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आर्थिक संकट पर बोले अर्थशास्त्री- सत्ता के घमंड में देश का हो रहा नुकसान, ये बहुत घातक है

'जिस देश में और राज्य में सच बोलने और सच सुनने की क्षमता नहीं होती, उस समाज की गिरावट को कोई रोक नहीं सकता'.

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प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी, अर्थशास्त्री
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Published : Dec 5, 2019, 12:44 PM IST

पटनाः देश में आर्थिक संकट पर अब गंभीर चर्चा होनी शुरू हो गई है. जिस तरह से लगातार जीडीपी गिरती जा रही है. कई सरकारी संस्थानों का निजीकरण किया जा रहा है, उसके बाद आर्थिक संकट गहराता दिख रहा है. बावजूद इसके सत्ता में बैठे लोग लगातार ये सफाई दे रहे हैं कि सब कुछ सामान्य है. ईटीवी भारत से हुई खास बातचीत के दौरान प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी ने देश में आए आर्थिक संकट पर गहरी चिंता जताई है. पेश है उनसे बातचीत के कुछ अंश

प्रश्न- जीडीपी लगातार घट रही है, क्या स्थिति है देश की?
उत्तरः- देश की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है. रोजगार काफी संख्या में घटा है. आर्थिक मामले में जिस सूचक के माध्यम से इसकी माप की जाती है, वह सभी आंकड़े अर्थव्यस्था में गिरावट दिखा रहे हैं. वर्तमान में जो संकट बढ़ा है उसका मुख्य कारण संसाधन की भारी कमी है. विकास दर घटकर महज 4.5 फीसदी रह गया, जो लगभग साढ़े छह साल का सबसे निचला स्तर है. देश की जनता की क्रय शक्ति काफी घट गई है. जिसके कारण मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में भी काफी गिरावट आई है.

प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी से बातचीत करते संवाददाता
प्रश्न- सरकार का कोई भी मंत्री ये मानने के लिए तैयार नहीं है, इसका क्या कारण है? उत्तरः- एक ही कारण है राजनीतिक कारण, कोई भी सरकार आर्थिक संकट को आसानी से स्वीकार नहीं करना चाहती. जिस कारण स्थिति और ज्यादा खतरनाक हो जाती है. सरकार के साथ-साथ नौकरशाहों का भी घमंड देश के हालात को और गंभीर बना रहा है. सरकार में काम कर रहे लोग सिर्फ 'यसमैन' बने हुए हैं. सरकार आर्थिक सलाहकारों और विशेषज्ञों से सच सुनना नहीं चाहती है.

प्रश्न- अर्थव्यवस्था में इतनी गिरावट के बावजूद सरकार अर्थशास्त्रियों से संपर्क नहीं कर रही है?
उत्तरः- सरकार में घमंड आ गया है. सरकार आर्थिक सलाहकारों और विशेषज्ञों से सच सुनना नहीं चाहती है. सत्ता में बैठे लोग दूसरे की बात नहीं सुनते. इससे भी दुखद है कि वे जनता की आवाज को भी अनसुना करते हैं. कई बार सत्ता में बैठे लोग सत्ता के दलालों से भी प्रभावित होते हैं. यह बात सिर्फ वर्तमान सरकार पर ही नहीं बल्कि पूर्व की सरकारों पर भी लागू होती है. वर्तमान कि मोदी सरकार को प्रचंड बहुमत मिला है. इसलिए इनके पास सत्ता का गुरूर और अधिक हो गया है.

प्रश्न- सरकारी उपकरण बेचे जा रहे हैं, अपको क्या लगता है, सरकार का सही कदम है?
उत्तरः- 1991 से कांग्रेस की यूपीए और भाजपा की एनडीए सरकार एक ही नीति पर चल रही है. वह नीति है उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की. आर्थिक दर्शन का एक बड़ा पक्ष है निजीकरण, जो बैकग्राउंड में पहले से ही चल रहा है. लेकिन वर्तमान में जो संकट बढ़ा है उसका मुख्य कारण संसाधन की भारी कमी है.

प्रश्न- जीडीपी घटने का सबसे बड़ा कारण क्या है?
उत्तरः- जीडीपी घटने के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन सबसे बड़ा कारण है डिमांड में कमी आना. बाजार मे मांग की कमी हुई है. स्वाभिक है जब मांग में कमी आएगी तो उत्पाद भी घटेगा. देश की जनता की क्रय शक्ति काफी घट गई है. जिसके कारण मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में भी काफी गिरावट आई है.

