पटना: सियासी शोर के बीच लोकसभा चुनाव प्रचार अपने आखिरी दौर में पहुंच चुका है. बिहार की कुल आठ सीटों पर चुनाव होना बाकी रह गया है. इसमें राजधानी पटना की दोनों हॉट सीटें पाटलिपुत्र और पटना साहिब बची हुईं हैं. यहां से कई दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है. पाटलिपुत्र लोकसभा सीट की बात करें तो यहां एनडीए से बीजेपी के दिग्गज नेता और केंद्रीय मंत्री रामकृपाल यादव तो दूसरी तरफ हैं. लालू प्रसाद की बेटी मीसा भारती.
दोनों उम्मीदवारों की होगी जोर आजमाइश
मीसा भारती और रामकृपाल यादव की लड़ाई इसलिए भी अहम है कि दोनों एक बार फिर आमने-सामने हैं. एक तरफ जहां रामकृपाल यादव के लिए दोबारा सीट बचाने की चुनौती है तो दूसरी तरफ मीसा भारती के लिए अपनी खोई साख वापस पाने की जद्दोजहद है.
आरजेडी में रामकृपाल ने खेली लंबी पारी
2014 लोकसभा से पहले एक समय था जब रामकृपाल यादव को बिहार की राजनीति में लालू यादव के हनुमान के नाम से जाना जाता था. आरजेडी में उनकी एक विशेष पहचान थी. रामकृपाल आरजेडी के टिकट पर तीन बार लोकसभा सदस्य, एक बार राज्यसभा सदस्य और बिहार के विधान परिषद के सदस्य भी रहे. पर 2014 के लोकसभा चुनाव ने अचानक सबकुछ बदल दिया. रामकृपाल ने आरजेडी से नाता तोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया.
इस वजह से रामकृपाल ने छोड़ी थी आरजेडी
दरअसल, पिछले लोकसभा चुनाव में लालू यादव ने पाटलिपुत्र सीट से रामकृपाल यादव को टिकट न देकर अपनी बेटी मीसा भारती यादव को टिकट दे दिया. ये बात रामकृपाल यादव को बिल्कुल नागवार गुजरी. नाराज रामकृपाल यादव ने पार्टी छोड़ने में जरा भी देर नहीं की और बीजेपी में शामिल हो गए. चुनाव परिणाम में रामकृपाल यादव ने अपना दम दिखाया और मीसा भारती को करीब 40 हजार मतों से पराजित कर दिया.
विधानसभा सीटों का समीकरण
इस बार स्थिति थोड़ी उलट है. महागठबंधन के नाम पर कई दल एक साथ हैं. इसमें आरजेडी, कांग्रेस, हम, रालोसपा, वीआईपी और सीपीआई(माले) शामिल हैं. पाटलिपुत्र की विधानसभा सीटों का समीकरण भी महागठबंधन के पक्ष में दिख रहा है. पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र में 6 विधानसभा क्षेत्र हैं जिसमें दानापुर, मनेर, फुलवारी, मसौठी, पालीगंज और विक्रम विधानसभा सीटें आती हैं. इन विधानसभाओं में से मनेर, मसौठी और पाली पर आरजेडी का कब्जा है. जबकि दानापुर पर बीजेपी, फुलवारी पर जदयू और विक्रम पर कांग्रेस का कब्जा है.
यादव बहुल है ये लोकसभा सीट
जातिगत समीकरण की बात करें तो पाटलिपुत्र लोकसभा सीट यादव बहुल इलाका माना जाता है. यहां यादव मतदाताओं की संख्या करीब 5 लाख के आसपास है. वहीं, भूमिहार मतदाताओं की संख्या साढ़े चार लाख के आसपास है. जबकि 3 लाख राजपूत और कुर्मी एवं ब्राह्मण मतदाताओं डेढ़ लाख हैं.
भूमिहार वोटरों को साधने के लिए अनंत सिंह का सहारा
इस बार आरजेडी ने इस सीट पर पूरी ताकत झोंक दी है. भूमिहार और सवर्ण मतदाताओं को साधने के लिए अनंत सिंह भी मीसा भारती के लिए प्रचार कर रहे हैं. कभी अनंत सिंह को 'बैड एलिमेंट' कहने वाले तेजस्वी यादव को अब अनंत सिंह से कोई गुरेज नहीं है. वहीं, आरेजडी के लिए एक अच्छी बात ये भी है कि इस बार सीपीआई (माले) ने भी उन्हें अपना समर्थन दे दिया है. ऐसे में मीसा की मुश्किलें 2014 की तुलना में 2019 में कम दिख रही हैं.
ये है रामकृपाल यादव की मजबूती
रामकृपाल यादव की भी दावेदारी कम नहीं है. उनके पास राजनीति का लंबा अनुभव है. मोदी सरकार में बतौर मंत्री काम कर रहे हैं. जनता के बीच उनकी एक अपनी छवि है. हालांकि रामकृपाल यादव इस बार अपने काम से ज्यादा मोदी नाम के भरोसे हैं, रामकृपाल यादव के पक्ष में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनावी सभाएं कर पाटलिपुत्र के समीकरण को बदलने की कोशिश की है.
2014 का लोकसभा चुनाव का जनादेश
2014 की मोदी लहर में रामकृपाल यादव ने मीसा भारती को हराया था. रामकृपाल यादव को 3 लाख 83 हजार 262 वोट मिले थे. आरजेडी उम्मीदवार मीसा भारती को 3 लाख 42 जहार 940 वोट मिले थे. तीसरे स्थान पर जेडीयू के रंजन प्रसाद यादव रहे. उन्हें 97 हजार 228 वोट मिले. जबकि सीपीआई(माले) प्रत्याशी रामेश्वर प्रसाद को 51 हजार 623 वोट मिले थे.
प्रत्याशी नहीं, एनडीए बनाम महागठबंधन की लड़ाई
बहरहाल, पाटलिपुत्र सीट से उम्मीदवार भले ही रामकृपाल और मीसा हों लेकिन प्रतिष्ठा तो यहां एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी और आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद की ही लगी है. कभी लालू के हनुमान रहे मौजूदा सांसद पिछले लोकसभा चुनाव से बीजेपी के लिए राम हैं. एक जमाने में चाचा-भतीजी रहे रामकृपाल और मीसा भारती की इस लड़ाई में जीत किसकी होगी ये तो 23 मई को ही पता लगेगा. हालांकि इतना तय है कि इस हाई प्रोफाइल सीट पर मीसा के लिए पार्टी की प्रतिष्ठा बचाने की जद्दोजहद है, तो दूसरी तरफ रामकृपाल के लिए दोबारा संसद पहुंचने की चुनौती भी है.