पटना: डॉ. राम मनोहर लोहिया की आज पुण्यतिथि है. भारत के महानतम स्वतंत्रता सेनानियों में से एक राममनोहर लोहिया का योगदान अविस्मरणीय है. उन्होंने उस समय युवाओं के अंदर जोश पैदा करने का काम किया, जब देश अंग्रेजों की बेड़ियों में कैद था. लोहिया ने न केवल आजादी से पहले ब्रिटिश शासकों के खिलाफ आवाज उठाई थी बल्कि स्वतंत्र भारत में सामाजिक अन्याय, वर्ग और जाति के भेदभाव और लैंगिक पूर्वाग्रह का भी विरोध किया था.
महज 22 साल की उम्र में जर्मनी जाकर अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने वाले लोहिया का जन्म उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले में 23 मार्च 1910 को हुआ था. देश को बेहतर ढ़ंग से समझने के लिए उन्हें साहित्य, कविता, कला और सौंदर्यशास्त्र से संबंधित विषयों में मार्गदर्शन किया. पिता श्री हीरालाल शिक्षक होने के साथ-साथ गांधी जी के अनुयायी भी थे. वहीं, दूसरी तरफ उनके रिसर्च का टॉपिक 'गांधी जी का नमक सत्याग्रह' था. फिर क्या था लोहिया पर महात्मा गांधी का काफी प्रभाव था.
शुरूआती शिक्षा...
- राममनोहर लोहिया की शुरूआती पढ़ाई टंडन स्कूल से हुई थी. वहीं, उन्होंने विश्वेश्वरनाथ विद्यालय से हाईस्कूल किया.
- 1927 में काशी विश्वविद्यालय से 12वीं पास करने के बाद उन्होंने आगे की पढ़ाई कलकत्ता के विद्यासागर कॉलेज से पूरी की थी.
- इसके बाद उन्होंने जर्मनी जाकर अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की.
- महात्मा गांधी का राम मनोहर लोहिया के जीवन पर प्रभाव ऐसा था कि आप महज 10 साल की उम्र में ही सत्याग्रह से जुड़ गए थे. गांधी जी ने भी अपने कई लेखों में लोहिया के योगदान का जिक्र किया है.
इस विरोध के चलते भेजे गए जेल
डॉ. लोहिया द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश रॉयल सेना में भारतीयों के भाग लेने के खिलाफ थे. उनके जोरदार विरोध के कारण उन्हें 1939 में जेल भेज दिया गया. इसके बाद साल 1940 में 'सत्याग्रह अब' नामक लेख लिखने के कारण ब्रिटिश सरकार ने उन्हें दो साल की सजा सुनाई. वहीं, दिसम्बर 1941 में उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया.
स्वाभिमानी व्यक्तित्व के लोहिया
भारत छोड़ो आंदोलन में गांधी जी समेत कई बड़े कांग्रेसी नेता के गिरफ्तार हो गए थे. यही कारण था कि लोहिया भूमिगत होकर आंदोलन की अगुवाई कर रहे थे. 20 मई 1944 को उन्हें बम्बई में गिरफ्तार किया गया और लाहौर जेल में बंद कर दिया गया था. इस दौरान उनके पिता की मृत्यु हो गई. ब्रिटिश सरकार ने उन्हें पेरोल पर रिहा करने का अहसान जताना चाहा लेकिन स्वाभिमानी लोहिया ने ब्रिटिश सरकार का अहसान नहीं लिया और पेरोल ठुकरा दी. इसके बाद 11 अप्रैल 1946 को लोहिया को रिहा कर दिया गया.
नेहरू से मतभेद के कारण छोड़ दी कांग्रेस
1935 में तत्कालीन कांग्रेस के अध्यक्ष पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लोहिया को कांग्रेस का महासचिव नियुक्त किया था.
1947 में भारत की आजादी के बाद लोहिया और नेहरू में मतभेद शुरू हो गए, जिसके कारण लोहिया ने कांग्रेस छोड़ दी. इसके बाद कांग्रेस का विरोध करना ही लोहिया की राजनीति का आधार बन गया था. उन्होंने अकेले दम पर विपक्ष खड़ा किया, नतीजतन कांग्रेस को कई राज्यों में हार का मुंह देखना पड़ा.