प्रश्न- क्या सरकार को अर्थशास्त्रियों की बात पसंद नहीं आ रही है या वह सुसना नहीं चाहते?
उत्तरः- किसी भी सरकार के पास अर्थशास्त्रियों की कमी नहीं होती है. लेकिन वह उनकी बात सुनना नहीं चाहती. कई बार अर्थशास्त्री भी सरकार के मनमाफिक सुझाव देते हैं. लोगों की सत्ता के करीब रहने की चाहत होती है. सरकार जो चाहती है उसके विपरित लोग सलाह देना नहीं चाहते हैं.

प्रश्न- क्या पूरे देश में यसमैन की प्रक्रिया चल रही है?
उत्तरः- बिल्कुल, ये बहुत घातक और नुकसान देह है. जिस देश में और जिस राज्य में सच बोलने और सच सुनने की क्षमता नहीं होती, उस समाज की गिरावट को कोई रोक नहीं सकता.

पटनाः देश में आर्थिक संकट पर अब गंभीर चर्चा होनी शुरू हो गई है. जिस तरह से लगातार जीडीपी गिरती जा रही है. कई सरकारी संस्थानों का निजीकरण किया जा रहा है, उसके बाद आर्थिक संकट गहराता दिख रहा है. बावजूद इसके सत्ता में बैठे लोग लगातार ये सफाई दे रहे हैं कि सब कुछ सामान्य है. ईटीवी भारत से हुई खास बातचीत के दौरान प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी ने देश में आए आर्थिक संकट पर गहरी चिंता जताई है. पेश है उनसे बातचीत के कुछ अंश

प्रश्न- जीडीपी लगातार घट रही है, क्या स्थिति है देश की?
उत्तरः- देश की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है. रोजगार काफी संख्या में घटा है. आर्थिक मामले में जिस सूचक के माध्यम से इसकी माप की जाती है, वह सभी आंकड़े अर्थव्यस्था में गिरावट दिखा रहे हैं. वर्तमान में जो संकट बढ़ा है उसका मुख्य कारण संसाधन की भारी कमी है. विकास दर घटकर महज 4.5 फीसदी रह गया, जो लगभग साढ़े छह साल का सबसे निचला स्तर है. देश की जनता की क्रय शक्ति काफी घट गई है. जिसके कारण मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में भी काफी गिरावट आई है.

प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी से बातचीत करते संवाददाता
प्रश्न- सरकार का कोई भी मंत्री ये मानने के लिए तैयार नहीं है, इसका क्या कारण है? उत्तरः- एक ही कारण है राजनीतिक कारण, कोई भी सरकार आर्थिक संकट को आसानी से स्वीकार नहीं करना चाहती. जिस कारण स्थिति और ज्यादा खतरनाक हो जाती है. सरकार के साथ-साथ नौकरशाहों का भी घमंड देश के हालात को और गंभीर बना रहा है. सरकार में काम कर रहे लोग सिर्फ 'यसमैन' बने हुए हैं. सरकार आर्थिक सलाहकारों और विशेषज्ञों से सच सुनना नहीं चाहती है.

प्रश्न- अर्थव्यवस्था में इतनी गिरावट के बावजूद सरकार अर्थशास्त्रियों से संपर्क नहीं कर रही है?
उत्तरः- सरकार में घमंड आ गया है. सरकार आर्थिक सलाहकारों और विशेषज्ञों से सच सुनना नहीं चाहती है. सत्ता में बैठे लोग दूसरे की बात नहीं सुनते. इससे भी दुखद है कि वे जनता की आवाज को भी अनसुना करते हैं. कई बार सत्ता में बैठे लोग सत्ता के दलालों से भी प्रभावित होते हैं. यह बात सिर्फ वर्तमान सरकार पर ही नहीं बल्कि पूर्व की सरकारों पर भी लागू होती है. वर्तमान कि मोदी सरकार को प्रचंड बहुमत मिला है. इसलिए इनके पास सत्ता का गुरूर और अधिक हो गया है.

प्रश्न- सरकारी उपकरण बेचे जा रहे हैं, अपको क्या लगता है, सरकार का सही कदम है?
उत्तरः- 1991 से कांग्रेस की यूपीए और भाजपा की एनडीए सरकार एक ही नीति पर चल रही है. वह नीति है उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की. आर्थिक दर्शन का एक बड़ा पक्ष है निजीकरण, जो बैकग्राउंड में पहले से ही चल रहा है. लेकिन वर्तमान में जो संकट बढ़ा है उसका मुख्य कारण संसाधन की भारी कमी है.

