग ने 2015 में राज्य सरकार व अनुसंधान एजेंसी को विस्तृत जानकारी देने को कहा था. इसमें कितने आपरेशन किये गए और कितनी महिलाओं के उनकी सहमति के बगैर उनके गर्भाशय निकाले गए और उनकी उम्र कितनी थी. पीड़ितों को दिए गए मुआवजे का भी ब्योरा तलब किया गया था. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता दीनू कुमार और रितिका रानी व राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता एसडी यादव ने कोर्ट के समक्ष पक्षों को प्रस्तुत किया.