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सुप्तावस्था में है बिहार का लोकायुक्त Act!, नहीं कम हो रहा भ्रष्टाचार

बिहार में भ्रष्टाचार की बात करें, तो इंडिया करप्शन सर्वे-2019 की आई रिपोर्ट में बिहार देशभर में दूसरे नंबर पर रहा. मानें, यहां रिश्वतखोरी चरम सीमा पर रही. रिपोर्ट में बिहार के आगे राजस्थान था. ऐसे में बिहार लोकायुक्त एक्ट-2011 के बारे में जानना जरूरी हो जाता है...

बिहार लोकायुक्त अधिनियम -2011
बिहार लोकायुक्त अधिनियम -2011
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Published : Aug 26, 2020, 2:32 PM IST

पटना : भारत का लोकतंत्र विश्वभर में जाना जाता है और इसकी मजबूती के लिए देश में ठोस कानून बनाये गये हैं, जो लोकतंत्र की रक्षा कर सकें. इसी कड़ी में लोकायुक्त एक्ट भी महत्वपूर्ण अंग है. राज्यवार अपना-अपना लोकायुक्त अधिनियम लागू है. बात बिहार की करें, तो 2011 में प्रदेश में नया लोकायुक्त अधिनियम बना.

7 दिसंबर 2011, बिहार विधान सभा में एक संक्षिप्त बहस के बाद ध्वनिमत लोकायुक्त अधिनियम पारित किया गया. इससे पहले बिहार में 1973 से बिहार में लोकायुक्त गठित था. लोकायुक्त के पहले अध्यक्ष श्रीधर वसुदेव सुहानी थे. जो कि 28 मई 1973 से 27 मई 1978 तक अध्यक्ष पद पर रहे.

देखें ये खास रिपोर्ट

बिहार लोकायुक्त एक्ट 2011 का मुख्य उद्देश्य
2011 में बिहार में भ्रष्टाचार संबंधी शिकायतों की जांच के लिए एक नई लोकायुक्त संस्था का गठन इस अधिनियम का उद्देश्य रहा. लोकायुक्त एक्ट 2011 के लागू होते ही इस एक्ट के प्रथम अध्यक्ष जस्टिस चंद्रमोहन प्रसाद बने, जो 24 अगस्त 2016 तक पदास्थापित रहे.

लोकायुक्त के पास क्या अधिकार हैं?
लोकायुक्त लोगों की शिकायत सुन सकते हैं. किसी भी भ्रष्टाचार के मामले में सुनवाई कर सकते हैं, लेकिन केस पूरा होने के बाद सरकार से केवल रिकमन्डेशन कर सकते हैं. खुद किसी भी मामले की सुनवाई पूरी होने पर कार्रवाई नहीं कर सकते.

बिहार लोकायुक्त: महत्वपूर्ण बातें

महत्वपूर्ण बातें
महत्वपूर्ण बातें

लोकायुक्त में दो न्यायाधीश
बिहार में लोकायुक्त कार्यालय में एक अध्यक्ष और 2 सदस्य हैं. इन तीनों में से किसी 2 पदों पर न्यायाधीश और एक पर प्रशासनिक अधिकारी रहते हैं. तीनों के अलग-अलग कोर्ट हैं. इसके अध्यक्ष को हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और सदस्यों को हाईकोर्ट के न्यायाधीश की तरह वेतन भत्ते सुविधाएं मिलती है. लोकायुक्त को उनके कार्यों के प्रदर्शन पर वार्षिक रिपोर्ट राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत करनी होती है. मुख्यमंत्री, मंत्री, विधानसभा या विधानपरिषद सदस्य व राज्य सरकार के अधिकारी के खिलाफ जांच करने से पहले राज्य सरकार से इजाजत जरूरी है.

