पटना: कहते हैं उड़ान भरने की तमन्ना हो तो पंख की कमी बाधा नहीं बनती और बुलंद हौसलों से आसमान की ऊंचाई मापी जा सकती है. यह कहावत चरितार्थ कर रहे हैं, बिहार के पटना जिले के बख्तियारपुर (Santosh Kumar Mishra Of Bakhtiarpur Patna) के रहने वाले दिव्यांग खिलाड़ी संतोष कुमार मिश्रा. संतोष ने साल 2004 से 2021 तक विभिन्न पैरालंपिक खेलों (Divyang Player Of Bihar Won 95 Medals ) में कुल 95 राज्य स्तरीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पदक प्राप्त किया है.
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संतोष के बाएं पैर में बचपन से पोलियो है, लेकिन कुछ बड़ा कर गुजरने की तमन्ना थी और खेल में बहुत अधिक रूचि होने के कारण संतोष (Paralympic Player Of Patna) ने कड़ी मेहनत से खेल जगत में अपनी पहचान बनाई है. साल 2004 में बिहार में पैरालंपिक गेम की शुरुआत हुई. संतोष ने उसी साल से विभिन्न खेलों में भाग लेना शुरू कर दिया था. दिव्यांग होने के बावजूद संतोष पैरालंपिक खेलों में नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर बिहार का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. संतोष की तमन्ना है कि, वह जल्द 100 मेडल लाकर मेडल में अपना सैकड़ा पूरा करें.
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ईटीवी भारत से खास बातचीत में संतोष ने बताया कि, साल 2004 से जब से बिहार में पैरा गेम्स का आयोजन शुरू हुआ तब से वह विभिन्न खेलों में भाग ले रहे हैं. अभी तक कई खेल विधाओं में काफी संख्या में गोल्ड मेडल प्राप्त कर चुके हैं. उनकी हालिया उपलब्धि यह है कि, इस वर्ष अक्टूबर के आखिरी सप्ताह में केरल में नेशनल लेवल का प्रथम पैरा मास्टर्स गेम हुआ, जिसमें उन्होंने तीन खेल में बिहार का प्रतिनिधित्व किया और तीनों में गोल्ड मेडल हासिल किया.
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"जैवलिन थ्रो, डिस्कस थ्रो और 100 मीटर की रेस में मैंने गोल्ड मेडल हासिल किया है और बिहार का नाम ऊंचा किया है. अब तक कुल 95 मेडल जीत चुका हूं और तमन्ना है कि, मेडल में अपना शतक पूरा करूं. ओलंपिक एशियन गेम्स के लिए मेरा चयन होना चाहिए था,जो नहीं हुआ. अगर मेरा चयन हुआ होता तो, मैं कई मेडल देश को जीत कर देता."- संतोष कुमार मिश्रा, दिव्यांग खिलाड़ी
संतोष ने बताया कि, बिहार सरकार से उनकी कुछ नाराजगी भी है. 'एक बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मेडल लाने के बावजूद और कई बार राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न खेलों में गोल्ड मेडल लाने के बावजूद बिहार पैरा गेम्स एसोसिएशन की तरफ से मेरा नाम ओलंपिक के लिए चयन होने वाली टीम में रिकॉमेंड नहीं किया गया.'
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उन्होंने कहा कि, प्रदेश के पैरालंपिक खेल के भूत पूर्व कमिश्नर शिवाजी की वजह से उन्हें यह सब झेलना पड़ा. संतोष ने बताया कि, हर साल वह राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न खेल विधाओं में कई गोल्ड मेडल हासिल करते हैं लेकिन, जब ओलंपिक की बारी आती है तब प्रदेश से उनका नाम नहीं भेजा जाता.
सरकार की योजना का नहीं मिला फायदा: संतोष का कहना है कि, 'जब खिलाड़ियों को मेडल के आधार पर सरकारी नौकरी की सरकार ने घोषणा की, तब भी उस वक्त के प्रदेश के पैरा गेम्स के भूतपूर्व कमिश्नर शिवाजी ने की वजह से मेरी सरकारी नौकरी नहीं लगी. जब भी खिलाड़ियों के लिए सरकारी नौकरी की वैकेंसी निकलती है, तब अप्लाई करता हूं.सभी अहर्ता पूरा करने के बावजूद अभी तक सड़क पर दर बदर भटक रहे हैं.'
संतोष ने बताया कि, इन सब तमाम परिस्थितियों के बावजूद भी अभी उनका लक्ष्य मेडल में सैकड़ा पूरा करने का है. इसके लिए वह दिसंबर के आखिरी सप्ताह में राजस्थान के पुष्कर में आयोजित होने वाले पैरा नेशनल कबड्डी टूर्नामेंट में बिहार का प्रतिनिधित्व करने जा रहे हैं. संतोष का मानना है कि, जीवन में जब तक जिए देश और प्रदेश के लिए अच्छा कार्य करें, चाहे वह खेल का क्षेत्र हो या चाहे कोई अन्य क्षेत्र हो.
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