नई दिल्ली: कोरोना महामारी ने आज एक ऐसे सख्स को समा लिया, जिसकी कमी पूरे देश को खल रही है. देश के जाने-माने फिजीशियन और अलग तरीके से लोगों को समझाने के अंदाज के लिए मशहूर डॉ कृष्ण कुमार अग्रवाल की कोरोना संक्रमण से मौत हो गई. जिससे मेडिकल फ्रेटरनिटी के लोग काफी दुखी हैं और उनके चाहने वाले करोड़ों लोग भी उनकी अकस्मात मृत्यु से अचंभित हैं.
"द शो मस्ट गो ऑन"
डॉक्टर केके अग्रवाल ने अपने अंतिम शो में मन की बात रखते हुए कहा था कि पिक्चर अभी बाकी है "द शो मस्ट गो ऑन. डॉक्टर केके अग्रवाल के इन दो वाक्यों से उनके मन में चल रहे उथल-पुथल को समझा जा सकता है. उन्होंने कहा था कि वह खुद खतरनाक कोरोना के गंभीर संक्रमण से जूझ रहे हैं. जब वे ये सब कह रहे थे तो वह ऑक्सीजन सपोर्ट पर थे और संक्रमण उनके फेफड़े तक पहुंच चुका था.
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कई मेडिकल संगठनों का किया नेतृत्व
कोरोना की पहली लहर के दौरान डॉक्टर केके अग्रवाल ने लोगों से अपील करते हुए कहा था कि अब कोरोना आ गया है तो यह जाएगा नहीं. इसके साथ ही जीना सीखना पड़ेगा. आज डॉक्टर के के अग्रवाल हमारे बीच नहीं हैं. लेकिन उनकी कही सभी बातें लोगों को याद आ रही हैं.
दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ अनिल बंसल के लिए सुबह मिली डॉक्टर के के अग्रवाल की मृत्यु की खबर ने झकझोर कर रख दिया. उन्होंने बताया कि डॉक्टर केके अग्रवाल दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, दिल्ली मेडिकल काउंसिल समेत वर्ल्ड मेडिकल एसोसिएशन का नेतृत्व कर चुके थे. डॉक्टर्स एसोसिएशन का पूरी दुनिया में ऐसा कोई भी एसोसिएशन नहीं रहा, जिसका नेतृत्व के के अग्रवाल ने नहीं किया हो.
डॉ अजय गंभीर ने बचपन के दोस्त किस्सू को किया याद
वहीं दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के सचिव डॉ अजय गंभीर के के अग्रवाल के स्कूल से लेकर मेडिकल कॉलेज तक सहपाठी रहे हैं. डॉ अजय गंभीर ने उनके साथ बिताए दिनों को याद करते हुए कुछ संस्मरण भी साझा किए.
उन्होंने गमगीन होते हुए कहा कि लोग कहते हैं कि "किसी के चले जाने से जिंदगी अधूरी नहीं होती, लेकिन यह भी सच है कि लाखों के मिल जाने से उस शख्स की कमी पूरी नहीं होती". जिस शख्स की कमी पूरी नहीं हो सकती वह शख्स हैं डॉक्टर के के अग्रवाल, जिसे प्यार से वह किस्सू कहा करते थे.
ऐसा रहा करियर
डॉ अजय गंभीर ने बताया कि वे और के के अग्रवाल दिल्ली में एक ही स्कूल में एक साथ पढ़ते थे. डॉ अग्रवाल उनसे 6 महीने उम्र में बड़े थे और वह दिल्ली - 6 के हौज काजी इलाके में रहते थे. पढ़ाई में बहुत ही होशियार थे. स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद डॉक्टर अग्रवाल महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस वर्धा सेवाग्राम में उन्होंने दाखिला लिया. पहले एमबीबीएस किया.
