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कोरोना की धमक ने बंद करा दी हस्तकरघा उद्योगों की खनक, दाने-दाने को मोहताज हुए मजदूर - हैंडलूम सूती कपड़ो का बुनाई

हस्तकरघा उद्योग के संचालकों का कहना है कि लॉकडाउन से शहर का ही नहीं पूरे देश का कारोबार प्रभावित हुआ है.सबसे अधिक प्रभाव दैनिक मजदूरों पर पड़ रहा है. ऐसे मजदूर जो रोज कमाकर ही अपने परिवार के लिए रोटी का इंतजाम करते हैं. उन्हें सबसे अधिक परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.

हस्तकरघा उद्योग
हस्तकरघा उद्योग
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Published : Apr 14, 2020, 4:44 PM IST

पटना: कोरोना वायरस के चलते देश में 3 मई तक लॉकडाउन को बढ़ाने का फैसला केंद्र सरकार ने किया है. इससे पहले 14 अप्रैल तक 21 दिनों का लॉकडाउन किया गया था. नतीजा जिला अंतर्गत पालीगंज अनुमंडल क्षेत्र के सिंगोड़ी गांव में सैकड़ो हस्तकरघा उद्योग ठप हो गई थी. उद्योग बंद होने से इसका सीधा असर दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ा. 21 दिनों को लॉकडाउन मजदूरों ने जैसे-तैसे 14 दिन बिता दिए. लेकिन, संक्रमण के बढ़ते मामले को देखते हुए सरकार ने एकबार फिर से लॉकडाउन को आगे बढ़ाया है. सरकार के फैसले से एकबार फिर दिहाड़ी मजदूरों के सामने भोजन का संकट खड़ा हो चुका है.

'व्यापार ठप दिहाड़ी मजदूर परेशान'
बता दें कि पालीगंज अनुमंडल क्षेत्र के सिंगोड़ी गांव लगभग पांच सौ घरों में हैंडलूम सूती कपड़ो का बुनाई का काम होता है. कपड़ा की बुनाई कर सैकड़ों मजदूरों का पेट भरने का जरिया है. यही काम यहां के हजरों परिवारों के जीविका का आधार है. लेकिन कोरोना की धमक के वजह से लगभग सभी उद्योगों के खनक बंद पडे़े हुए है. हस्तकरघा उद्योग में काम करने वाले बुनकर मजदूर शहाबुदीन ने बताया की जब से पीएम मोदी ने लॉकडाउन लागू करने की घोषणा की तब से घर में बंद है. 14 दिन तो जैसे-तैसे काट लिए, लेकिन अब रोटी के एक निवाले पर भी आफत आन पड़ी है. पिछले 20 दिनों से काम बंद पड़ा हुआ है. हमारे साथ यहां पर 16 और मजदूर काम करते थे. हमसभी बुनकरों के सामने अब रोटी की भयानक समस्या उत्पन्न हो गई है. मजदूरों ने बताया कि हम सरकार पर निर्भर नहीं रहना चाहते हैं. लेकिन हालात ऐसे हैं कि अगर सरकार के सामने हाथ नहीं फैलाए तो भूखे-प्यासे जान से हाथ धो बैठेंगे. हालांकि, अभी तक हमलोगों की ना सरकार ने मदद की और ना ही स्थानीय जनप्रतिनिधियों से किसी प्रकार का सहयोग मिला है.

हस्तकरघा उद्योग , सिंगोड़ी गांव
हस्तकरघा उद्योग , सिंगोड़ी गांव

'बीटेक पास फिर भी मजदूर'
वहीं, आजम नामक युवक ने बताया की मैं बीटेक पास हूं. बावजूद मुझे कहीं पर रोजगार या फिर सरकारी जॉब नही मिला. उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद भी हस्तकरघा उद्योग में भी बुनकर का काम कर रहे है. अब यह भी बंद पड़ा हुआ है. आजम ने बताया कि हमलोग गरीब जरूर हैं. लेकिन पीएम मोदी के लॉकडाउन के फैसले का समर्थन करते हैं. यहां सिंगोड़ी गांव के अलावा आस-पास के गांव में जाकर हमलोग लोगों को जागरूक कर रहे हैं. लोगों को सोशल डिसिटेंसिंग और मास्क लगाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

'परिवार का भरण पोषण करना हो रहा मुश्किल'
सिंगोड़ी हस्तकरघा उद्योग के संचालक मो. स्लामुदिन अंसारी ने गर्मी और शादी के सिजन को देखते हुए उन्होंने काफी मात्रा में सुत को खरीद कर स्टॉक कर लिया था. जो जमा पुंजी थी उसे उद्योग धंधा के कार्य के लिए लगा दिया था. अब कोरोना के कारण लागू लॉकडाउन ने उन्हें भी फांस लिया है. उन्होंने बताया कि काफी संख्या में बना हुआ गमछा, चादर और स्टॉक का कपड़ा बचा हुआ है. लॉकडाउन के बाद से उद्योग धंधा ठप पड़ा हुआ है. बुनकर संचालक के साथ-साथ मजदूरों के परिवार के सामने भूखमरी जैसी स्थिति बन चुका है. कई मजदूरों ने ईटीवी भारत के माध्याम से जिला प्रशासन से गुहार लगाते हुए कहा किअभी दो-तीन दिन का राशन तो घर में लेकिन, उसके बाद क्या होगा, कैसे वह परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम करेगा पता नहीं. मजदूरों ने सरकार से मदद की गुहार लगाई.

