पटना: आलू के बिना ज्यादातर सब्जियां अधूरी मानी जाती है. यह एक ऐसी सब्जी है जो पूरे साल उपलब्ध रहती है, इसलिए इसे सब्जियों का राजा कहा जाता है. इन दिनों बिहार की राजधानी पटना के ग्रामीण इलाकों में ट्रू पोटैटो सीड विधि (True Potato Seeds Method Cultivation) से आलू की खेती की जा रही है. जिससे कई किसान आत्मनिर्भर भी हो रहे हैं.
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मसौढ़ी के भैंसवां पंचायत (Potato Cultivation In Bhainswan Panchayat) में 1,000 एकड़ भूमि पर आलू की खेती की जाती है. भैंसवां पंचायत को सब्जियों का गांव भी कहा जाता है. यहां सैकड़ों किसान आलू की खेती करते हैं. इस वर्ष कृषि विभाग ट्रू पोटैटो सीड के बारे में सभी किसानों को जागरूक कर रहा है. जिससे आलू की पैदावार अच्छी हो सके. आलू के बेहतरीन खेती के लिए कृषि वैज्ञानिक मृणाल वर्मा ने बताया कि खेत की दो से तीन बार गहरी जुताई कर मिट्टी को अच्छी तरह से भुरभुरी कर लें. इसमें सड़ी हुई गोबर की खाद, कूड़ा के रूप में निष्कासित राख और पशुओं के शेड के अवशिष्ट को अच्छी तरह से मिलाकर मिट्टी को समतल कर लिया जाता है.
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इसके बाद अच्छी प्रजाति के बीज को अपने आवश्यकतानुसार चयन कर खेतों में डाला जाता है. बता दें कि ज्यादातर वेस्ट बंगाल और पुखराज के बीज को लोग अपने खेतों में बुआई करते हैं. इस बीज को 6 सेंटीमीटर की दूरी पर खेतों में लगाया जाता है और कतार से कतार की दूरी 40 से 45 सेंटीमीटर पर रखा जाता है. आलू की फसल में पोटाश की अधिक खुराक देने पर उपज में वृद्धि होती हैं. जब तापमान में असमय परिवर्तन होने लगे और आसमान में बादल दिखाई दे, तो ऐसे समय में किसान आलू की फसल को पाले से बचाव के लिए रासायनिक दवाओं का छिडकाव करते हैं. इस संदर्भ में किसानों ने भी बताया कि सभी किसान आलू की बंगाल टाइगर और पुखराज खेत में आलू बीज डाल रहे हैं. जिससे अच्छी पैदावार हो सके.
ट्रू पोटैटो सीड से ही कई वर्षों से खेती करते आ रहे हैं. पुखराज और वेस्ट बंगाल का आलू लाकर खेती करते हैं. प्रत्येक वर्ष हजारों एकड़ में खेती की जाती है. पहले मिट्टी की अच्छे तरीके से जुताई कर देते है. उसके बाद पट्टा मारकर बराबर कर देते है. एक लाइन बनाकर 6 सेंटीमीटर के गैप पर आलू या बीज को रखते है. इसके साथ ही इसमें खाद भी दिया जाता है. जिसमें मिक्चर खाद, पोटाश आदि शामिल रहता है. खाद डालने के बाद रोपाई का कार्य किया जाता है. इसके साथ ही अंत में भरई और पटई का कार्य किया जाता है. -सिताराम सिंह, किसान
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