सरकारी सेवकों से संबंधित शिकायतें होती हैं दर्ज
बिहार लोकायुक्त में सरकारी सेवकों से संबंधित शिकायतों की सुनवाई और निष्पादन होता है. सरकारी सेवकों के खिलाफ किसी को शिकायत और सरकार के किसी निर्णय से किसी को कोई परेशानी हो तो उसकी फरियाद सुनी जाती है. शिकायत दर्ज करने में 200 रुपए खर्च होते हैं. जिसमें से 100 रुपए कोर्ट फीस और 100 रुपए शपथ पत्र के लिए जाते हैं.

बिहार में लोकायुक्त : अब तक

बिहार में लोकायुक्त
बिहार में लोकायुक्त

वर्तमान में बिहार लोकायुक्त
वर्तमान में पटना हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्याम किशोर शर्मा बिहार लोकायुक्त के अध्यक्ष हैं. जब बिहार के राज्यपाल रामनाथ गोविंद थे, तब उन्होंने ही इन्हें शपथ दिलाई थी. लोकायुक्त के अध्यक्ष पद पर शपथ लेने के बाद 5 साल या फिर 70 साल की उम्र तक कार्य कर सकते हैं. लोकायुक्त कार्यालय में तैनात सुरक्षा गार्डों के अनुसार प्रतिदिन 100 से अधिक लोग फरियाद लेकर पहुंच रहे हैं.

कोरोना काल का प्रभाव
लॉकडाउन लगने के बाद से किसी तरह की सुनवाई यहां नहीं हो रही है. बाहरी व्यक्ति का कार्यालय में प्रवेश पूरी तरह निषेध है. सत्ताधारी दल की ओर से कोई भी नेता इस पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हुए. वहीं, आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि लॉकडाउन का असर हर जगह है. लोगों को हर जगह परेशानी हो रही है. इसीलिए आरजेडी चुनाव टालने की मांग करते रहे हैं. लेकिन चुनाव आयोग चुनाव कराने पर अड़ा हुआ है.

5 जून, 2020: लोकायुक्त पर पटना हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी
बिहार लोकायुक्त इस साल एक मामले में चर्चा में आया था. जब पटना हाई कोर्ट ने एक फैसले में यह तय किया कि राज्य के लोकायुक्त संस्था लोकायुक्त या लोकपाल कानून से बाहर जाकर कोई निर्णय नहीं ले सकता है. कोर्ट ने कहा कि किसी लोक सेवक के खिलाफ कोई भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत किए गए अपराध या पद के दुरुपयोग या आर्थिक लाभ की शिकायतें मिले, तो उसकी जांच करें और जांच में आरोप सही पाए तभी लोकायुक्त संस्था कानून सम्मत कार्रवाई करें, ना कि क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर.

हाई कोर्ट ने टिप्पणी किया था कि कोई भी संस्था अपने क्षेत्राधिकार के भीतर ही काम करती है. लोकायुक्त सरकार के प्रशासनिक कार्रवाई, न्यायिक पुनर्विचार नहीं कर सकती है. जिसे हाई कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने शक्ति में इस्तेमाल करती है. हाई कोर्ट के जस्टिस सीएस सिंह ने बिपिन बिहारी सिंह की रिट याचिका को मंजूर करते हुए बिहार के लोकायुक्त न्यायिक सदस्य के 4 अप्रैल 2019 के आदेश को निरस्त कर दिया था.

क्या था मामला
दरअसल, लोकायुक्त के उपरोक्त आदेश के तहत बिहार के निबंधक सहयोग समिति को निर्देश दिया गया था कि याचिकाकर्ता पंडारक का अंचलाधिकारी था, उसके विरूद्ध विभागीय जांच कर सजा की कार्रवाई करें. लोकायुक्त कार्यालय इसको लेकर लंबे समय तक चर्चा में बना रहा.

