पटना: नीतीश सरकार 2005 से बिहार में सत्ता पर काबिज हैं और अब तक तीन-तीन पॉलिसी बिहार में उद्योग के लिए ला चुके हैं. लेकिन इसके बावजूद भी बिहार में बड़े उद्योग तो नहीं ही आए और जितनी उम्मीद छोटे उद्योग लगाने के थे, उतने नहीं लगे. उद्योगपतियों की मानें तो 2016 की औद्योगिक पॉलिसी से बेहतर 2011 और 2006 की पॉलिसी थी. इसके साथ सरकार जो पॉलिसी बनाती है उसे इंप्लीमेंट नहीं करती है.
पॉलिसी ठीक से इंप्लीमेंट नहीं करती सरकार
उद्योग के विकास के लिए बिहार में नीतीश सरकार ने पहले 2006 में, उसके बाद 2011 में और फिर 2016 में नई औद्योगिक पॉलिसी बनाई. बिहार सरकार के औद्योगिक पॉलिसी को लेकर बिहार के उद्योगपतियों में हमेशा नाराजगी रही है. बीआईए की ओर से बार-बार कहा गया कि 2016 की पॉलिसी से बेहतर 2011 और 2006 की पॉलिसी थी. वहीं, अब इसके संशोधन की बात भी पिछले 3 सालों से हो रही है. उद्योगपति और बीआईए के पूर्व अध्यक्ष केपी एस केसरी का कहना है कि सरकार जो पॉलिसी बनाती है उसको ठीक से इंप्लीमेंट नहीं करती है.
कई तरह की सब्सिडी दे रही सरकार
बिहार सरकार के उद्योग मंत्री श्याम रजक ने कहा कि बीआइए के साथ लगातार बैठकें होती रही है. सरकार उद्योग को कई तरह की सब्सिडी भी दे रही है. लेकिन बीआईए के पूर्व अध्यक्ष केपीएस केसरी की मानें तो सरकार ने कैपिटल सब्सिडी देना बंद कर दिया है और जब दे रही थी तो उस समय जरूर कई उद्योग बिहार में आए.
औद्योगिक निवेश का इंतजार
बिहार का पिछले एक दशक से ग्रोथ रेट डबल डिजिट में है. नीतीश सरकार के सत्ता में आने के बाद कानून व्यवस्था से लेकर सड़क और बिजली में भी काफी सुधार हुआ है. लेकिन उद्योगपतियों का यह भी कहना है कि यहां अन्य राज्यों की तुलना में बिजली काफी महंगी है. उद्योगपतियों की बड़ी शिकायत सरकार से मदद नहीं मिलने की है. बैंकों से भी बिहार में पूरा सहयोग नहीं मिलता है और टैक्स में भी छूट नहीं मिल रही है. नीतीश कुमार शायद इसलिए केंद्र से लंबे समय से बिहार को विशेष दर्जा देने की मांग करते रहे हैं. जिससे टैक्स में उद्योगपतियों को राहत मिले. लेकिन केंद्र ने अब तक मांग पूरी नहीं की है और बिहार अभी बड़े औद्योगिक निवेश का इंतजार कर रहा है.