पटना: कोरोना वायरस के चलते देश में 3 मई तक लॉकडाउन को बढ़ाने का फैसला केंद्र सरकार ने किया है. इससे पहले 14 अप्रैल तक 21 दिनों का लॉकडाउन किया गया था. नतीजा जिला अंतर्गत पालीगंज अनुमंडल क्षेत्र के सिंगोड़ी गांव में सैकड़ो हस्तकरघा उद्योग ठप हो गई थी. उद्योग बंद होने से इसका सीधा असर दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ा. 21 दिनों को लॉकडाउन मजदूरों ने जैसे-तैसे 14 दिन बिता दिए. लेकिन, संक्रमण के बढ़ते मामले को देखते हुए सरकार ने एकबार फिर से लॉकडाउन को आगे बढ़ाया है. सरकार के फैसले से एकबार फिर दिहाड़ी मजदूरों के सामने भोजन का संकट खड़ा हो चुका है.

'व्यापार ठप दिहाड़ी मजदूर परेशान'
बता दें कि पालीगंज अनुमंडल क्षेत्र के सिंगोड़ी गांव लगभग पांच सौ घरों में हैंडलूम सूती कपड़ो का बुनाई का काम होता है. कपड़ा की बुनाई कर सैकड़ों मजदूरों का पेट भरने का जरिया है. यही काम यहां के हजरों परिवारों के जीविका का आधार है. लेकिन कोरोना की धमक के वजह से लगभग सभी उद्योगों के खनक बंद पडे़े हुए है. हस्तकरघा उद्योग में काम करने वाले बुनकर मजदूर शहाबुदीन ने बताया की जब से पीएम मोदी ने लॉकडाउन लागू करने की घोषणा की तब से घर में बंद है. 14 दिन तो जैसे-तैसे काट लिए, लेकिन अब रोटी के एक निवाले पर भी आफत आन पड़ी है. पिछले 20 दिनों से काम बंद पड़ा हुआ है. हमारे साथ यहां पर 16 और मजदूर काम करते थे. हमसभी बुनकरों के सामने अब रोटी की भयानक समस्या उत्पन्न हो गई है. मजदूरों ने बताया कि हम सरकार पर निर्भर नहीं रहना चाहते हैं. लेकिन हालात ऐसे हैं कि अगर सरकार के सामने हाथ नहीं फैलाए तो भूखे-प्यासे जान से हाथ धो बैठेंगे. हालांकि, अभी तक हमलोगों की ना सरकार ने मदद की और ना ही स्थानीय जनप्रतिनिधियों से किसी प्रकार का सहयोग मिला है.

हस्तकरघा उद्योग , सिंगोड़ी गांव
हस्तकरघा उद्योग , सिंगोड़ी गांव

'बीटेक पास फिर भी मजदूर'
वहीं, आजम नामक युवक ने बताया की मैं बीटेक पास हूं. बावजूद मुझे कहीं पर रोजगार या फिर सरकारी जॉब नही मिला. उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद भी हस्तकरघा उद्योग में भी बुनकर का काम कर रहे है. अब यह भी बंद पड़ा हुआ है. आजम ने बताया कि हमलोग गरीब जरूर हैं. लेकिन पीएम मोदी के लॉकडाउन के फैसले का समर्थन करते हैं. यहां सिंगोड़ी गांव के अलावा आस-पास के गांव में जाकर हमलोग लोगों को जागरूक कर रहे हैं. लोगों को सोशल डिसिटेंसिंग और मास्क लगाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

'परिवार का भरण पोषण करना हो रहा मुश्किल'
सिंगोड़ी हस्तकरघा उद्योग के संचालक मो. स्लामुदिन अंसारी ने गर्मी और शादी के सिजन को देखते हुए उन्होंने काफी मात्रा में सुत को खरीद कर स्टॉक कर लिया था. जो जमा पुंजी थी उसे उद्योग धंधा के कार्य के लिए लगा दिया था. अब कोरोना के कारण लागू लॉकडाउन ने उन्हें भी फांस लिया है. उन्होंने बताया कि काफी संख्या में बना हुआ गमछा, चादर और स्टॉक का कपड़ा बचा हुआ है. लॉकडाउन के बाद से उद्योग धंधा ठप पड़ा हुआ है. बुनकर संचालक के साथ-साथ मजदूरों के परिवार के सामने भूखमरी जैसी स्थिति बन चुका है. कई मजदूरों ने ईटीवी भारत के माध्याम से जिला प्रशासन से गुहार लगाते हुए कहा किअभी दो-तीन दिन का राशन तो घर में लेकिन, उसके बाद क्या होगा, कैसे वह परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम करेगा पता नहीं. मजदूरों ने सरकार से मदद की गुहार लगाई.

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