ETV Bharat / state

इन तीन अहम मुद्दों पर BJP और JDU में रार, क्या नीतीश कुमार खो रहे हैं जनाधार?

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के सामने तीन मांगे प्रत्यक्ष रूप से रखी हैं, लेकिन अब नीतीश कुमार का रसूख एनडीए-2 में पहले जैसा नहीं रहा है, जिसके चलते नीतीश कुमार की मांगों को बीजेपी ने गंभीरता से नहीं लिया है. पढ़ें रिपोर्ट..

पटना
पटना
author img

By

Published : Oct 13, 2021, 7:19 AM IST

पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) लंबे समय से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (National Democratic Alliance) का हिस्सा हैं. एनडीए-1 में नीतीश कुमार राजनीतिक तौर पर मजबूत थे, लेकिन एनडीए-2 में नीतीश कुमार पहले की तरह शक्तिशाली नहीं रहे. इसी का नतीजा है कि बीजेपी मुख्यमंत्री की मांगों को अनसुना कर रही है. ऐसे में अब जदयू के समक्ष वोट बैंक बचाने की चुनौती है.

ये भी पढ़ें- आरसीपी सिंह के मंत्रालय में हिन्दी सलाहकार बने चिराग.. सियासी गलियारे में मचा बवाल

बीजेपी और जदयू के बीच 27 साल पुराना गठबंधन है. नीतीश कुमार लंबे समय से बीजेपी के साथ राजनीति कर रहे हैं. 2015 में नीतीश कुमार ने एनडीए को छोड़ महागठबंधन का दामन थाम लिया था और फिर जुलाई 2017 में नीतीश कुमार की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में वापसी हुई. एनडीए-2 में नीतीश कुमार को कई चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है.

देखें रिपोर्ट

''नीतीश कुमार एनडीए में अब उतने शक्तिशाली नहीं रहे हैं. बीजेपी की ओर से तमाम मांगों को नकार दिया गया है. कई बार तो नीतीश कुमार की हुई मांगों से पीछे हटते दिखे. नीतीश कुमार मुद्दों का राजनीतिकरण करते रहे हैं. मांगों को लेकर ठोस रणनीति पर काम नहीं रहे, जिसके चलते वह राजनीतिक तौर पर कमजोर होते चले गए.''-कौशलेंद्र प्रियदर्शन, वरिष्ठ पत्रकार

ये भी पढ़ें- खुद को साबित करने की कोशिश में तेज प्रताप, लालू के आने से पहले बदल गए RJD नेताओं के तेवर

''स्पेशल स्टेटस हमारी पुरानी मांग है और हम मांग करते रहेंगे हमारी कई नीतियों को देश में अपनाया है और नीतीश कुमार के विज़न के बदौलत बिहार लीडर की भूमिका में है''- अरविंद निषाद, जदयू प्रवक्ता

दूसरी पाली में नीतीश कुमार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में वापस तो आए, लेकिन उनका रसूख पहले की तरह नहीं रहा है. नीतीश कुमार ने पीएम नरेंद्र मोदी के समक्ष तीन प्रमुख मांगों को रखा है. बिहार को विशेष राज्य का दर्जा, पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा और जातिगत जनगणना के मसले पर नीतीश कुमार प्रधानमंत्री से व्यक्तिगत तौर पर अनुरोध कर चुके हैं, लेकिन नीतीश कुमार की मांगों को बीजेपी ने गंभीरता से नहीं लिया.

ये भी पढ़ें- तेजस्वी की अगुवाई में RJD की बैठक, नेताओं को दशहरा बाद चुनावी क्षेत्रों में कैंप करने का मिला टास्क

''पीएम मोदी ने बिहार को विशेष पैकेज दिया. प्रधानमंत्री बिहार की चिंता करते हैं. स्पेशल स्टेटस को कांग्रेस ने ही नकार दिया था. जातिगत जनगणना का सवाल है तो राज्य सरकार जातिगत जनगणना कराने के लिए स्वतंत्र है, वह चाहे तो करा सकती है.''- अरविंद सिंह, बीजेपी प्रवक्ता

नीतीश कुमार की पार्टी के पास 16% का वोट बैंक है और जदयू के समक्ष वोट बैंक बचाने की चुनौती है. हालिया विधानसभा में जिस तरीके का प्रदर्शन रहा है उससे जदयू नेताओं की चिंता बढ़ गई है. विधानसभा चुनाव में नीतीश की पार्टी 43 सीटों पर सिमट गई. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एनडीए में अलग तरह की परेशानी झेल रहे हैं. उनकी सबसे बड़ी समस्या यह है कि अपनी पार्टी जदयू के वोट बैंक को कैसे बचाया जाए. जदयू के वोट बैंक में इजाफा तो नहीं हुआ, लेकिन विधानसभा में सीटें जरूर कम हो गई. काफी नेताओं को अब यह डर भी सता रहा है कि वोटर धीरे-धीरे उन्हें छोड़ ना दें.

