पटना: कृषि के बाद परिवहन देश में रोजगार का प्रमुख स्त्रोत है. कोरोना संकट के दौरान अगर दवा और अस्पतालों को छोड़ दें तो हर क्षेत्र में इसकी वजह से मंदी आई. लॉकडाउन के समय से ही ट्रांसपोर्ट कारोबार औंधे मुंह गिरने लगा. गुड्स ट्रांसपोर्ट क्षेत्र में अत्यधिक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
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गुड्स ट्रांसपोर्ट सेक्टर चौपट
बिहार में गुड्स ट्रांसपोर्ट पर कोरोना महामारी और इसके बाद के उपजे हालात का सबसे ज्यादा असर पड़ा. 24 मार्च 2020 को देश में लॉकडाउन लगा दिया गया था. उसके बाद से गुड्स ट्रांसपोर्टरों की स्थिति खराब होती चली गई. कोविड-19 के संक्रमण के डर से कहें या ईंधन या अन्य चीजों के मूल्य वृद्धि के कारण इस क्षेत्र में व्यापार करने वाले लोग अब अपना हाथ पीछे कर रहे हैं.
ये हैं समस्याएं
अगर किसी ने ईएमआई फिक्स करके वाहन खरीदा था तो उसे ईएमआई चुकाने में भी दिक्क्तें आने लगीं. क्योंकि कोरोना के कारण एक तो गाड़ियों की बुकिंग पहले की तरह नहीं होती है. इस कारोबार से जुड़े लोगों का कहना है कि अब महीने में 4 से 5 बार ही बुकिंग मिलती है. ऐसे में ट्रक ड्राइवर की सैलरी, गाड़ियों का मेनटेंस, टैक्स सब मैनेज कर पाना मुश्किल हो रहा है. इन सबके साथ ही पेट्रोल डीजल की बढ़ती कीमतों ने रही सही कसर पूरी कर दी है.
मैन पावर की कमी
इस कारोबार में कुशल लोगों की कमी भी देखी जा रही है. जिसके कारण निरंतर नुकसान हो रहा है. और लॉरी मालिकों के भविष्य पर एक बड़ा सवालिया निशान लग गया है. गुड्स ट्रांसपोर्ट के क्षेत्र में मैन पावर की कमी होनी शुरू हो गई है. और इस क्षेत्र से जुड़े कुशल लोग अब दूसरे व्यवसाय की तरफ रुख कर रहे हैं.
दो जून की रोटी की दिक्कत
ड्राइवर से लेकर मजदूर तक अब इस बिजनेस को घाटे का सौदा मानते हैं. ट्रक मालिकों का तो बुरा हाल है. आये दिन बढ़ रहे डीजल के दाम से वो काफी परेशान हैं. साथ ही बढ़ते टैक्स की मार अलग से परेशानी का सबब बन रहा है. यह एक बड़ा कारण है कि ये रोजगार अब लोग नहीं करना चाहते हैं. आपको बता दें कि बिहार में 5 लाख से ज्यादा ट्रक हैं और उससे छोटे माल ढोने वाली सवारी की संख्या 2 लाख है.
'लॉकडाउन के बाद काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. महीने में 4 से 5 बुकिंग ही हो पाती है. और मुश्किल से दाल रोटी चल रहा है. किश्त की राशि किसी तरह भर रहा हूं. ऊपर से बढ़ते टैक्स और परिवहन विभाग का फरमान भी जान मारता है. अब मन नहीं कर रहा कि अपनी गाड़ी चलाऊं.'- विकास कुमार, ड्राइवर
'लॉकडाउन ने कमर तोड़ दी है. डीजल की मंहगाई ने हमारा धंधा चौपट कर दिया. अब नए लोग इस धंधे में नहीं आ रहे हैं. एक तो बिहार में बड़ी गाड़ी चलाने के लाइसेंस में भी झमेला है. दूसरा इस धंधे में लोग नहीं आने के कारण परेशानी होती है. और अगर काम मिल भी रहा है तो आमदनी बहुत कम है.'- चांद मोहम्मद, ड्राइवर
ट्रक एसोसिएशन में नाराजगी
गुड्स ट्रांसपोर्ट का हाल बेहाल है. ऐसे में ट्रक एसोसिएशन में सरकार की नीतियों को लेकर नाराजगी देखी जा रही है. एसोसिएशन की माने तो लोग ट्रक फाइनांस करवाते हैं लेकिन उनके पास पैसा नहीं कि उसे भरा जाए. एसोसिएशन का कहना है कि अब हालात ऐसे हैं कि किसानों की तरह ट्रक मालिक भी बिहार में आत्महत्या करेंगे. नए लोग इस धंधे में नहीं आ रहे हैं. बिहार में कोरोना ने इस धंधे को प्रभावित किया और डीजल के बढ़ते दामों ने इसका पहिया पूरी तरह से जाम कर दिया है.
'हमलोगों का व्यापार साफ खत्म हो गया. कोरोना की मार ऐसी पड़ी कि अब हिम्मत नहीं होता कि ट्रक भाड़े पर चलाये. ऊपर से डीजल के दाम बढ़ गए. बिहार में ओवरलोडिंग का मामला भी सरकार ने ला दिया. टैक्स में कोई कमी नहीं हो रही है.'- भानु प्रकाश,अध्यक्ष, ट्रक एसोसिएशन, बिहार
ट्रांसपोर्ट एक्सपर्ट की राय
प्रशिक्षण के लिए लोगों को जागरूक करने की जरूरत
बिहार में ड्राइविंग से लेकर ट्रांसपोर्ट के सभी कार्य के प्रशिक्षण दिए जाते हैं. लेकिन इसका सही तरीके से प्रचार प्रसार नहीं किया जाता है. साथ ही लोगों को इस काम के प्रति रूचि बढ़े इसके लिए भी प्रयास करने की जरुरत है क्योंकि इस काम को नई पीढ़ी अच्छा नहीं मानती.अगर ऐसे ही हालात बने रहे तो एक दिन ऐसा भी आएगा कि ट्रक या लारी के कुशल ड्राइवर यहां उपलब्ध नहीं होंगे.
लाइसेंस बनाने में भी आती है परेशानी
बिहार में हैवी व्हीकल के ड्राइविंग लाइसेंस बनाये जाते हैं. लेकिन इसकी प्रक्रिया को लोग आसान बनाने की मांग कर रहे हैं. बिहार में पीपीपी मोड में 5 बड़े प्रशिक्षण केंद्र भी बनाये गए हैं. फिर भी युवाओं में इस रोजगार को लेकर उत्साह नहीं है. ऐसे में एक्सपर्ट भी मानते हैं कि युवाओं को प्रोत्साहित करने की जरूरत है.
बढ़ रही बेरोजगारी
यह क्षेत्र ऐसा है कि जिसमें कम पढ़ें लिखे लोग भी आसानी से जुड़ जाते थे और अच्छा खासा लोगों को रोजगार मिलता था. आज आमदनी कम होने के कारण युवा इस रोजगार को नहीं करना चाहते हैं. ऐसे में इस सेक्टर में मैन पावर की कमी होना लाजिमी है. जरूरत है कि बिहार जैसे प्रदेश में जहां बेरोजगारों की संख्या ज्यादा है इसके प्रति लोगों को जागरूक किया जाए जिससे लोग इस सेक्टर में भी अपनी रूचि दिखाकर रोजगार करें.
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