कर्मचारियों में नहीं है भय- अधिवक्ता
बिहार में लोकायुक्त की स्थिति के बारे में पटना हाईकोर्ट के वकील शांतनु कुमार का कहना है कि प्रदेश में लोकायुक्त ऐसी स्थिति में है कि कर्मचारियों में कोई भय नहीं है. जरूरत इस बात की है कि लोकायुक्त को और ज्यादा अधिकार दिए जाएं. अधिवक्ता की प्रतिक्रिया पर तस्दीक की जाए, तो बिहार नौकरशाही को लेकर लगातार बदनाम होता रहा है. प्रशासनिक भ्रष्टाचार के मामले में बिहार देश के अव्वल राज्यों में शुमार हो चुका है. दअसल, दुनिया के तीन सबसे बड़े विश्वविद्यालयों यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो बूथ स्कूल ऑफ बिजनेस और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के स्कॉलर गुओ जू, मैरिएन बंट्रेंड और रॉबिन बर्गीज के भारत की नौकरशाही भ्रष्टाचार पर किए गए शोध में ये खुलासा किया था.

बिहार में भ्रष्टाचार
लोकायुक्त का मुख्य उद्देश्य भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करना है. बावजूद इसके इंडिया करप्शन सर्वे-2019 की रिपोर्ट में बिहार देशभर में भ्रष्टाचार के मामले में दूसरे नंबर पर रहा. सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली, हरियाणा, गुजरात, पश्चिम बंगाल, केरल, गोवा और ओडिशा में लोगों ने भ्रष्टाचार के कम मामलों की सूचना दी गई है, जबकि राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, झारखंड और पंजाब में भ्रष्टाचार की घटनाएं अधिक हुई हैं.

बिहार में एक और एक्ट : सरकारी योजनाओं के लिए
बिहार सरकार ने बिहार लोक शिकायत निवारण अधिकार अधिनियम भी लागू किया है. जो लोकायुक्त की तरह ही है. इसके लिए राज्य सरकार ने सभी जिलों में लोक शिकायत निवारण कार्यालय की स्थापना की 5 जून 2016 से प्रदेशभर में इस अधिनियम को लागू किया गया. इसके तहत प्रदेश का कोई भी नागरिक पेयजल, सफाई, शौचालय निर्माण, आवास योजना, राशन-किरासन, बिजली संबंधी मामले, अतिक्रमण, भूमि मापी, शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सरकारी योजनाओं से जुड़ी समस्या को लेकर शिकायत दर्ज करा सकता है.

पटना : भारत का लोकतंत्र विश्वभर में जाना जाता है और इसकी मजबूती के लिए देश में ठोस कानून बनाये गये हैं, जो लोकतंत्र की रक्षा कर सकें. इसी कड़ी में लोकायुक्त एक्ट भी महत्वपूर्ण अंग है. राज्यवार अपना-अपना लोकायुक्त अधिनियम लागू है. बात बिहार की करें, तो 2011 में प्रदेश में नया लोकायुक्त अधिनियम बना.

7 दिसंबर 2011, बिहार विधान सभा में एक संक्षिप्त बहस के बाद ध्वनिमत लोकायुक्त अधिनियम पारित किया गया. इससे पहले बिहार में 1973 से बिहार में लोकायुक्त गठित था. लोकायुक्त के पहले अध्यक्ष श्रीधर वसुदेव सुहानी थे. जो कि 28 मई 1973 से 27 मई 1978 तक अध्यक्ष पद पर रहे.

देखें ये खास रिपोर्ट

बिहार लोकायुक्त एक्ट 2011 का मुख्य उद्देश्य
2011 में बिहार में भ्रष्टाचार संबंधी शिकायतों की जांच के लिए एक नई लोकायुक्त संस्था का गठन इस अधिनियम का उद्देश्य रहा. लोकायुक्त एक्ट 2011 के लागू होते ही इस एक्ट के प्रथम अध्यक्ष जस्टिस चंद्रमोहन प्रसाद बने, जो 24 अगस्त 2016 तक पदास्थापित रहे.

