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वट सावित्री व्रत: कोरोना के चलते महिलाओं ने घर पर ही की पूजा-अर्चना - bihar news update

जिले में सुहागन महिलाओं ने पति की लंबी उम्र के लिए विधि-विधान के साथ वट सावित्रि पूजा की. कोरोना संक्रमण के कारण ज्यादातर महिलाओं ने घर में ही पूजा की.

पटना
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Published : Jun 10, 2021, 11:47 AM IST

पटना: कोरोना संक्रमण ( Corona Infection ) के कारण ज्यादातर महिलाओं ने वट सावित्रि की पूजा ( Vat Savitri Puja ) ने घर पर ही की. महिलाओं ने वट वृक्ष में अखंड सुहाग के लिये रक्षा सूत्र बांधते हुए मंगलकामना की. महिलाएं ये व्रत पति की लंबी उम्र के लिए करती है. वट सावित्री की पूजा में विशेष तौर पर बांस से बनी टोकरी और पंखे का इस्तेमाल किया जाता है. यह पूजा बरगद के पेड़ के नीचे का जाती है.

ये भी पढ़ें : मसौढ़ी में पति की लंबी उम्र और परिवार की समृद्धि के लिए किया जा रहा वट सावित्री व्रत

बरगद के पेड़ की पूजा का है विशेष प्रावधान
हिन्दू धर्म में वट सावित्री पर्व का खास महत्व होता है. इसे सुहागन महिलाएं सौभाग्य, संतान और पति की लंबी आयु के लिए करती हैं. यह पर्व सती सावित्री और सत्यवान की कथा जुड़ा है. इसलिए इस पर्व को वट सावित्री के नाम से जाना जाता है.

सदियों से चली आ रही परंपरा
पौराणिक कथा के अनुसार, इस दिन सावित्री अपने ढृढ़ संकल्प और श्रद्धा से यमराज द्वारा अपने मृत पति सत्यवान के प्राण वापस ले आई. सुहागन महिलाएं इसी संकल्प के साथ अपने पति की आयु और प्राण की रक्षा के लिए व्रत रखकर निष्ठापूर्वक विधी-विधान से पूजा करती हैं ताकि उनके वैवाहिक जीवन में किसी प्रकार की विघ्नता उत्पन्न न हो. कहा जाता है कि ज्येष्ठ अमावस्या के दिन वट वृक्ष की परिक्रमा करने पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश, सुहागनों को सदा सौभाग्यवती होने का वरदान देते हैं.

पटना: कोरोना संक्रमण ( Corona Infection ) के कारण ज्यादातर महिलाओं ने वट सावित्रि की पूजा ( Vat Savitri Puja ) ने घर पर ही की. महिलाओं ने वट वृक्ष में अखंड सुहाग के लिये रक्षा सूत्र बांधते हुए मंगलकामना की. महिलाएं ये व्रत पति की लंबी उम्र के लिए करती है. वट सावित्री की पूजा में विशेष तौर पर बांस से बनी टोकरी और पंखे का इस्तेमाल किया जाता है. यह पूजा बरगद के पेड़ के नीचे का जाती है.

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बरगद के पेड़ की पूजा का है विशेष प्रावधान
हिन्दू धर्म में वट सावित्री पर्व का खास महत्व होता है. इसे सुहागन महिलाएं सौभाग्य, संतान और पति की लंबी आयु के लिए करती हैं. यह पर्व सती सावित्री और सत्यवान की कथा जुड़ा है. इसलिए इस पर्व को वट सावित्री के नाम से जाना जाता है.

सदियों से चली आ रही परंपरा
पौराणिक कथा के अनुसार, इस दिन सावित्री अपने ढृढ़ संकल्प और श्रद्धा से यमराज द्वारा अपने मृत पति सत्यवान के प्राण वापस ले आई. सुहागन महिलाएं इसी संकल्प के साथ अपने पति की आयु और प्राण की रक्षा के लिए व्रत रखकर निष्ठापूर्वक विधी-विधान से पूजा करती हैं ताकि उनके वैवाहिक जीवन में किसी प्रकार की विघ्नता उत्पन्न न हो. कहा जाता है कि ज्येष्ठ अमावस्या के दिन वट वृक्ष की परिक्रमा करने पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश, सुहागनों को सदा सौभाग्यवती होने का वरदान देते हैं.

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