पटना: बिहार में गंगा, सोन, कोसी पर कई मेगा ब्रिज बन रहे हैं. गंगा नदी पर ही करीब एक दर्जन पुल बनने वाले हैं. जिनमें से कुछ का निर्माण पूरा होने वाला है तो कुछ पुलों का निर्माण कार्य शुरू होने वाला है. अधिकांश बड़े प्रोजेक्ट लेटलतीफी के शिकार हो रहे हैं. इसके चलते योजनाओं का खर्च भी लगातार बढ़ता जा रहा है. इन पुलों से बिहार की तस्वीर कितनी बदलेगी यह तो वक्त ही बताएगा. लेकिन तय समय पर लक्ष्य पूरा नहीं होने के चलते मेगा ब्रिज प्रोजेक्ट सवालों के घेरे में आ चुका है.
बिहार में नदियों पर बनाये जा रहे फोर लेन और सिक्स लेन मेगा पुलों से बिहार की तस्वीर बदलने की तैयारी बिहार सरकार कर रही है. लेकिन कई पुलों के तैयार होने का जो लक्ष्य निर्धारित किया गया था. उससे वह काफी पीछे है. जिस कारण कॉस्ट भी काफी बढ़ रहा है. कुछ प्रमुख बड़े पुलों का निर्माण जो तय समय से पूरा नहीं हो रहा है.
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मेगा ब्रिज से बदलेगी बिहार की तस्वीर-
1. कच्ची दरगाह-बिदुपुर छह लेन पुल 16 फरवरी 2017 में निर्माण शुरू हुआ था. शुरूआत में इसके कार्य पूरा होने का लक्ष्य जनवरी 2021 रखा गया. जिसे अब बढ़ाकर दिसंबर 2021 कर दिया गया है. वहीं, निर्माण कार्य के प्रारंभ में इसके लगात का आकलन 3115 करोड़ किया गया था. लेकिन खर्च का अनुमान अब 5000 करोड़ होने को है.
2. बख्तियारपुर-ताजपुर चार लेन पुल का निर्माण 30 नवंबर 2011 को शुरू हुआ था. वहीं, कार्य पूरा होने की तिथि 31 जुलाई 2019 रखा गया था. लेकिन अब इसके निर्माण कार्य के पूरा होने का लक्ष्य 31 मई 2020 रखा गया है. शुरू में इसके निर्माण का आकलन 1500 करोड़ रखा गया. लेकिन अब इसकी लागत 1700 करोड़ से अधिक होने का अनुमान है.
3. महात्मा गांधी सेतु के जीर्णोद्धार का कार्य एक 1383 करोड़ में टेंडर हुआ था. इसमें सुपरस्ट्रक्चर बदलना था. जिसके लिए 1742 करोड़ स्वीकृत हुआ. इसके पूरा होने का लक्ष्य 2018 में ही तय किया गया था. लेकिन सुपरस्ट्रक्चर को काटने में ही समय हो गया कि लक्ष्य समय सीमा के गुजरे दो साल हो चुके हैं. लेकिन अब तक इसका एक ही भाग चालू हुआ है. वहीं, खर्च राशि के बढ़ने का भी अनुमान बताया जा रहा है.
4. दीघा-दीदारगंज गंगा पथ की शुरुआत 2013 में हुई थी. उस समय इसके खर्च का आकलन 1800 करोड़ के आसपास रखा गया था और कार्य पूरा होने की तिथि 2017 तय की गई थी. लेकिन अब इस पर 5000 करोड़ खर्च होने का अनुमान है और 2022 में अब पूरा होने का लक्ष्य है.
5. गांधी सेतु के समानांतर चार लेन पुल का निर्माण 2020 बीच में ही शुरू होना था. लेकिन चीनी कंपनियों की दिलचस्पी के कारण पहले टेंडर रद्द किया गया फिर नया टेंडर जारी हुआ और अब इस साल निर्माण शुरू होने की बात सामने आ रही है. पहले इस पुल के निर्माण पर 1900 करोड़ का प्राक्कलन किया गया था. लेकिन अब 2900 करोड़ के आसपास खर्च होने का अनुमान है.
6. मनिहारी-साहिबगंज के बीच गंगा पर पुल निर्माण की चर्चा पिछले कई सालों से हो रही है. चार लेन पुल के निर्माण पर अभी 1900 करोड़ पर खर्च होने का अनुमान लगाया गया है लेकिन इसका काम भी बहुत आगे नहीं बढ़ा है.
7. कोईलवर में सोन नदी पर बन रहा सिक्स लेन का पुल भी अभी पूरा होने में समय लगेगा. इसके 3 लाइन का निर्माण पूरा हो गया है. वहीं, उद्घाटन भी हो चुका है.
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सरकार को तय समय से प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए अपना मौकेनिज्म विकसित कर लेना चाहिए
वहीं, इस मामले में ए एन सिन्हा इंस्टिट्यूट के विशेषज्ञ डीएम दिवाकर का कहना है प्रोजेक्ट का कॉस्ट बढ़ने के पीछे कई कारण होते हैं. सही ढंग से मॉनिटरिंग नहीं करने से लेकर जमीन अधिग्रहण तक की समस्या है. वहीं, धनराशि के अभाव में बड़े प्रोजेक्ट के निर्माण शुरू होने में भी विलंब होता है. वहीं, इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडे का कहना है विकास के लिए बिजली और सड़क महत्वपूर्ण माना जाता है. यदि पुलों का निर्माण हो रहा है तो यह अच्छा सूचक है. लेकिन चिंता तय समय में पूरा नहीं होना और लगातार कॉस्ट बढ़ना है. इससे निपटने के लिये सरकार को मैकेनिज्म विकसित करना चाहिए.
पीडब्लूडी विभाग एनडीए की सरकार में बीजेपी के पास रहा है
बता दें कि एनडीए सरकार बनने के बाद से पथ निर्माण विभाग लगातार बीजेपी मंत्रियों के पास ही रहा है. पथ निर्माण में बिहार सरकार ने सबसे ज्यादा राशि खर्च की है. सड़कें बेहतर भी हुई हैं. लेकिन बड़े प्रोजेक्ट के लगातार विलंब होने और कॉस्ट राशि बढ़ने से चुनौती भी बढ़ी है. बीजेपी प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल का कहना है बड़े प्रोजेक्ट में बाहरी कंपनियों के कारण विलंब होता रहा है. हालांकि अब इसमें काफी सुधार है और गति में तेजी आई है.
पथ निर्माण विभाग के अधिकांश प्रोजेक्ट लेटलतीफी के शिकार
नदियों पर बने रहे मेगा ब्रिज के अलावे पथ निर्माण विभाग के बड़े प्रोजेक्ट का भी हाल कमोबेश यही है. कहीं एजेंसी बीच में ही काम छोड़ कर भाग गए उसके कारण विलंब हो रहा है तो कई योजनाओं में डीपीआर बनाने से लेकर पूरी प्रक्रिया पूरा करने में ही लंबा समय लग रहा है.