लोकायुक्त के पास क्या अधिकार हैं?
लोकायुक्त लोगों की शिकायत सुन सकते हैं. किसी भी भ्रष्टाचार के मामले में सुनवाई कर सकते हैं, लेकिन केस पूरा होने के बाद सरकार से केवल रिकमन्डेशन कर सकते हैं. खुद किसी भी मामले की सुनवाई पूरी होने पर कार्रवाई नहीं कर सकते.

बिहार लोकायुक्त: महत्वपूर्ण बातें

महत्वपूर्ण बातें
महत्वपूर्ण बातें

लोकायुक्त में दो न्यायाधीश
बिहार में लोकायुक्त कार्यालय में एक अध्यक्ष और 2 सदस्य हैं. इन तीनों में से किसी 2 पदों पर न्यायाधीश और एक पर प्रशासनिक अधिकारी रहते हैं. तीनों के अलग-अलग कोर्ट हैं. इसके अध्यक्ष को हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और सदस्यों को हाईकोर्ट के न्यायाधीश की तरह वेतन भत्ते सुविधाएं मिलती है. लोकायुक्त को उनके कार्यों के प्रदर्शन पर वार्षिक रिपोर्ट राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत करनी होती है. मुख्यमंत्री, मंत्री, विधानसभा या विधानपरिषद सदस्य व राज्य सरकार के अधिकारी के खिलाफ जांच करने से पहले राज्य सरकार से इजाजत जरूरी है.

सरकारी सेवकों से संबंधित शिकायतें होती हैं दर्ज
बिहार लोकायुक्त में सरकारी सेवकों से संबंधित शिकायतों की सुनवाई और निष्पादन होता है. सरकारी सेवकों के खिलाफ किसी को शिकायत और सरकार के किसी निर्णय से किसी को कोई परेशानी हो तो उसकी फरियाद सुनी जाती है. शिकायत दर्ज करने में 200 रुपए खर्च होते हैं. जिसमें से 100 रुपए कोर्ट फीस और 100 रुपए शपथ पत्र के लिए जाते हैं.

बिहार में लोकायुक्त : अब तक

बिहार में लोकायुक्त
बिहार में लोकायुक्त

वर्तमान में बिहार लोकायुक्त
वर्तमान में पटना हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्याम किशोर शर्मा बिहार लोकायुक्त के अध्यक्ष हैं. जब बिहार के राज्यपाल रामनाथ गोविंद थे, तब उन्होंने ही इन्हें शपथ दिलाई थी. लोकायुक्त के अध्यक्ष पद पर शपथ लेने के बाद 5 साल या फिर 70 साल की उम्र तक कार्य कर सकते हैं. लोकायुक्त कार्यालय में तैनात सुरक्षा गार्डों के अनुसार प्रतिदिन 100 से अधिक लोग फरियाद लेकर पहुंच रहे हैं.

कोरोना काल का प्रभाव
लॉकडाउन लगने के बाद से किसी तरह की सुनवाई यहां नहीं हो रही है. बाहरी व्यक्ति का कार्यालय में प्रवेश पूरी तरह निषेध है. सत्ताधारी दल की ओर से कोई भी नेता इस पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हुए. वहीं, आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि लॉकडाउन का असर हर जगह है. लोगों को हर जगह परेशानी हो रही है. इसीलिए आरजेडी चुनाव टालने की मांग करते रहे हैं. लेकिन चुनाव आयोग चुनाव कराने पर अड़ा हुआ है.

5 जून, 2020: लोकायुक्त पर पटना हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी
बिहार लोकायुक्त इस साल एक मामले में चर्चा में आया था. जब पटना हाई कोर्ट ने एक फैसले में यह तय किया कि राज्य के लोकायुक्त संस्था लोकायुक्त या लोकपाल कानून से बाहर जाकर कोई निर्णय नहीं ले सकता है. कोर्ट ने कहा कि किसी लोक सेवक के खिलाफ कोई भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत किए गए अपराध या पद के दुरुपयोग या आर्थिक लाभ की शिकायतें मिले, तो उसकी जांच करें और जांच में आरोप सही पाए तभी लोकायुक्त संस्था कानून सम्मत कार्रवाई करें, ना कि क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर.