केंद्र की सरकार ने नीतीश कुमार की मांगों को अनसुना कर दिया. बिहार को ना तो विशेष राज्य का दर्जा मिला और ना ही पटना विश्वविद्यालय सेंट्रल यूनिवर्सिटी में तब्दील हुई, जातिगत जनगणना पर केंद्र सरकार ने गेंद नीतीश कुमार के पाले में डाल दी. जदयू नेताओं को अब यह डर सताने लगा है कि अब उनके वोटर भी छिटक सकते हैं.

पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) लंबे समय से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (National Democratic Alliance) का हिस्सा हैं. एनडीए-1 में नीतीश कुमार राजनीतिक तौर पर मजबूत थे, लेकिन एनडीए-2 में नीतीश कुमार पहले की तरह शक्तिशाली नहीं रहे. इसी का नतीजा है कि बीजेपी मुख्यमंत्री की मांगों को अनसुना कर रही है. ऐसे में अब जदयू के समक्ष वोट बैंक बचाने की चुनौती है.

ये भी पढ़ें- आरसीपी सिंह के मंत्रालय में हिन्दी सलाहकार बने चिराग.. सियासी गलियारे में मचा बवाल

बीजेपी और जदयू के बीच 27 साल पुराना गठबंधन है. नीतीश कुमार लंबे समय से बीजेपी के साथ राजनीति कर रहे हैं. 2015 में नीतीश कुमार ने एनडीए को छोड़ महागठबंधन का दामन थाम लिया था और फिर जुलाई 2017 में नीतीश कुमार की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में वापसी हुई. एनडीए-2 में नीतीश कुमार को कई चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है.

देखें रिपोर्ट

''नीतीश कुमार एनडीए में अब उतने शक्तिशाली नहीं रहे हैं. बीजेपी की ओर से तमाम मांगों को नकार दिया गया है. कई बार तो नीतीश कुमार की हुई मांगों से पीछे हटते दिखे. नीतीश कुमार मुद्दों का राजनीतिकरण करते रहे हैं. मांगों को लेकर ठोस रणनीति पर काम नहीं रहे, जिसके चलते वह राजनीतिक तौर पर कमजोर होते चले गए.''-कौशलेंद्र प्रियदर्शन, वरिष्ठ पत्रकार

ये भी पढ़ें- खुद को साबित करने की कोशिश में तेज प्रताप, लालू के आने से पहले बदल गए RJD नेताओं के तेवर

''स्पेशल स्टेटस हमारी पुरानी मांग है और हम मांग करते रहेंगे हमारी कई नीतियों को देश में अपनाया है और नीतीश कुमार के विज़न के बदौलत बिहार लीडर की भूमिका में है''- अरविंद निषाद, जदयू प्रवक्ता

दूसरी पाली में नीतीश कुमार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में वापस तो आए, लेकिन उनका रसूख पहले की तरह नहीं रहा है. नीतीश कुमार ने पीएम नरेंद्र मोदी के समक्ष तीन प्रमुख मांगों को रखा है. बिहार को विशेष राज्य का दर्जा, पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा और जातिगत जनगणना के मसले पर नीतीश कुमार प्रधानमंत्री से व्यक्तिगत तौर पर अनुरोध कर चुके हैं, लेकिन नीतीश कुमार की मांगों को बीजेपी ने गंभीरता से नहीं लिया.

ये भी पढ़ें- तेजस्वी की अगुवाई में RJD की बैठक, नेताओं को दशहरा बाद चुनावी क्षेत्रों में कैंप करने का मिला टास्क

''पीएम मोदी ने बिहार को विशेष पैकेज दिया. प्रधानमंत्री बिहार की चिंता करते हैं. स्पेशल स्टेटस को कांग्रेस ने ही नकार दिया था. जातिगत जनगणना का सवाल है तो राज्य सरकार जातिगत जनगणना कराने के लिए स्वतंत्र है, वह चाहे तो करा सकती है.''- अरविंद सिंह, बीजेपी प्रवक्ता

नीतीश कुमार की पार्टी के पास 16% का वोट बैंक है और जदयू के समक्ष वोट बैंक बचाने की चुनौती है. हालिया विधानसभा में जिस तरीके का प्रदर्शन रहा है उससे जदयू नेताओं की चिंता बढ़ गई है. विधानसभा चुनाव में नीतीश की पार्टी 43 सीटों पर सिमट गई. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एनडीए में अलग तरह की परेशानी झेल रहे हैं. उनकी सबसे बड़ी समस्या यह है कि अपनी पार्टी जदयू के वोट बैंक को कैसे बचाया जाए. जदयू के वोट बैंक में इजाफा तो नहीं हुआ, लेकिन विधानसभा में सीटें जरूर कम हो गई. काफी नेताओं को अब यह डर भी सता रहा है कि वोटर धीरे-धीरे उन्हें छोड़ ना दें.

केंद्र की सरकार ने नीतीश कुमार की मांगों को अनसुना कर दिया. बिहार को ना तो विशेष राज्य का दर्जा मिला और ना ही पटना विश्वविद्यालय सेंट्रल यूनिवर्सिटी में तब्दील हुई, जातिगत जनगणना पर केंद्र सरकार ने गेंद नीतीश कुमार के पाले में डाल दी. जदयू नेताओं को अब यह डर सताने लगा है कि अब उनके वोटर भी छिटक सकते हैं.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.