ETV Bharat / state

भारत में डॉल्फिन की आधी आबादी बिहार की गंगा में, राज्य में संरक्षण कार्य का पड़ा असर

बिहार में डॉल्फिन संरक्षण से काफी लाभ हुआ है. डॉल्फिन को राष्ट्रीय जलीय जंतु घोषित किया गया, उसके बाद बिहार में इसके संरक्षण के लिए विशेष उपाय किए गए. अगर नदियों को बचा कर रखा जाए, तो डॉल्फिन का अस्तित्व बिहार में हमेशा बरकरार रहेगा. इस बारे में डॉल्फिन मैन कहे जानेवाले आरके सिन्हा ने कई जानकारियां दीं. पढ़ें रिपोर्ट...

डॉल्फिन से बिहार का प्यार
डॉल्फिन से बिहार का प्यार
author img

By

Published : Oct 6, 2021, 11:03 PM IST

पटना: 'जब-जब नदियां खत्म हुई हैं, पूरी सभ्यता खत्म हो गई है. इसलिए नदियों को बचाना होगा. जब नदियां बचेंगी, तभी हम अपनी डॉल्फिन (Dolphin in Ganga River) को बचा पाएंगे.' यह कहना है पद्मश्री आरके सिन्हा (RK Sinha) का, जिन्हें लोग डॉल्फिन मैन (Dolphin Man) भी कहते हैं. उनका मानना है कि भारत के राष्ट्रीय जलीय जीव को बचाने के लिए नदियों में पानी की उपलब्धता और नदियों को गंदा करने से रोकना जरूरी है. बिहार में डॉल्फिन के संरक्षण के लिए कई कार्य हुए हैं. मछुआरों तक को जागरूक किया गया है. तभी बिहार में डॉल्फिन की संख्या ज्यादा है.

यह भी पढ़ें- PU में डॉल्फिन पर रिसर्च सेंटर का शुभारंभ, मंत्री नीरज सिंह ने किया उद्घाटन

डॉल्फिन मैन पद्मश्री आरके सिन्हा ने कहा कि वर्ष 2009 में केंद्र सरकार ने गांगेय डॉल्फिन (सोंस) को राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया था. तब गंगा की डॉल्फिन जिसे हम सोंस के नाम से भी जानते हैं, विलुप्त होने के कगार पर थी. लोगों को जानकारी नहीं होने की वजह से वह मछली समझ कर इसका शिकार करते थे. लेकिन जब से इसे राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया गया, उसके बाद जागरुकता अभियान चलाया गया.

देखें वीडियो

उन्होंने बताया कि बिहार में विशेष रूप से मछुआरों को इसके बारे में जानकारी दी गई. भागलपुर और पटना में सोंस के संरक्षण के कई उपाय किए गए. जिसके सकारात्मक परिणाम अब देखने को मिल रहे हैं. तब और आज में इतना फर्क आया है कि अब गांगेय डॉल्फिन की संख्या करीब 4000 तक पहुंच गई है. इसमें से 80 फीसदी डॉल्फिन भारत में है. उनमें से भी आधी से ज्यादा डॉल्फिन बिहार की नदियों में है.

'राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित करने के बाद गंगा की सेहत की कहानी कहने वाली डॉल्फिन की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. लेकिन हमें इसके लिए निरंतर काम करना होगा. सबसे महत्वपूर्ण कदम जो हमें उठाना है, वह है नदियों का संरक्षण. बिहार में नदियों की संख्या ज्यादा है और उन नदियों में पानी रहता है. जिसकी वजह से बिहार में डॉल्फिन की संख्या भी ज्यादा है. लेकिन हमें नदियों को मरने से बचाना होगा. तभी हम डॉल्फिन को बचा पाएंगे. बिहार की नदियों का पानी लगातार कम हो रहा है. क्योंकि उन पर बड़ी संख्या में तटबंध और बराज बना दिए गए हैं. नदियों में गंदा पानी गिरता है जिसकी वजह से मछलियों की संख्या तेजी से कम हो रही है. इस ओर हमें काम करना होगा और सोचना होगा.' -पद्मश्री आरके सिन्हा, डॉल्फिन मैन

