पटना: सीएजी की रिपोर्ट (CAG Report) में बिहार सरकार (Bihar Government) के अलग-अलग विभागों में अनियमितता सामने आई है. परिवहन विभाग (Transport Department) की अनियमितता के चलते सरकार को करोड़ों रुपये का चूना लगा है. बिहार में 1% लोगों को ही मनरेगा के तहत 100 दिनों का रोजगार मिला है. भारत नेपाल सीमा सड़क परियोजना में भी बड़े पैमाने पर गड़बड़ी पाई गई है.
यह भी पढ़ें- Bihar Politics: आठ साल बाद संसद पहुंचे लालू यादव ने कहा- मुझसे आगे निकल गया है तेजस्वी
सीएजी की रिपोर्ट बिहार विधानसभा (Bihar Assembly) में पेश हुई. रिपोर्ट में अप्रैल 2018 से फरवरी 2020 तक 629 मामलों का पता लगाया गया है, जिसमें सरकार को 3658 करोड़ रुपये की राजस्व हानि हुई है. भारत नेपाल सीमा सड़क परियोजना और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के क्रियान्वयन में अनियमितता हुई. इसके साथ ही बिहार महादलित विकास मिशन की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े किए गए हैं.
महालेखाकार राम अवतार शर्मा ने कहा, 'भारत नेपाल सीमा पर 5 साल में केवल 24 किलोमीटर सड़क का निर्माण हुआ. 31 पुलों का एप्रोच पथ का निर्माण नहीं हो सका. 800 करोड़ रुपये के बदले भूमि अधिग्रहण का बजट बढ़कर 2200 करोड़ रुपये हो चुका है. बीएसआरटीसी को सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में वेतन और पेंशन मद के लिए 215 करोड़ रुपये कर्ज के रूप में दिये थे. कर्ज नहीं चुका पाने की स्थिति में सरकार ने सुल्तान भवन की कीमत 262 करोड़ रुपये लगा दी और हिसाब बराबर कर दिया. वह भवन 1962 से बिहार सरकार की थी. कागजों पर दिखाकर सरकार ने कर्ज को बराबर कर दिया.
राम अवतार शर्मा ने कहा, 'पुल निर्माण निगम में भी वित्तीय अनियमितता पाई गई है. फ्लाईओवर के विश्लेषण में पाया गया है कि नियमों का उल्लंघन करते हुए तकनीकी स्वीकृति से पहले ही संवेदक को 66 करोड़ 25 लाख का भुगतान कर दिया गया. बिना अनुबंध के अनुसार फाउंडेशन फॉर इन्नोवेशन एंड टेक्नोलॉजी ट्रांसफर आईआईटी दिल्ली को 4 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया.'
"लोहिया पथ चक्र परियोजना में भी गड़बड़ी की शिकायत मिली है. लोहिया पथ चक्र परियोजना के लिए कंपनी द्वारा 16.90 करोड़ रुपये डिजाइन के लिए, 6.04 करोड़ रुपये पर्यवेक्षण सलाहकार के लिए और 10.86 करोड़ रुपये परियोजना निधि पर गलत तरीके से खर्च किया गया. सरकार को कुल 18.42 करोड़ रुपये की क्षति हुई."- राम अवतार शर्मा, महालेखाकार
सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2014 से 2019 के पांच साल के दौरान बिहार के वैसे परिवार जिन्हें मांगने के बाद 100 दिनों का रोजगार मिला उनकी संख्या एक प्रतिशत से कम से लेकर तीन प्रतिशत तक थी. इसी अवधि में मनरेगा के तहत लिए गए कार्यों में से 14 प्रतिशत तक कार्य ही पूर्ण हो सके.
यह भी पढ़ें- सदन में बोले मंगल पांडे- हमने ठाना है, 50 सालों की खराब स्वास्थ्य व्यवस्था से बिहार को निकालेंगे बाहर