पटना: राजधानी पटना को देश की सौ स्मार्ट सिटी बनाने की लिस्ट में शामिल किया गया है. सरकार का दावा है कि इसको लेकर डीपीआरओ भी तैयार किया जा रहा है और जल्द ही इस दिशा में तेजी से काम शुरू हो जाएगा. वहीं, इन मामलों के विशेषज्ञों का भी मानना है कि सही दिशा में काम हो तो इसे बेहतर शहर बनाया जा सकता है. ईटीवी भारत ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन के प्रोफेसर डॉ मिहिर भोले से इस मुद्दे पर खास बातचीत की.
सवाल- पटना को स्मार्ट सिटी बनाए जाने की जो प्रक्रिया है वो शुरू हो चुकी है, आप एनआईडी के प्रोफेसर हैं, क्योंकि आप अर्बन डेवलपमेंट पर काम करते हैं और आप पटना से जुड़े हुए भी हैं तो आप इसे कैसे देखते हैं. पटना को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए किन चीजों पर फोकस करने की जरूरत है?
जवाब- जब हम स्मार्ट सिटी बनाने की बात करते हैं, तो लगता है कि टेक्नोलॉजी के माध्यम से सारी चीजों को किया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं है. टेक्नोलॉजी, डिजाइन और इनोवेशन का जब समन्वय होगा तो परिवर्तन आएगा. टेक्नोलॉजी की भाषा आम लोगों के समझ से परे होता है. इसलिए जरूरत है कि टेक्नोलॉजी को डिजाइन से जोड़ने की, ताकि इसको समझना आसान हो सके. उदाहरण के तौर पर मैं कहना चाहूंगा पटना शहर में कूड़ा उठाने के लिए सॉलिड बेस्ट मैनेजमेंट के तहत छोटी-छोटी गाड़ियां चल रही है और गलियों में गाना बजाते हुए कूड़ा गाड़ियों में ही डालने के लिए लोगों को प्रेरित कर रहे हैं.
सवाल- जब स्मार्ट सिटी की बात आती है तो लोगों के जहन में टेक्नेलॉजी एक शब्द आता है, ऐसा स्मार्ट सिटी में खासियत क्या होगी, क्या यहां के परिवेश के हिसाब से आमजन की भाषा को स्मार्ट सिटी में शामिल करने की जरूरत है.?
जवाब- मैं कहूंगा आपने बहुत सही ढ़ंग से इसको पकड़ा है देखिए एक तो जो हमारे पास ग्लोबल मॉडल है स्मार्ट सिटीज के, टेक्नोलॉजी कंपनियां जिस तरह से स्मार्ट सिटीज की बात करती हैं. अगर आप खाली स्थान पर किसी चीज को बनाना चाहते हैं तो बिल्कुल आप विलक्षण किस्म की चीज खड़ी कर सकते हैं. लेकिन पटना घनी आबादी वाला शहर है. इसमें तकनीक और डिजाइन के माध्यम से उसके जो अर्बन मैनेजमेंट हैं उसको बेहतर बना सकते हैं.
सवाल- पटना शहर को स्मार्ट सिटी बनाना कितना चैलेंजिंग है?
जवाब- चुनौती तो है, क्योंकि यहां सोशल डेमोग्राफी है, यहां पैसे वाले लोग भी हैं, कम पैसे वाले लोग भी हैं और गरीब लोग भी हैं. हम जब जनसुविधा देने की बात करते हैं तो हमको उपरवाले को नहीं देखना है बल्कि जो सबसे नीचे वाले पायदान हैं उसको ध्यान में रखना है. सबसे नीचे वाली पायदान किस किस्म की टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर सकती है उसके पास एक्सेस टू टेक्नोलॉजी है कि नहीं, एक्सेस टू डिजाइन है कि नहीं, लोगों को शहर के गतिविधियों के बारे में जानकारी होनी चाहिए. ये सारी चीजें टेक्नोलॉजी, डिजाइन और इनोवेशन के मार्फत की जा सकती है.
सवाल- आप लगातार अर्बन डेवलपमेंट पर काम कर रहे हैं. आप पटना में अभी कुछ दिनों से हैं और रिसर्च भी कर रहे हैं तो क्या लगता है क्या बदलाव आया है. 25 सालों में बिहार में खासकर पटना में क्या कुछ बदलाव आया है?
जवाब- देखिए बदलाव तो बहुत आया है, इन्फ्रास्ट्रक्चर तौर पर बदलाव आया है नई बिल्डिंग्स आई है मॉल्स आये हैं. ये तो इन्फ्रास्ट्रक्चर के लेवल पर हुआ अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है.
सवाल- अगर सोशल की बात करें, सिविक सेंस की बात करें तो क्या कुछ बदलाव आया है?
जवाब- अब देखिए ये जो स्वच्छ भारत वाला मैंने आपको उदाहरण दिया जो छोटे ट्रक कचरे को उठा कर ले जाते हैं सुबह में मेरे पास एक छोटा सा बच्चा आया जिसकी उम्र 3 साल से ज्यादा नहीं थी और उस छोटे बच्चे ने अपना कूड़ादान मेरे हाथ में दिया कि आप अंकल आप इसे कूड़ेदान में डाल दें. मैंने जब उस ड्राइवर से पूछा कि क्या माजरा है, आप कैसे देखते हैं उसको तो उसने बताया कि जब हम गाने बजाते हैं और गलियों में घूमते हैं तो सबसे पहले हमारे पास बच्चे आते हैं. अब ये एक सोशल इनोवेशन की प्रक्रिया है. सिस्टम को ढ़ंग से इनोवेट कर दिया तो लोगों को समझ आ जाती है कि कोई स्वच्छ भारत वाली गाड़ी है आप कूड़ा न फेंकें. दूसरा एक और उदाहरण मैंने देखा कि सड़कों पर लोगों ने जहां तहां कूड़ा न फेंककर पॉलिथीन के बैग्स में कूड़े रख दिए ताकि वो गाड़ी वहां आए और कूड़े को ले जाएं, तो परिवर्तन तो सोच में हो रहा है. सरकार की तरफ से पहलकदमी है. सरकार ने इन्फ्रास्ट्रक्चर पर भी इनवेस्ट किया है.
सवाल- लगता है जो स्मार्ट सिटी बनाने की बात है तो पटना वासियों ने पहला कदम बढ़ा दिया है, ये जो सिविक सेंस जिस सोच की बात है?
जवाब- मुझे लगता है कि स्वच्छता की ओर हम पहला कदम बढ़ाएंगे तो स्मार्ट सिटी की तरफ पहला कदम होगा. सबसे पहली आवश्यता हमारी है हमारा शहर साफ लगे, स्वस्थ्य लगे, सुन्दर लगे, एस्थिटिकली प्लीजिंग लगे और इसमें बहुत कुछ करने की जरूरत है, जहां तहां बैनर लगा देना होर्डिंग्स लगा देना, बड़े बड़े आउटलेट कटआउट लगा देना और फिर उसको 6 महीने साल भर छोड़ देना, ये अर्बन एस्थेटिक्स को बड़ा गंदा करता है इसके बारे में भी कुछ सोचना होगा. सारी चीजें कहीं न कहीं स्मार्ट सिटी के अन्दर में ही आती है.