'डॉल्फिन का इतिहास करोड़ों साल पुराना है. उसके बाद इंसान इस धरती पर आए. लेकिन पिछले कुछ सालों में इंसानों ने ही डॉल्फिन की पूरी प्रजाति को विलुप्त होने के कगार पर पहुंचा दिया है. नदियों की अच्छी सेहत की एक निशानी यह भी है कि उस नदी में डॉल्फिन की मौजूदगी है. जिसे मछुआरे भी मानते हैं. इसलिए डॉल्फिन का रहना बेहद जरूरी है. हमें इसके संरक्षण के लिए लगातार प्रयास जारी रखना होगा.' -दीपक कुमार सिंह, प्रधान सचिव, वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग बिहार

बिहार में 5 और 6 अक्टूबर को डॉल्फिन दिवस के मौके पर कई कार्यक्रमों का आयोजन किया गया. जिसमें वन विभाग ने ना सिर्फ अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया. बल्कि गंगा नदी के किनारे मछुआरों के बीच जागरुकता अभियान भी चलाया गया. विभाग के मंत्री नीरज कुमार सिंह ने मछुआरों से डॉल्फिन को बचाने की अपील की है. जानकारी दें कि पद्मश्री आरके सिन्हा वैष्णो देवी विश्वविद्यालय कटरा के कुलपति हैं.

बता दें कि डॉल्फिन एकमात्र ऐसा जीव है, जो सबसे समझदार होता है. इसकी सबसे बड़ी बात यह है कि डॉल्फिन एक मछली नहीं बल्कि एक स्तनधारी प्राणी है. वहीं डॉल्फिन अकेले नहीं बल्कि 10 से 12 सदस्यों के समूह में रहना पसंद करती है. भारत में डॉल्फिन गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी में पाई जाती है.

ये भी पढ़ें : पटना: डॉल्फिन रिसर्च सेंटर ऑटोनॉमस ना होकर विश्वविद्यालय प्रबंधन के अधीन हो- रजिस्ट्रार

डॉल्फिन की एक बड़ी खासियत यह है कि यह कंपन वाली आवाज निकालती है, जो किसी भी चीज से टकराकर वापस डॉल्फिन के पास आ जाती है. इससे डॉल्फिन को पता चल जाता है कि शिकार कितना बड़ा और कितने करीब है. डॉल्फिन आवाज और सीटियों के द्वारा एक दूसरे से बात करती हैं.

यह 60 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से तैर सकती हैं. डॉल्फिन 10-15 मिनट तक पानी के अंदर रह सकती है, लेकिन वह पानी के अंदर सांस नहीं ले सकती. उसे सांस लेने के लिए पानी की सतह पर आना पड़ता है.

जानें क्या है गांगेय डॉल्फिन
गांगेय डॉल्फिन को गंगा की गाय भी कहा जाता है. इसका वैज्ञानिक नाम प्लैटनिस्टा गैंगेटिका है. ये मुख्यतया गंगा और उसकी सहायक नदियों में पाई जाती हैं. केंद्र सरकार ने इसे वर्ष 2009 में भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया था. सांस लेने के लिए सतह पर आते समय ये तेज आवाज करती हैं, इसीलिए इसे सोंस भी कहा जाता है. गांगेय डॉल्फिन ढाई से तीन मीटर लंबी और 150 किलो से ज्यादा वजनदार होती हैं. इसकी लंबी पूंछ पर फिन होते हैं, जो इसको तैरने और शिकार पकड़ने में मददगार होते हैं. इसका मुंह लंबा होता है. इसके आंखे नहीं होतीं.

ये ध्वनि तरंगों के जरिये देखने और सुनने का काम करती हैं. इसकी औसत आयु 28 वर्ष होती है और दस वर्ष की उम्र के बाद प्रजनन योग्य हो जाती हैं. अमूमन मछली की तरह होने के चलते लोग इसे मछली मान लेते हैं, लेकिन ये मछली नहीं बल्कि स्तनपायी प्राणी हैं. ये बहुत ही शर्मीला प्राणी है. इसे सांस लेने के लिए हर दो मिनट के अंतराल में पानी की सतह पर आना पड़ता है.

