पटना: ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर एक व्यापक शब्द है जिसका उपयोग न्यूरोडेवलपमेंटल विकारों के एक समूह का वर्णन करने के लिए किया जाता है. एएसडी वाले लोगों में अक्सर प्रतिबंधित, दोहराव और रूढ़िबद्ध व्यवहार के पैटर्न का प्रदर्शन देखने को मिलता है. ऑटिज्म के लक्षण बचपन में बच्चों में देखने को मिल जाते हैं और अगर समय पर इसका ध्यान दिया जाए तो यह विकार दूर हो सकता है.
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लॉकडाउन से बच्चों की गतिविधि रुकी
पटना के पीएमसीएच में मनोचिकित्सा विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉक्टर नरेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि लॉकडाउन के कारण स्कूल बंद हुए उसके बाद से बच्चों की बाहरी गतिविधि रुक गई. ऐसे में बच्चे घर के अंदर सीमित रहने वाले हो गए हैं. जिन बच्चों में ऑटिज्म की शिकायत थी वह और ज्यादा बढ़ गई है क्योंकि माता-पिता मोबाइल में बिजी रह रहे हैं और बच्चों के हाथ में भी मोबाइल थमा दिए हैं. बच्चे अपने समझ से उन्हें जो जानकारी उन्हें पसंद आ रही है वह जानकारी ले रहे हैं. ऐसे में वह कई ऐसी जानकारी भी प्राप्त कर रहे हैं जो उनके लिए खतरनाक हो सकती है और उनके लिए जरूरी नहीं है.
खुलकर बातें नहीं कह पाते
जिन बच्चों को ऑटिज्म की समस्या है उनके माता-पिता को चाहिए कि वह अपने प्रेम से बच्चों को बांधे ताकि यह समस्या गंभीर ना हो और ठीक हो जाए. डॉक्टर नरेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि जिन बच्चों में ऑटिज्म की शिकायत होती है उनमें यह देखने को मिला है कि उनका आईक्यू लेवल काफी मजबूत होता है मगर वह किसी एक डायरेक्शन में होता है. ऐसे बच्चे खुलकर साफ-साफ अपनी बातों को नहीं कह पाते और आंख से आंख मिलाकर बात नहीं कर पाते हैं.
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मनोचिकित्सक से संपर्क करें
डॉक्टर नरेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि जब बच्चे बड़े होने शुरू होते हैं तब माता-पिता को उनके स्वभाव पर गौर करना चाहिए. आज का विज्ञान काफी विकसित हो चुका है और बच्चों में अगर ऐसी कुछ समस्या नजर आती है तो माता-पिता को चाहिए कि पूरा मनोचिकित्सक से संपर्क करें. पुरानी मानसिकता को बाहर निकाले की मनोचिकित्सक के पास जाने से लोग कुछ कहेंगे. मनोचिकित्सक अगर प्रॉपर काउंसलिंग करते हैं और जो दवा देते हैं उसका अगर बच्चे सेवन करते हैं तो निश्चित रूप से धीरे-धीरे समय के साथ ही अधिकार काफी हद तक खत्म हो जाता है.