पटना: बिहार की राजधानी पटना में अवस्थित गोलघर (Golghar) अंग्रेजों द्वारा अनाज भंडार के तौर पर बनाया गया. गोलघर पटना की पहचान है. पटना आने वाला हर शख्स सबसे पहले गोलघर को देखने की चाहत रखता है. आज यह गोलघर 235 वर्ष का हो गया. गवर्नर जनरल वॉरेन हेस्टिंग को 20 जनवरी 1784 को खाद्यान्न के एक कारोबारी जेपी ऑरियल ने एक बड़ा अन्न भंडार बनाने की सलाह दी थी. हेस्टिंग 1770 के अकाल का स्थायी समाधान खोजना चाहते थे. उस अकाल में बिहार-बंगाल और ढाका में 10 लाख से अधिक लोग मरे थे.
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इसे बनाने का जिम्मा हेस्टिंग ने बंगाल आर्मी के इंजीनियर कैप्टन जॉन गार्स्टीन (Captain John Garstein) को सौंपा था. गोलघर के निर्माण के लिए गार्स्टीन ने बांकीपुर में अपना डेरा जमाया था. उस समय का 'बंगला गार्स्टीन साहब' ही आज का बांकीपुर गर्ल्स हाई स्कूल है. आपको बता दें कि 235 वर्ष पुराने गोलघर का निर्माण राजधानी पटना के गांधी मैदान (Gandhi Maidan) के पास 20 जुलाई 1786 को हुआ था. महज ढाई साल में ही गोलघर को बनवा दिया गया था. गोलघर का आकार 125 मीटर और ऊंचाई 29 मीटर इसकी दीवारें 3.6 मीटर मोटी हैं. इसमें एक साथ 140000 टन अनाज रखा जा सकता है.
बताया जाता है कि बनने के बाद ही इसमें खामियां सामने आने लगी थीं. इसके दरवाजे भीतर की ओर खुलते हैं. इसके चलते इसे कभी पूरा भरा नहीं जा सकता. दूसरी खामी यह है कि गर्मी के कारण इसमें अनाज जल्दी सड़ जाते थे. लिहाजा इसे बनाने का उद्देश्य कभी पूरा नहीं हो सका. कभी अनाज संग्रह नहीं हुआ. तब अंग्रेजों ने इसके निर्माण में खामियों को गार्स्टीन की मूर्खता कहा था. इसके बावजूद गोलघर काफी लोकप्रिय है.
बता दें कि वर्ष 2011 में गोलघर की दीवारों में दरारें दिखने लगी थीं. इसके बाद राज्य सरकार ने इसके संरक्षण का निर्णय लिया था. सर्वे के बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को यह काम सौंपा गया था.
आपको बता दें कि गोलघर में कुल 145 सीढ़ियां हैं. गोलघर को 1979 में राज्य संरक्षित स्मारक घोषित किया गया था. यह स्थापत्य का अद्भुत नमुना है. इसके निर्माण में कहीं भी स्तंभ नहीं है. गुम्बदाकार आकृति के कारण इसकी तुलना 1627-55 में बने मोहम्मद आदिल शाह के मकबरे से की जाती है. गोलघर के अंदर एक आवाज 27-32 बार प्रतिध्वनित होती है. यह अपने आप में अद्वितीय है.