इसे भी पढ़ें : पटना में गंगा की छाती को चीर रहे हैं खनन माफिया, खतरे में 'डॉल्फिन' का अस्तित्व

पटना: 'जब-जब नदियां खत्म हुई हैं, पूरी सभ्यता खत्म हो गई है. इसलिए नदियों को बचाना होगा. जब नदियां बचेंगी, तभी हम अपनी डॉल्फिन (Dolphin in Ganga River) को बचा पाएंगे.' यह कहना है पद्मश्री आरके सिन्हा (RK Sinha) का, जिन्हें लोग डॉल्फिन मैन (Dolphin Man) भी कहते हैं. उनका मानना है कि भारत के राष्ट्रीय जलीय जीव को बचाने के लिए नदियों में पानी की उपलब्धता और नदियों को गंदा करने से रोकना जरूरी है. बिहार में डॉल्फिन के संरक्षण के लिए कई कार्य हुए हैं. मछुआरों तक को जागरूक किया गया है. तभी बिहार में डॉल्फिन की संख्या ज्यादा है.

यह भी पढ़ें- PU में डॉल्फिन पर रिसर्च सेंटर का शुभारंभ, मंत्री नीरज सिंह ने किया उद्घाटन

डॉल्फिन मैन पद्मश्री आरके सिन्हा ने कहा कि वर्ष 2009 में केंद्र सरकार ने गांगेय डॉल्फिन (सोंस) को राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया था. तब गंगा की डॉल्फिन जिसे हम सोंस के नाम से भी जानते हैं, विलुप्त होने के कगार पर थी. लोगों को जानकारी नहीं होने की वजह से वह मछली समझ कर इसका शिकार करते थे. लेकिन जब से इसे राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया गया, उसके बाद जागरुकता अभियान चलाया गया.

देखें वीडियो

उन्होंने बताया कि बिहार में विशेष रूप से मछुआरों को इसके बारे में जानकारी दी गई. भागलपुर और पटना में सोंस के संरक्षण के कई उपाय किए गए. जिसके सकारात्मक परिणाम अब देखने को मिल रहे हैं. तब और आज में इतना फर्क आया है कि अब गांगेय डॉल्फिन की संख्या करीब 4000 तक पहुंच गई है. इसमें से 80 फीसदी डॉल्फिन भारत में है. उनमें से भी आधी से ज्यादा डॉल्फिन बिहार की नदियों में है.

'राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित करने के बाद गंगा की सेहत की कहानी कहने वाली डॉल्फिन की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. लेकिन हमें इसके लिए निरंतर काम करना होगा. सबसे महत्वपूर्ण कदम जो हमें उठाना है, वह है नदियों का संरक्षण. बिहार में नदियों की संख्या ज्यादा है और उन नदियों में पानी रहता है. जिसकी वजह से बिहार में डॉल्फिन की संख्या भी ज्यादा है. लेकिन हमें नदियों को मरने से बचाना होगा. तभी हम डॉल्फिन को बचा पाएंगे. बिहार की नदियों का पानी लगातार कम हो रहा है. क्योंकि उन पर बड़ी संख्या में तटबंध और बराज बना दिए गए हैं. नदियों में गंदा पानी गिरता है जिसकी वजह से मछलियों की संख्या तेजी से कम हो रही है. इस ओर हमें काम करना होगा और सोचना होगा.' -पद्मश्री आरके सिन्हा, डॉल्फिन मैन