प्रश्न- जीडीपी घटने का सबसे बड़ा कारण क्या है?
उत्तरः- जीडीपी घटने के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन सबसे बड़ा कारण है डिमांड में कमी आना. बाजार मे मांग की कमी हुई है. स्वाभिक है जब मांग में कमी आएगी तो उत्पाद भी घटेगा. देश की जनता की क्रय शक्ति काफी घट गई है. जिसके कारण मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में भी काफी गिरावट आई है.

प्रश्न- क्या सरकार को अर्थशास्त्रियों की बात पसंद नहीं आ रही है या वह सुसना नहीं चाहते?
उत्तरः- किसी भी सरकार के पास अर्थशास्त्रियों की कमी नहीं होती है. लेकिन वह उनकी बात सुनना नहीं चाहती. कई बार अर्थशास्त्री भी सरकार के मनमाफिक सुझाव देते हैं. लोगों की सत्ता के करीब रहने की चाहत होती है. सरकार जो चाहती है उसके विपरित लोग सलाह देना नहीं चाहते हैं.

प्रश्न- क्या पूरे देश में यसमैन की प्रक्रिया चल रही है?
उत्तरः- बिल्कुल, ये बहुत घातक और नुकसान देह है. जिस देश में और जिस राज्य में सच बोलने और सच सुनने की क्षमता नहीं होती, उस समाज की गिरावट को कोई रोक नहीं सकता.

Intro:सत्ता के घमंड में देश का हो रहा बंटाधार। सरकार में काम कर रहे लोग सिर्फ बने हैं YESMAN
सरकार आर्थिक सलाहकारों और विशेषज्ञों से नहीं सुनना चाहते हैं सच।
यह कहना है प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी का।
देश में आर्थिक संकट पर अब गंभीर चर्चा होनी शुरू हो गई है। जिस तरह से लगातार जीडीपी का स्तर गिरता जा रहा है और कई सरकारी संस्थानों का निजीकरण किया जा रहा है उसके बाद आर्थिक संकट गहराता था दिखने लगा है।
हालांकि बावजूद इसके सत्ता में बैठे सत्ता लोगो द्वारा लगातार सफाई में यह कहा जा रहा कि सब कुछ सामान्य है।


Body:प्रोफ़ेसर चौधरी कहते हैं कि कोई भी सरकार आर्थिक संकट को आसानी से स्वीकार नहीं करना चाहती। जिसके कारण स्थितियां ज्यादा खतरनाक हो जा रही है। देश की जनता का क्रय शक्ति काफी घट गया है। जिसके कारण मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में भी काफी गिरावट आई है।
देश में रोजगार काफी संख्या में घटा है। आर्थिक मामले में जो भी सूचक के माध्यम से इसका माफ किया जाता है वह सभी वर्तमान सरकार के खिलाफ है।

अर्थशास्त्री नवल चौधरी का कहना है कि सरकार के साथ-साथ नौकरशाहों का भी घमंड देश के हालात को खतरनाक और गंभीर बना रहा है। क्योंकि सत्ता में बैठे यह लोग किसी दूसरे की बात नहीं सुनते।
वे विपक्षी पार्टियों की बात सुनते हैं और इससे भी दुखद है कि वे जनता की आवाज को भी अनसुना कर रहे हैं। कई बार सत्ता में बैठे लोग सत्ता के दलालों के द्वारा प्रभावित भी होते हैं। हालांकि प्रो. चौधरी कहते हैं कि यह बात सिर्फ वर्तमान सरकार पर ही नहीं बल्कि पूर्व की सरकारों पर भी लागू होती है। हालांकि वे कहते हैं कि वर्तमान कि मोदी सरकार को प्रचंड बहुमत मिला है। इसलिए इनके पास सत्ता का गुरूर और अधिक हो गया है।



Conclusion:अर्थशास्त्री नवल चौधरी कहते हैं कि किसी भी सरकार के पास अर्थशास्त्रियों की कमी नहीं होती है। लेकिन सत्ता के घमंड के कारण अर्थशास्त्री भी सरकार के मनमाफिक सुझाव देते है।
सरकारी संस्थानों और उपकरणों के निजीकरण के सवाल पर प्रोफ़ेसर चौधरी कहते हैं।
1991 से कांग्रेस की यूपीए और भाजपा की एनडीए सरकार एक ही नीति पर चल रही है। और वह नीति है उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की। आर्थिक दर्शन का एक बड़ा पक्ष है निजीकरण जो बैकग्राउंड में पहले से ही चल रहा है।
लेकिन वर्तमान में जो संकट बड़ा है उसका मुख्य कारण संसाधन की भारी कमी है।

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