उसके बाद वहीं से उन्होंने एमडी की भी डिग्री ली. मेडिकल इंस्टिट्यूट से उन्होंने भी एमबीबीएस किया और यहीं से उन्होंने भी पीडियाट्रिक्स और कम्युनिटी मेडिसिन में डबल एमडी किया. डॉ के के अग्रवाल पूरे नागपुर यूनिवर्सिटी में मेडिकल साइंस की पढ़ाई में हमेशा फर्स्ट आते रहे. वह उनके साथ फुटबॉल और क्रिकेट जैसे खेल खेला करते थे. वह केवल पढ़ाकू ही नहीं, बल्कि बहुत मिलनसार भी थे.
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'शिक्षक दिवस के दिन हुआ था जन्म'
डॉ अग्रवाल वर्धा से पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली आए और यहां मूलचंद हॉस्पिटल में काम करने लगे. उन्हें वह "वन मैन आर्मी बोलते थे". वह हमेशा काम पर रहते थे. डॉ के के अग्रवाल 5 सितंबर 1958 को पैदा हुए थे. 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में भी मनाया जाता है और वह अपने जीवन काल में एक बहुत बड़े शिक्षक बने.
पत्रकारों के साथ उनके बहुत अच्छे संबंध थे. उनकी खासियत की वजह से देश के जाने-माने पत्रकारों और आम और खास सभी पत्रकारों से उनका खास जुड़ाव था.
'हीरा थे के के अग्रवाल'
एम्स के कार्डियो रेडियो डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ अमरिंदर सिंह ने बताया कि डॉ के के अग्रवाल चिकित्सा जगत के एक हीरा थे. डॉ अग्रवाल के रूप में पूरी चिकित्सा बिरादरी ने एक हीरा खोया है. इसको कोरोना काल में डॉक्टर अग्रवाल ने कम से कम 10 करोड़ लोगों को अपने खास शो टॉक सुमित के के अग्रवाल के माध्यम से कोरोना के बारे में जागरूक किया.
'मेडिकल साइंस का भारतीयकरण दिया'
डॉ अजय गंभीर बताते हैं कि वार्तालाप और संवाद करने की अद्भुत क्षमता उनके अंदर थी. मेडिकल साइंस को उन्होंने पूरी तरह से भारतीयकरण कर दिया था. यही चीज उन्हें दूसरे डॉक्टरों से अलग करती है. वह किसी भी काम को अधूरा नहीं छोड़ते थे. टीचिंग करने के अलावा दिल्ली मेडिकल काउंसिल में भी वह हमारे साथ रहे. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के वाइस प्रेसिडेंट और फिर प्रेसिडेंट बने.
'अपने दोस्तों को कभी नहीं भूले'
डॉ केके अग्रवाल की अनेक खूबियों में एक खूबी यह भी थी कि वह अपने अपनी जड़ को कभी नहीं भूलते थे. अपने दोस्तों को कभी नहीं भूलते थे. उन्होंने अपने अंदाज में मेडिकल साइंस को आध्यात्मिकता और धार्मिकता से खूबसूरती के साथ जोड़ दिया था. डॉक्टर अग्रवाल का इस तरह असमय ही इस दुनिया से चले जाना पूरी मेडिकल जगत के लिए अपूरणीय क्षति है.
डॉक्टरों की कमी की तरफ किया था इशारा
डॉक्टर केके अग्रवाल ने अपने आखिरी वीडियो संदेश में स्पष्ट कर दिया था कि अब एक एक पेशेंट को देखना संभव नहीं है. जुगाड़ू ओपीडी करना पड़ेगा, क्योंकि मरीजों के अनुपात में डॉक्टर्स की संख्या काफी कम हैं.
आखिरी शब्द
जिंदगी लंबी नहीं, बड़ी होनी चाहिए. डॉ अग्रवाल अपनी जिंदगी को बड़ी बनाकर गये हैं. डॉ के के अग्रवाल ने अपनी मृत्यु के बारे में एक बात कही थी कि उनकी मौत को उत्सव की तरह मनाया जाय, कोई आंसूं न बहाय और जब उनका अंतिम संस्कार किया जाय तो उनका "आला" उनके गले में लिपटा हो. उनके आखिरी शब्द थे "आई एम नॉट के के अग्रवाल आई एम "दी मेडिकल प्रोफेशन" द शो मस्ट गो ऑन"