'डॉल्फिन का इतिहास करोड़ों साल पुराना है. उसके बाद इंसान इस धरती पर आए. लेकिन पिछले कुछ सालों में इंसानों ने ही डॉल्फिन की पूरी प्रजाति को विलुप्त होने के कगार पर पहुंचा दिया है. नदियों की अच्छी सेहत की एक निशानी यह भी है कि उस नदी में डॉल्फिन की मौजूदगी है. जिसे मछुआरे भी मानते हैं. इसलिए डॉल्फिन का रहना बेहद जरूरी है. हमें इसके संरक्षण के लिए लगातार प्रयास जारी रखना होगा.' -दीपक कुमार सिंह, प्रधान सचिव, वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग बिहार

बिहार में 5 और 6 अक्टूबर को डॉल्फिन दिवस के मौके पर कई कार्यक्रमों का आयोजन किया गया. जिसमें वन विभाग ने ना सिर्फ अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया. बल्कि गंगा नदी के किनारे मछुआरों के बीच जागरुकता अभियान भी चलाया गया. विभाग के मंत्री नीरज कुमार सिंह ने मछुआरों से डॉल्फिन को बचाने की अपील की है. जानकारी दें कि पद्मश्री आरके सिन्हा वैष्णो देवी विश्वविद्यालय कटरा के कुलपति हैं.

बता दें कि डॉल्फिन एकमात्र ऐसा जीव है, जो सबसे समझदार होता है. इसकी सबसे बड़ी बात यह है कि डॉल्फिन एक मछली नहीं बल्कि एक स्तनधारी प्राणी है. वहीं डॉल्फिन अकेले नहीं बल्कि 10 से 12 सदस्यों के समूह में रहना पसंद करती है. भारत में डॉल्फिन गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी में पाई जाती है.

ये भी पढ़ें : पटना: डॉल्फिन रिसर्च सेंटर ऑटोनॉमस ना होकर विश्वविद्यालय प्रबंधन के अधीन हो- रजिस्ट्रार

डॉल्फिन की एक बड़ी खासियत यह है कि यह कंपन वाली आवाज निकालती है, जो किसी भी चीज से टकराकर वापस डॉल्फिन के पास आ जाती है. इससे डॉल्फिन को पता चल जाता है कि शिकार कितना बड़ा और कितने करीब है. डॉल्फिन आवाज और सीटियों के द्वारा एक दूसरे से बात करती हैं.

यह 60 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से तैर सकती हैं. डॉल्फिन 10-15 मिनट तक पानी के अंदर रह सकती है, लेकिन वह पानी के अंदर सांस नहीं ले सकती. उसे सांस लेने के लिए पानी की सतह पर आना पड़ता है.

जानें क्या है गांगेय डॉल्फिन
गांगेय डॉल्फिन को गंगा की गाय भी कहा जाता है. इसका वैज्ञानिक नाम प्लैटनिस्टा गैंगेटिका है. ये मुख्यतया गंगा और उसकी सहायक नदियों में पाई जाती हैं. केंद्र सरकार ने इसे वर्ष 2009 में भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया था. सांस लेने के लिए सतह पर आते समय ये तेज आवाज करती हैं, इसीलिए इसे सोंस भी कहा जाता है. गांगेय डॉल्फिन ढाई से तीन मीटर लंबी और 150 किलो से ज्यादा वजनदार होती हैं. इसकी लंबी पूंछ पर फिन होते हैं, जो इसको तैरने और शिकार पकड़ने में मददगार होते हैं. इसका मुंह लंबा होता है. इसके आंखे नहीं होतीं.

ये ध्वनि तरंगों के जरिये देखने और सुनने का काम करती हैं. इसकी औसत आयु 28 वर्ष होती है और दस वर्ष की उम्र के बाद प्रजनन योग्य हो जाती हैं. अमूमन मछली की तरह होने के चलते लोग इसे मछली मान लेते हैं, लेकिन ये मछली नहीं बल्कि स्तनपायी प्राणी हैं. ये बहुत ही शर्मीला प्राणी है. इसे सांस लेने के लिए हर दो मिनट के अंतराल में पानी की सतह पर आना पड़ता है.

इसे भी पढ़ें : पटना में गंगा की छाती को चीर रहे हैं खनन माफिया, खतरे में 'डॉल्फिन' का अस्तित्व

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.