अंग्रेजी भाषा के विरोधी थे लोहिया
राम मनोहर लोहिया स्वदेशी के बहुत बड़े पैरोकार थे. इसकी बानगी उनके एक लेख में देखने को मिलती है. उन्होंने लिखा, 'जितने अंग्रेजी अखबार भारत में छपते हैं, उतने दुनिया के किसी भी पूर्व गुलाम देश में नहीं छपते. भारत की तरह अंग्रेजी के अन्य गुलाम देशों की संख्या लगभग पचास रही है लेकिन अंग्रेजी का इतना दबदबा कहीं नहीं है. इसीलिए भारत आजाद होते हुए भी गुलाम है.' उन्होंने अंग्रेजी भाषा का विरोध किया था और इसे शासकों की भाषा बताया था. लोहिया का मानना था कि देश का विकास सिर्फ अपनी मातृभाषा में ही हो सकती है.
समाजवाद के अग्रदूत...
कांग्रेस से अलग होने के बाद लोहिया ने समाजवाद का रास्ता चुना और देश के प्रख्यात समाजवादी नेता के रूप में मशहूर हुए.उन्होंने किसानों को कृषि समाधान के साथ मदद करने के लिए 'हिंद किसान पंचायत' संगठन की स्थापना की. लोहिया ने जातिवाद तोड़ने के लिए रोटी और बेटी का सिद्धांत दिया था. लोहिया आर्थिक बराबरी के बिना किसी भी तरह की बराबरी को बेमानी मानते थे. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मौत के बाद उन्होंने अपने पीछे कोई जायदाद नहीं छोड़ी थी.
- लोहिया को नई दिल्ली के विलिंग्डन अस्पताल (अब जिसे लोहिया अस्पताल कहा जाता है) में 30 सितम्बर 1967 को एक ऑपरेशन के चलते भर्ती करवाया गया. यहां 12 अक्टूबर 1967 को उनका देहांत 57 वर्ष की आयु में हो गया.
लोहिया के कुछ लेख...
- जिंदा कौमें सरकार बदलने के लिए पांच साल का इंतजार नहीं करती.
- जब भूख और जुल्म दोनों चीजें बढ़ जाती हैं तो चुनाव से पहले भी सरकारें बदली जा सकती हैं.
- जाति तोड़ने का सबसे अच्छा उपाय है , कथित उच्च और निम्न जातियों के बीच रोटी और बेटी का संबंध.
- अंग्रेजों ने बंदूक की गोली और अंग्रेजी की बोली से हमपर राज किया.
- अगर भारत बड़े पैमाने पर टेक्नोलॉजी का प्रयोग करता है, तो करोड़ों लोगों को खत्म करने की आवश्यकता पड़ेगी.
- लोगों के छोटे समूहों को शक्ति देकर, प्रथम श्रेणी का लोकतंत्र संभव है.
- भारत में कौन राज करेगा, ये तीन चीजों से तय होता है. ऊंची जाति, धन और ज्ञान. जिनके पास इनमे से कोई दो चीजें होती हैं, वह शासन कर सकता है.
- त्याग हमेशा शांतिदायक और संतोषप्रद होता है.
- जाति अवसरों को रोकती है. अवसर न मिलने से योग्यता कुंठित हो जाति है. यही कुंठित योग्यता फिर अवसरों को बाधित करती है.
- जाति का ऐसा अभेद्द गढ़ या किला बन गया है, जो तोड़ा नहीं जा सकता.
- भड़-भड़ बोलने वाले क्रांति नहीं कर सकते, ज्यादा काम भी नहीं कर सकते. तेजस्विता की जरूरत है, बकवास की नहीं.
- इतिहास कभी चलता है रजामंदी से कभी चलता है संघर्ष से और अक्सर दोनों के मिश्रण से.
- जितने अंग्रेजी अखबार भारत में छपते हैं, उतने दुनिया के किसी भी पूर्व गुलाम देश में नहीं छपते. भारत की तरह अंग्रेजी के अन्य गुलाम देशों की संख्या लगभग पचास रही है लेकिन अंग्रेजी का इतना दबदबा कहीं नहीं है. इसीलिए भारत आजाद होते हुए भी गुलाम है.
- एक स्त्री और पुरुष के बीच बलात्कार और वादाखिलाफी के आलावा सभी रिश्ते वैध होते हैं.
- नारी को गठरी के समान नहीं बल्कि इतनी शक्तिशाली होनी चाहिए कि वक्त पर पुरुष को गठरी बना अपने साथ ले चले.
- इस देश की स्त्रियों का आदर्श सीता सावित्री नहीं, द्रौपदी होनी चाहिए.
- भारतीय नारी द्रौपदी जैसी हो, जिसने कि कभी भी पुरुष से दिमागी हार नहीं खाई.