हाई कोर्ट ने टिप्पणी किया था कि कोई भी संस्था अपने क्षेत्राधिकार के भीतर ही काम करती है. लोकायुक्त सरकार के प्रशासनिक कार्रवाई, न्यायिक पुनर्विचार नहीं कर सकती है. जिसे हाई कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने शक्ति में इस्तेमाल करती है. हाई कोर्ट के जस्टिस सीएस सिंह ने बिपिन बिहारी सिंह की रिट याचिका को मंजूर करते हुए बिहार के लोकायुक्त न्यायिक सदस्य के 4 अप्रैल 2019 के आदेश को निरस्त कर दिया था.

क्या था मामला
दरअसल, लोकायुक्त के उपरोक्त आदेश के तहत बिहार के निबंधक सहयोग समिति को निर्देश दिया गया था कि याचिकाकर्ता पंडारक का अंचलाधिकारी था, उसके विरूद्ध विभागीय जांच कर सजा की कार्रवाई करें. लोकायुक्त कार्यालय इसको लेकर लंबे समय तक चर्चा में बना रहा.

कर्मचारियों में नहीं है भय- अधिवक्ता
बिहार में लोकायुक्त की स्थिति के बारे में पटना हाईकोर्ट के वकील शांतनु कुमार का कहना है कि प्रदेश में लोकायुक्त ऐसी स्थिति में है कि कर्मचारियों में कोई भय नहीं है. जरूरत इस बात की है कि लोकायुक्त को और ज्यादा अधिकार दिए जाएं. अधिवक्ता की प्रतिक्रिया पर तस्दीक की जाए, तो बिहार नौकरशाही को लेकर लगातार बदनाम होता रहा है. प्रशासनिक भ्रष्टाचार के मामले में बिहार देश के अव्वल राज्यों में शुमार हो चुका है. दअसल, दुनिया के तीन सबसे बड़े विश्वविद्यालयों यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो बूथ स्कूल ऑफ बिजनेस और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के स्कॉलर गुओ जू, मैरिएन बंट्रेंड और रॉबिन बर्गीज के भारत की नौकरशाही भ्रष्टाचार पर किए गए शोध में ये खुलासा किया था.

बिहार में भ्रष्टाचार
लोकायुक्त का मुख्य उद्देश्य भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करना है. बावजूद इसके इंडिया करप्शन सर्वे-2019 की रिपोर्ट में बिहार देशभर में भ्रष्टाचार के मामले में दूसरे नंबर पर रहा. सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली, हरियाणा, गुजरात, पश्चिम बंगाल, केरल, गोवा और ओडिशा में लोगों ने भ्रष्टाचार के कम मामलों की सूचना दी गई है, जबकि राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, झारखंड और पंजाब में भ्रष्टाचार की घटनाएं अधिक हुई हैं.

बिहार में एक और एक्ट : सरकारी योजनाओं के लिए
बिहार सरकार ने बिहार लोक शिकायत निवारण अधिकार अधिनियम भी लागू किया है. जो लोकायुक्त की तरह ही है. इसके लिए राज्य सरकार ने सभी जिलों में लोक शिकायत निवारण कार्यालय की स्थापना की 5 जून 2016 से प्रदेशभर में इस अधिनियम को लागू किया गया. इसके तहत प्रदेश का कोई भी नागरिक पेयजल, सफाई, शौचालय निर्माण, आवास योजना, राशन-किरासन, बिजली संबंधी मामले, अतिक्रमण, भूमि मापी, शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सरकारी योजनाओं से जुड़ी समस्या को लेकर शिकायत दर्ज करा सकता है.

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